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6 Sep 2020 · 1 min read

सुख दुख तो मन के उपजाए

सुख दुख तो मन के उपजाए।

मूढ़ मंद मति काल चक्र गति विकृति समझ न पाए।

गढ़ि निज दोष अपर सिर ऊपर मढ़ि मढ़ि अति सुख पाए।

कौन हृदय परमारथवादी नेह सुधा बरसाए?

मुकुर मुकुर निज यौवन निरखे, निरखि निरखि हरसाये।

कभी न सौष्ठव बालसखा को फूटी आँख सुहाए।

करनी की भरनी पर रोए देवहिं दोष लगाए।

कौन जगत में मनुज कौतुकी जो सबके मन भाए?

पर उन्नति निज अवनति माने जले भुने खिसियाये।

नारायण भी अइसेन के दुख दूर नहीं कर पाए।

संजय नारायण

Language: Hindi
5 Likes · 1 Comment · 300 Views
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