Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jul 2016 · 16 min read

सुखदा—— कहानी

कहानी

इस कहानी मे घटनायें सत्य हैं मगर पात्र आदि बदल दिये गये है। ओझा वाली घटना एक पढे लिखे और मेडिकल प्रोफेशन मे काम करने वाले आदमी के साथ घट चुकी है। मगर उसने जिस मरीज का ईलाज करवाया था वो 3-4 माह बाद ही मर गया था। उस बाबा का जम्मू मे आज भी लाखों का कारोबार है। उसके बारे मे फिर अलग पोस्ट से कभी बताऊँगी। जो सुखदा नाम का पात्र है इसे इस घटना से जोडा गया है और सुखदा नाम का पात्र भी सत्य घटना पर आधारित है। उसे भी उसके माँ बाप ने अभागा समझ कर त्याग दिया था। दोनो अलग अलग घटनाओं को ले कर इसे एक कहानी के कथानक को बुना गया है। शायद पहला भाग आपको बोर लगे मगर इस कहानी को बहुत लोगों ने सराहा है। और मुझे भी अपनी अच्छी कहानियों मे ये एक अच्छी कहानी लगती है।

सुखदा

गोरा रंग, लाल गाल,छोटे छोटे घुँघराले बाल,गोल मटोल ठुमक ठुमक कर चलती तो उसके पाँव की झाँझर से सारा घर आंम्गन नाच उठता। शरारत भरी हंसी औत तुतली जुबान से सब का मन मोह लेती,घर के सब लोग उसके आगे पीछे घूमते।इतनी प्यारी बेटी थी, तभी तो उसका नाम सुखदा रखा था उसके पिता ने।

जब सुखदा का जन्म हुया था तोबडा भाई राजा पाँचवीं और छोटा भाईरवि चैथी कक्षा मे पढते थे।उसके पिता चने भटूरे की रेहडी लगाते थे।बाज़ार के बीच रेहडी होने से काम बहुत अच्छा था।कुछ घर मे सामान तैयार करने मे उसकी माँ सहायता कर देती थी।कुल मिला कर घर का गुजर बसर बहुत अच्छी तरह हो रहा था।

वो अभी चार वर्श की हुयी थी कि उसके पिता बीमार रहने लगे।चर्ष भर तो इधर उधर इलाज चलता रहा, पर पेटदर्द था कि बढता ही जा रहा था। जान पहचान वालों के जोर देने पर उन्हें पी.जी.आई चन्डीगढ ।मे दिखा कर ईलाज शुरू करवाया।वहाँ आने जाने का खर्च और ऊपर से टेस्ट इतने मंहगे दवायौ का खर्च भी बहुत हो जाता। इस तरह पी.जी.अई के चक्कर मे जो घर मे जमा पूँजी थी वो 1 माह मे ही समाप्त हो गयी।ऊपर से डाक्टर ने कैंसर बता दिया।जिगर का कैंसर अभी पहली स्टेज पर था।डाक्टर ने बताया कि हर माह कीमो थैरापी करवानी पडेगी– मतलव हर माह 15–20 हजार का खर्च होगा ऊपर से दवाओं का खर्च अलग।इतना मंहगा ईलाज करवाना अब उनके बस मे नही था।इसलिये फिर से नीम हकीमौ के चक्कर मे पड गये।

सुखदा की दादी को किसी ने बताया कि एक ओझा है जो बिना चीर फाड के आप्रेशन कर देता है बहुत से मरीज उसने ठीक किये हैं अगर वहाँ दिखा लें तो ठीक हो जायेंगे।

उस ओझा के पास जाना मजबूरी सी बन गया था। वहाँ गये तो ओझा के चेले ने ऐसा चक्कर चलाया कि दादी तो क्या सुखदा के माँ बाप भी उस से प्रभावित हुये बिना न रह सके।

