Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jul 2021 · 4 min read

सेना की शक्ति

एक बार की बात है,, एक नगर था धरमपुर। और वहाँ के राजा भी बड़े धर्मात्मा थे। वह मान में युधिष्ठिर,, तो दान में कर्ण के समान थे। प्रजा को प्रसन्न रखना जानते थे, कोई भी साधु उनके यहाँ से खाली हाथ नहीं जाता था। पूरे राज्य में उनके दानी स्वभाव की चर्चा होती थी पर वह सुखी नहीं थे।
कारण – करमपुर के महाराज!

जी हाँ,, दरअसल वह अपनी तुलना करते थे करमपुर के महाराजा साहब से। जिनकी सेना की कतार जब लगती थी तो राजमहल से 10 कोस दूर तक सैनिकों की पलटन होती थी।
अस्त्र-शस्त्र से संपन्न,, तन-मन से प्रसन्न सैनिक,, पांच हजार घोड़े और 500 हाथी।
यह सब धरमपुर के महाराज भी चाहते थे,,
पर न होने के कारण सोच में पड़ जाते थे।

उनका प्रजा में मान तो था,, पर वह इतने से खुश नहीं थे। वह चाहते थे कि करमपुर के राजा जैसी शक्तिशाली सेना उनके पास भी हो। पर हो कैसे ?
इसी ईर्ष्या की आग में महाराज जले जा रहे थे।
और करमपुर के राजा को भी तो अपनी सेना पर घमंड था, वह भी बड़ी शान से कहते थे – “संसार में मेरी सेना जैसी किसी की सेना नहीं है”।

एक बार धरमपुर के राजा की दानवीरता की कथा सुनकर एक साधु उनके महल में पधारे। राजा ने उनका स्वागत पैर पखार कर किया। और कहा-
“हे मुनिश्रेष्ठ! मेरा परम सौभाग्य,, जो आप पधारे।”
राजा ने तुरन्त उनके रहने का प्रबंध करवाया। महामंत्री चित्रसेन से कहा – साधु महाराज को कोई समस्या नहीं आनी चाहिए, तुम खुद साधु की सेवा की उत्तम से उत्तम व्यवस्था करो!
चित्रसेन ने चुप रहकर ही सिर झुकाकर “जो आज्ञा महाराज” भाव प्रकट किया।
फिर क्या था, दास दासियाँ साधु की सेवा में तत्पर रहते, साधु जब विश्राम करते तो दो लोग पंखे से हवा करते, चार लोग पैर चापते। और तो और राजा के विशेष रसोईया साधु का भोजन बनाते थे। भोजन को साधु के खाने से पहले चखकर देखा जाता था कि कोई कमी तो नहीं?
जिस जल में साधु स्नान करते उसमें कनेर और गुलाब के पुष्प डाले जाते। राजपुरोहित पूजन में साधु की सभी सामग्री का स्वयं बंदोबस्त करते। राजा के प्रमुख गीतकार साधु का गीतों से मनोरंजन करते। और राजा भी हर दिन साधु के कक्ष में जाते, आशीर्वाद लेते और देखते कि साधु को कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है।
इसी प्रकार दिन पर दिन बीतते गये और साधु की सेवा और बढ़ती गयी।
जब साधु ने 1 माह आनंद पूर्वक व्यतीत किया तो उन्होंने राजा से कहा-“राजन! मैं अब जाता हूँ।
वैसे तो हम साधु संन्यासी को माया का मोह नहीं फिर भी मैं तुम्हारी सेवा से अति प्रसन्न हूँ- माँगो राजन माँगो, कोई वरदान माँगो।”

राजा ने कहा- “आप अभी तो आये ही हैं और अभी जा रहे हैं। मेरा तो यही सौभाग्य है कि मैंने आपकी सेवा की परंतु मैं आपके वक्तव्य का विरोध भी नहीं कर सकता, ठीक है, कुछ तो मांगना ही पड़ेगा।”

यह राजा की सैन्य -लालसा पूर्ति हेतु उचित अवसर था।
सो राजा ने बिना सोचे समझे कह डाला : “साधु महाराज आप मुझे वरदान स्वरूप करमपुर के महाराज के समान अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित सेना प्रदान करने की कृपा करें।”

