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29 Apr 2017 · 1 min read

सुप्त तरुण निज मातृभूमि को हीन बनाकर के विभेद दें।

आत्मशुद्धिमय सजग सिपाही, बनकर युवजन लक्ष्य भेद दें।
बिना जागरण के स्वदेश को भारऔर तम- द्वंद- खेद दें।
समझ न सके राष्ट्र की पीड़ा कैसे कह दें सद्ज्ञानी है।
सुप्त तरुण निज मातृभूमि को हीन बनाकर के विभेद दें।
…………………………………………………………….

बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “कौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता

“जागा हिंदुस्तान चाहिए” कृति का मुक्तक
29-04-2017

आत्मशुद्धि=देहशुद्धि,चित्तशुद्धि

Language: Hindi
551 Views
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