यूँ भी अनपढता गरीबी औरन्ध विश्वास का जन जन्म का साथ है।जो थोडी सी बुद्धि विवेक होते हैं वो भी अन्धविश्वास के अंधेरे मे अपनी रोशनी खो देते हैं।फिर वो दो वर्ष मे डाकटरी ईलाज मे बिलकुल जेब से खाली भी हो चुके थे।ाब तो सुखदा के पिता काम भी नही कर पाते। बडा लडका अब नौवी की पढाई छोड कर् रेहडी का काम सम्भाल रहा था। मगर बच्चा ही तो था उतनी अच्छी तरह काम नही कर पाता था तो आय भी कम हो गयी थी। ईलाज तो दूर घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया था।मगर किसी तरह जुगाड कर के ओझा के पास जाने का फैसला किया गया। सुखदा की माँ की कानों की वालियाँ और सुखदा की झाँझर बेच कर जम्मू जाने के लिये कुछ पैसे जुटाये गये।

सुखदा तब बेशक अभी पाँच वर्ष की ही थी मगर तब से अब तक वो काला दिन नही भूल पाई थी।क्यों कि उस अन्ध विश्वास की त्रास्दी और भयानक क्षन ने उसके दिल मे गहरे तक पैठ बना ली थी।, जिस ने हंसती खेलती सुखदा को दुखदा बना दिया था।

तब उसे पूरी बात तो समझ नही आयी थी मगर जो उसने देखा था वो अब भी याद है और उसी से अब सब कुछ समझती है। उसे याद आया—– जब वो आश्रम पहुँचे थे तो उस ओझा के आश्रम मे बहुत भीड थी।सन्त बाबा बारी बारी से मरीजों को बुलाते, जन्त्र मन्त्र करते और्भेज देते । जिनके आप्रेशन होने होते वो वहीं रह जाते वहाँ ऐसे तीन चार मरीज थे। आज उसे लगता है कि वो जरूर बाबा के एजेन्ट होंगे। सब यही कह रहे थे कि जिसकी किस्मत अच्छी हो उसी का आप्रेशन करते हैं बाबा जी।्रात को उनका आप्रेशन होना था।

दोपहर के बैठे थे वो अन्धेरा अपने पाँव पसारने लगा था। तभी दो चोगाधारी बाबा के चेले आये और सुखदा के पिता को चारपाई पर डाल कर ले गये। ये आश्रम एक पहाडी पर था और नीचे एक दरिया बह रहा था।बाकी सभी लोगों को पहाडी पर एक जगह बैठने का निर्देश दे कर मरीज को अप्रेशन के कमरे मे , जो दरिया के किनारे था ले गये।बाकी के बैठे हुये लोगों को अन्धेरे के कारण कुछ दिखाई नही दे रहा था।सुखदा बच्ची थी वैसे भी सहमी सी बैठी थी।कुछ देर बाद किसी जानवर जैसी दहाडने की आवाज़ आयी सुखदा और बाकी लोग डर से काँपने लगे।उसकी माँ ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया। तभी ओझा का एक चेला हाथ मे मास का एक लोथडा सा ले कर आया।—* ये देखो मरीज के जिगर से कैंसर वाला मास निकाल कर लाया हूँ ताकि आप अपनी आँखों से देख लो इसे बिना आप्रेशन के निकाला है। ये देख कर सभी लोग हैरान हो गये और बाबा की जै जै कार करने लगे। करीब आधे घन्टे बाद वो मरीज को वापिस ले कर आये।मरीज के कपडों पर खून के छीँटे तो थे मगर चीर फाड,बेहोशी का नामोनिशान नही था मरीज सन्तुष्ट लग रहा थ। बाकी दो मरीजों का आप्रेशन कर के बाबा जीवापिस अपने कमरे मे आ गये। फिर मरीज और रिश्तेदारों को बारी बारी अन्दर बुलाने लगे।

सुखदा के परिवार की बारी आयी तो सभी बाबा के सामने जा कर बैठ गये। चढावा चढाया,ाउर बाबा के चरणो मे माथा टेका।

