सुबह
रात को सुबह का
सुबह को दोपहर का
दोपहर को सांझ का
सांझ को भी रात का
इंतजार रहता ही है
यह तो जीवन का चक्र है
खुद ब खुद
कोई सिखाये या न सिखाये
कोई बताये या न बताये
चलता ही रहता है
सुबह के चेहरे पर
लालिमा का गुलाल कोई
मलता ही रहता है
दोपहर के सिर पर धूप
का सेहरा कोई बांधता ही
रहता है
सांझ के आंचल पर
प्रेम की कहानी कोई
लिखता ही रहता है
रात के हाथ में
चांदनी का कंगन कोई
पहनाता ही रहता है
यह सब कौन करता है
किसके जरिये करवाता है
यह मालूम करना तो
असम्भव सा प्रतीत होता है पर
रात के कंधे पर बैठकर
सुबह का एक परिंदे के
माफिक
पंख फैलाकर आना और
चारों दिशाओं में
उजियारा फैलाना
एक प्रभात का हर रोज
उदय होना
लाजिमी सा है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001