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11 Aug 2020 · 1 min read

सूरज की पहली किरण

सूरज की पहली किरण नहीं देखी, वो उजाला क्या जाने ?
इंसानियत जिसने नहीं जानी वो इंसान को क्या पहचाने ?

“अँधेरे में जीवन” काटकर वो नेकी-बदी को पहचान गए,
चकाचौंध उजाले में रहकर काली रात का सच भूल गए,
दौलत के आगोश में चूर होकर वो इंसानों से दूर हो गए,
गरूर के जाल में फंसकर वो उसमें अपना होश खो गए,

सूरज की पहली किरण नहीं देखी वो उजाला क्या जाने ?
इंसानियत जिसने नहीं जानी वो इंसान को क्या पहचाने ?

भूख की तड़प जिसने नहीं देखी वो रोटी की कीमत क्या जाने ?
प्यास की ललक नहीं देखी वो पानी की अहमियत क्या जाने ?
गरीबी की कराह जिसने नहीं देखी ग़ुरबत में रहना क्या जाने ?
बेटी-बहन की आबरू से खेले जो वो इज्जत से बसर क्या जाने ?

सूरज की पहली किरण नहीं देखी वो उजाला क्या जाने ?
इंसानियत जिसने नहीं जानी वो इंसान को क्या पहचाने ?

गाँव-गली के बालक की पूरी जिंदगी बीत गई रोते-रोते,
उसकी जवानी बुढापे में तब्दील हो गई बड़ा होते-होते,
भटक गया वो लोगो के हाथों , स्वप्नलोक में सोते-सोते,
“अनमोल जिंदगी” कट गई उसकी सब कुछ खोते-खोते I

सूरज की पहली किरण नहीं देखी वो उजाला क्या जाने ?
इंसानियत जिसने नहीं जानी वो इंसान को क्या पहचाने ?

******
( यह कविता करोड़ो गाँव-गली के बालको को समर्पित है जो अभावों में जीने को मजबूर है )

देशराज “राज”

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 1481 Views
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