बम–बम-भोले नाथ— ये कन्या कौन है? बाबा ने ऊँची आवाज़ मे पूछा।

सुखदा तो पहले ही दरी हुयी थी और भी सहम गयी।

जी ये मेरी पोती है और जिसका आपने आप्रेशन किया वो मेरा बेटा है उसी की पुत्री है सुख्दा।* दादी ने सुखदा का परिचय दिया

**सुखदा? सुखदा नही दुखदा कहो इसे। माई ये कन्या नही विष कन्या है– ये बाप के लिये मौत का पैगाम ले कर आयी है।जितनी जल्दी हो सके इसे घर से दूर भेज दो।*

बाबा ऐसा कैसे हो सकता है?ये मेरी बेटी है इस मासूम को कहाँ भेजूँगी?* सुखदा की माँ ने उसे और जोर से छाती से चिपका लिया।

माई आप घर की सलामती चाहती हैं तो इसे घर से भेजना ही होगा। मै एक आश्रम का पता बता सकता हूँ, वहाँ इसे छोड दें नही तो सारा घर तबाह हो जायेगा।इसके माथे पर शनि और राहू की काली छाया देख रहा हूँ। अभागी है ये लडकी— अभागी। कहते हुये बाबा ने एक आश्रम का पता एक कागज़ पर लिख कर दिया। और कहा कि उसे बता दें जब ये वहाँ चली जाये। मैं वहाँ बोल दूँगा कि इसका अच्छा ध्यान रखें।

बाबा जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा। हमे दो दिन की मोहलत दो। दादी ने विनीत भाव से बाबा को भरोसा दिलाया।माथा टेक कर सभी बाहर आ गये।

सुखदा दर के मारे माँ को छोड नही रही थी, कुछ कुछ उसको समझ आ गया था कि उसे घर से बाहर भेजने को कहा गया है। उसके लाड प्यार करने वाले उसके पिता उसे गुस्से से देख रहे थे। माँ तो जैसे काठ की मूर्ती बन गयी थी। उसे विश्वास नही हो रहा था कि उसकी इतनी प्यारी बेटी अभागी हो सकती है।—-
:
घर पहुँचते ही दादी और पिता ने उसे आश्रम भेजने की जिद पकड ली दादी को सुखदा से अधिक अपने बेटे की जान की चिन्ता थी।उसके भाई उसे भेजने के हक मे नही थे मगर वो अभी छोटे थे उनकी कौन सुनता? बाप को तो सिर्फ अपनी चिन्ता थी।खुदगर्ज़ी इन्सान को कितना नीचे गिरा देती है कि वो अपना जीवन बचाने के लिये मासूम बच्ची के जीवन से खेलने मे भी संकोच नही करता।बाप की खुदगर्ज़ी और अन्धविश्वास की भेंत चढने जा रही थी सुखदा।

माँ जानती थी कि उसका भी बस नही चलेगा।कहीं ये लोग सच मे उसे बाबा के बताये आश्रम मे छोड आये तो सुखदा का क्या होगा—- फिर वो कभी अपनी बच्ची को देख भी पायेगी या नही! इससे अच्छा होगा यदि मै इसे इसकी नानी के घर भेज दूँ।कम से कम उसे कभी देख तो सकती हूँ। बडी मुश्किल से वो अपने पति और सास को मना पाई। सुखदा भी सब कुछ समझ रही थी उसे याद आ रहा था कि जब कभी वो रोते हुये पापा की गोद मे समा जाती तो वो एक दम परेशान हो उठते। उनसे उसका रोना देखा नही जाता था। आज जैसे ही वो पापा के पास गयी उन्होंने उसे डाँट कर भगा दिया। दादी तो उसे खा जाने वाली नजरों से देख रही थी। बडा भाई अपने काम काज मे व्यस्त था। छोटा रात भर सुखदा और माँ के पास सुखदा का हाथ पकडे रहा । और माँउसे सीने से चिपकाये आँसू बहाती रही।उसके कलेजे का टुकडा जिसे देख कर वो अपना सारा गम भूल जाती थी अब् उससे दूर जा रहा था। कैसे रहेगी अकेली नानी के पास? माँ के बिना तो उसे नीँद भी नही आती थी। सुखदा की नींद तो जाने कहाँ उड गयी थी।उस मासूम को तो ये भी पता नही था कि अभागिन क्या होती है। क्यों उसे घर से दूर भेजा जा रहा है।

