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26 Oct 2020 · 1 min read

सुख-दुःख का खेल

सुख-दुःख का खेल

जीवन में सुख-दुख के मेले
मिल दोनों अतरंगी खेल खेले
एक दूजे को क्षण भर न सुहाये
बैरी जियूं धूप संग छाँव के साये

एक आए तो दूजा चला जाए
दूजा आऐ तो पहला टिक न पाए
जाते हैं राहगीर की तरह गुज़र
इनका न कोई ठोर न कोई घर

सुख मृगतृष्णा सा भरमाता
दुख प्रचंड रवि सा झुलसाता
अति दोनों की ही देती पीड़ा
बारी बारी करते जीवन में क्रीड़ा

दुख की उत्ताल तरंगे मुँह खोले
सुख की नाव खाती हिचकोले
दुख धर धैर्य संयम की पतवार
नाविक सुख करा दे तरणी पार

संध्या जैसे मिलती निशि संग
सरिता ज्यूँ समाई सागर अंग
सुख-दुख का हो मधुर मिलन
संगम करता पूर्ण अपूर्ण जीवन

रेखा

Language: Hindi
1 Like · 421 Views
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