सुनो …
सुनो…
मैं बढ़ना चाहतीं हूं
उस तरु की तरह
जो छूना चाहता है व्योम
अपनी ऊंचाई से
मस्तक ऊंचा कर
छूना चाहतीं हूँ
वैसे ही तूम्हे मैं
जीवन यात्रा में अपनी
धीरे धीरे!!
सुनों..
मैं घुलना चाहती हूँ
तुम्हारे नीलेपन में ,
और..
छोड़ देना चाहती हूँ
अपना रंग ऊपर तुम्हारे
सोख लूंगी
सारा पीलापन
अपने गुण से
धीरे-धीरे !!
सुनो…
मैं मिल जाना चाहती हूँ
संगम की तरह
गंगा यमुना सी
धार बन..
जीवन मे तुम्हारे
बहा ले जाऊं
दुख सारे
अपने बहाव में
धीरे धीरे!!
सुनो…
मैं प्रतीक्षा करूँ
दिन प्रतिदिन रात सी
चांदनी की तरह
तारा बन
चमकना चाहतीं हूँ
चाँद की उम्मीद में
फैलाने को चाँदनी
तुम्हारे जीवन में
धीरे धीरे!!