अगले दिन माँ उसे नानी के घर छोड आयी। कितना रोयी तडपी थी घर से चलते वक्त। बाप ने तो उसकी ओर नजर भर कर देखा भी नही।बस माँ और छोटा भाई रो रहे थे। जाने कितने दिन माँ रोती रही होगी। उसे छोड कर जाते हुये बार बार माँ का आँसोयों से भरा चेहरा उसे याद आता जिसे वो पूरी उम्र नही भूल पाई थी। नानी के पास दो दिन उसने एक दाना भी नही खाया था। नानी गाँव मे अकेली रहती थी। मामू अपनी पत्नि और बच्चों के साथ शहर मे रहते थे।बूढी नानी सुखदा को बहलाने की भरसक कोशिश करती थी पर सुखदा तो जैसे पत्थर बन गयी थी। गुम सुम सी सारा दिन रोती रहती थी।

कुछ दिन बाद गाँव के एक सकूल मे उसका दाखिला करवा दिया गया। मगर स्कूल मे भी उसका मन नही लगता था। वो चुप चुप सी सहमी हुयी कलास के एक कोने मे बैठी रहती थी।उसकी भोली सी सूरत देख कर उसकी क्लास टीचर शारदा देवी को उसकी ये उदासी समझ नही आती थी। बहुत बार उसने उसे समझाने की कोशिश भी की मगर वो चुप रही। पता नही क्यों शार्दा देवी को उस लडकी से कुछ लगाव सा हो गया। उसकी अपनी कोई संतान न थी। उसे समझ नही आता था कि इतनी छोटी सी उम्र मे उसे कौन सा दुख सालता रहता है। वो निराश सी क्यों रहती है।

एक दिन आधी छुट्टी मे उसने सुखदा को अपने पास बुलाया।–

सुखदा, क्या बात है बेटा तुम इतनी उदास और डरी सी क्यों रहती हो?

वो चुपचाप अपने नाखूनों से अपनी किताब खरोंचती रही।जैसे डर रही हो कि उसे अभागी जान कर कहीं स्कूल से भी ना निकाल दें।

अच्छा ये बताओ कि तुम अपने माँ बाप के पास क्यों नही रहती नानी के पास क्यों रहती हो? सहानुभूति के दो शब्दों से सुखदा के सब्र का बान्ध टूट गया। उसके दिल के फफोलों से एक टीस उठी।

मैं अभागी हूँ मेरे कारण मेरे घर पर विपत्ति आ गयी। पिता मेरे कारण बिमार हो गये। इस लिये मुझे घर से निकाल दिया गया।

सुनते ही शारदा देवी का दिमाग सुन्न हो गया। इस इकीसवीं सदी मे ऐसा अन्ध विश्वास? इतनी छोटी सी बच्ची के साथ ऐसा अन्याय? जिसकी सूरत देख कर मन को सकून मिलता हो वो भोली सी बच्ची अभागी कैसे हो सकती है?कुछ पल मे अपने आप को संयत कर उसने सुखदा को गोद मे ले कर भीँच लिया।