साधु राजा के अंतर्मन को समझ गये थे फिर भी राजा के वचन का मान रखने हेतु बोले- “तथास्तु! तुम्हारा वचन सत्य हो!”
ऐसा कहकर साधु वन की ओर चले गए और राजा अपने सैन्य मैदान की ओर दौड़ पड़ा।
राजा सोच रहा था कि साधु ने सच में वरदान दिया है या कहकर ही चले गए?
तभी राजा ने सैन्य-मैदान में जाकर देखा तो दस कोस तक सैनिकों की लम्बी कतार,, पांच हजार घोड़े और पांच सौ हाथी पंक्तिबद्ध खड़े थे।
राजा ने आश्चर्य से महामंत्री चित्रसेन से पूछा “यह किसकी सेना है?”
चित्रसेन ने संकोच से कहा – “अपनी ही है महाराज।”
उधर करमपुर के राजा को जब यह पता चला तो उसने कहा – “मेरी सेना के बराबर कोई सेना नही हो सकती। धरमपुर के राजा का इतना दुस्साहस!”
“देखते हैं कितनी शक्तिशाली है उसकी सेना” यह कहते हुए उसने मंत्री को धरमपुर पर आक्रमण का आदेश दे दिया।
शक्ति मिलने के कुछ क्षण बाद ही धरमपुर के राजा में
भी अहंकार आ गया। उसने भी युद्ध ठान लिया।
सेनायें भी बराबरी की थीं, भीषण युद्ध प्रारम्भ हुआ।
सैनिकों ने सैनिकों को पछाड़ा तो हाथियों ने हाथियों को लताड़ा। घोड़े तो जैसे अस्तबल से बाहर निकलकर धमा -चौकड़ी मचा-मचा कर समर – नृत्य कर रहे थे। दस दिनों तक यही क्रम जारी रहा।
11वें दिन न तो करमपुर की सेना में कोई बचा,, न धरमपुर की सेना में।
न किसी की हार हुई और न किसी की जीत का डंका बजा। परंतु लाखों का रक्त बहा, रण में पशुओं की जान तो मानो व्यर्थ में ही चली गयी। क्या अधिकार था उन राजाओं का, उन बेजुबानों पर?
जो अपनी पीङा मुख से भी नहीं कह सकते थे।
रणभूमि खाली पड़ी थी,, बस थे तो निर्जीव शव और रक्त के वो दाग़ जो राजाओं पर कलंक थे।
मानो हजारों – लाखों लोग चिर निद्रा में सो गए। अब दोनों राजाओं के पास कुछ न बचा था। अब ना ही उनके पास विशाल सेना थी और ना ही घमण्ड।
केवल दो राजा ही अब अपने अपने राज्य के आखिरी व्यक्ति बचे थे।
दोनों राजा दुःखी थे,, उनमें वैराग्य उत्पन्न हुआ।
इंसान पहले बहुत ऊधम मचाता है , परंतु बाद में वैरागी हो जाता है।
खैऱ फिर क्या था?
एक पश्चाताप करने हेतु वन की ओर निकल पड़ा और दूसरा हिमालय के पर्वतों के मध्य “कैवल्य” को खोजने चला गया।
संत कबीर ने भी कहा है –
“अति का भला न बोलना अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना अति की भली न धूप।।”

शिक्षा- ज्यादा शक्ति भी लाभकर नहीं होती,, और अगर ईर्ष्या से पूरित हो तो “भविष्य” में महा -विनाश का कारण बनती है।

-भविष्य त्रिपाठी
स्वरचित तथा मौलिक

5 Likes · 9 Comments · 460 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जीवन की परख
जीवन की परख
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
💐प्रेम कौतुक-399💐
💐प्रेम कौतुक-399💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रदुतिया
रदुतिया
Nanki Patre
ਕਿਸਾਨੀ ਸੰਘਰਸ਼
ਕਿਸਾਨੀ ਸੰਘਰਸ਼
Surinder blackpen
"गौरतलब"
Dr. Kishan tandon kranti
किरण हर भोर खुशियों से, भरी घर से निकलती है (हिंदी गजल/ गीति
किरण हर भोर खुशियों से, भरी घर से निकलती है (हिंदी गजल/ गीति
Ravi Prakash
एक प्यार ऐसा भी
एक प्यार ऐसा भी
श्याम सिंह बिष्ट
प्रेम
प्रेम
Prakash Chandra
लोकतंत्र का खेल
लोकतंत्र का खेल
Anil chobisa
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और कन्य
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और कन्य
Shashi kala vyas
खुल के सच को अगर कहा जाए
खुल के सच को अगर कहा जाए
Dr fauzia Naseem shad
क्या ढूढे मनुवा इस बहते नीर में
क्या ढूढे मनुवा इस बहते नीर में
rekha mohan
तू रूठा मैं टूट गया_ हिम्मत तुमसे सारी थी।
तू रूठा मैं टूट गया_ हिम्मत तुमसे सारी थी।
Rajesh vyas
अलाव की गर्माहट
अलाव की गर्माहट
Arvina
****** मन का मीत  ******
****** मन का मीत ******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
■ एक_नज़्म_ख़ुद_पर
■ एक_नज़्म_ख़ुद_पर
*Author प्रणय प्रभात*
तुम किसी झील का मीठा पानी..(✍️kailash singh)
तुम किसी झील का मीठा पानी..(✍️kailash singh)
Kailash singh
मिमियाने की आवाज
मिमियाने की आवाज
Dr Nisha nandini Bhartiya
यूं जो उसको तकते हो।
यूं जो उसको तकते हो।
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रेम में राग हो तो
प्रेम में राग हो तो
हिमांशु Kulshrestha
अपनी हिंदी
अपनी हिंदी
Dr.Priya Soni Khare
धोखा
धोखा
Paras Nath Jha
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कविता -
कविता - "सर्दी की रातें"
Anand Sharma
पुलिस की ट्रेनिंग
पुलिस की ट्रेनिंग
Dr. Pradeep Kumar Sharma
द्रौपदी
द्रौपदी
SHAILESH MOHAN
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बातों का तो मत पूछो
बातों का तो मत पूछो
Rashmi Ranjan
चलो चलो तुम अयोध्या चलो
चलो चलो तुम अयोध्या चलो
gurudeenverma198
तुझे जब फुर्सत मिले तब ही याद करों
तुझे जब फुर्सत मिले तब ही याद करों
Keshav kishor Kumar
Loading...