सुबह को शाम लिखता हूँ
सुबह को शाम लिखता हूं
रात पैगाम लिखता हूं।
तू मुझे अस्वीकार भी कर दे
तुझे एहतराम करता हूं।
सूना-सूना बीत जाएगा,भले
जीवन का हर लम्हा।
तेरे बिना जीने को भी, मैं
अपना स्वाभिमान समझता हूं।
हृदय के मनोरम मकाम में
एक अनोखा घर बनाया है।
जिसे स्नेह,समर्पण और
शिद्दत से सजाया है।
तेरे साथ जीने का मेरा
अलौकिक प्रयोजन है।
तू मुझे स्वीकार कर लेना
यही निवेदन करता हूं।
धरा से लेकर अम्बर तक
तेरे बिना उदासी है।
तेरा दीद पाने को,ए
मेरी अंखिया प्यासी हैं।
हमें मालूम है,तू भी
मेरे लिए आंहें भरत है।
फिर भी क्यों नहीं जाने
तू, मुझसे कह नहीं सकता।
गर तू धूप में निकले तो
मैं तेरा छांव बन जाऊं।
तू मुझसे दूर भी जाये
तेरे बिना मैं न रह पाऊं।
मुझे यकीं है, मेरे साथ जीने को
भी तेरा जी मचलता है।
फिर भी क्यों नहीं मुझसे
तू मेरे यार कहता है।
— सुनील कुमार