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7 Dec 2019 · 1 min read

सुलगे सुलगे दिवस मिले, सहमी सहमी रात मिली

सुलगे सुलगे दिवस मिले, सहमी सहमी रात मिली
फूल मिले या काँटे हमको ,आँसू की सौगात मिली

जीवन पथ पर पहले से ही, हमको बिछी बिसात मिली
खेले तो हम भी थे बढ़िया, मगर अंत में मात मिली

तू थी अपनी मगर तुझे हम, समझ नहीं अब तक पाये
अरे ज़िन्दगी हमको तेरी, हर पल बदली बात मिली

इसी वक़्त ने जख्म भरे हैं, इस दिल के गहरे गहरे
और इसी के हाथों हमको , समय समय पर घात मिली

धर्मो की जब ठेकेदारी,ली मानव ने हाथों में
खून लाल तो सबका था ,पर अलग अलग ही जात मिली

बड़े हो गये तो खुशियों ने, स्वार्थ भरी ओढ़ी चादर
भोले भाले बचपन में हर , खुशी हमें नवजात मिली

जीने के ये ढंग ‘अर्चना’, सचमुच बड़े निराले हैं
खिले खिले से चेहरों के भी, आँखों में बरसात मिली

716
06-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

2 Likes · 2 Comments · 196 Views
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