अच्छा बताओ क्या मेरी बेटी बनोगी? शारदा देवी ने उसके आँसू पोंछते हुये पूछा।

* नही,कहीं आप पर भी कोई मुसीबत आ जायेगी।* सुखदा ने सुबकते हुये कहा।

अरे नही मेरा तो घर महक उठेगा। मैं तुम्हारी टीचर हूँ ना तो टीचर कभी बच्चों से झूठ नही बोलते। एक बात याद रखना,अभागी तू नही अभागे वो लोग हैं जिन्होंने तुझे त्याग दिया। देखना एक दिन तुम साबित कर दोगी। मै कल ही तुम्हारी नानी से मिलती हूँ। अब तुम अपने आँसू पोंछ दो । और क्लास मे जाओ।

अगले दिन शारदा देवी और उसके पति उमेश सुखदा की नानी के पास गये। पहले तो उन्होंने उसे समझाया कि ये सब अन्ध विश्वास है। मगर नानी इसमे क्या कर सकती थी। फिर उन्होंने उसकी नानी को अपनी इच्छा बताई कि अगर आप इसे हमे गोद दे दें तो इसका भविश्य संवर सकता है। हमारे कोई संतान नही है। आप इसके माँ बाप को बुला कर बात करें। हम अगले इतवार को फिर आयेंगे।

सुखदा की माँ का कलेजा मुँह को आ रहा था ये सुन कर,मगर बाप खुश हो गया कि चलो बला टलेगी। नानी भी कब तक जिन्दा रहेगी कहीं ये मुसीबत फिर गले ना पड जाये। उमेश ने सारी कानूनी औपचारिकतायें पूरी कर ली और उसके पिता को इलाज के लिये कुछ धन भी दिया। इस तरह सुखदा अब शारदा और उमेश की बेटी बन गयी।

उनदोनो के पाँव जमीन पर नही पड रहे थे। मगर सुखदा को रह रह कर अपनी माँ का आँसूयों से भीगा चेहरा याद आ रहा था भाई की कातर निगाहें उसका पीछा कर रही थीं। मगर उन दोनो के प्यार ने उसे कुछ सकून दिया। उसका कमरा सजा दिया गया। वहाँ का माहौल देख कर वो हैरान थी इस तरह के खिलौने और खान पान तो उसने सपने मे भी नही सोचा था! घर मे रोनक हो गयी थी अब वो अपने माँ बाप की लाडली बेटी जो बन गयी थी धीरे धीरे वो माँ के सिवा सब कुछ भूल कर उनके प्यार मे रंगने लगी। उमेश और शारदा ने अपनी बदली कहीं दूर करवा ली । वो सुखदा को सभी यादों से दूर लेजाना चाहते थे।

नया शहर नया स्कूल और नया घर देख कर सुखदा भी खुश थी। बाल मन जल्दी ही उन खुशियों मे रम गया।

वर्षों की सीढियाँ फलांगते सुखदा कहीं की कहीं पहुंच गयी थी मगर नही भूली तो उस बाबा की दहशत और माँ का आँसूयों से भीगा चेहरा।—

दिन साल बीते सुखदा ने कभी पीछे मुड कर नही देखा और एक दिन वो डाक्टर बन गयी। वो बहुत खुश थी मगर कभी कभी जब उसे अपनी माँ का चेहरा याद आता तो बहुत उदास हो जाती। उस चेहरे को उसने हर दिन याद किया है। कई बार उसका मन तडप उठता– पता नही कैसे होंगे वो सब छोटा भाई कैसा होगा वो भी तो बहुत रिया था उसके आने पर। मगर वो लोग उसे ऐसे भूले कि किसी ने कभी जरूरत नही समझी उसकी सुध लेने की। पता नही कहाँ होंगे? आज वो अपने बाप को बताना चाहती थी कि वो अभागिन नही है।

उमेश और शारदा ने उसके डाक्टर बनने की खुशी मे घर मे एक पार्टी रखी थी। वो दोनो बहुत खुश थे मगर कई बार सुखदा को उदास होते देख कर वो उसकी हालत समझते थे। अब तक तो उसे यही कहते रहे थे कि बस पढाई की ओर ध्यान दो पिछली बातें भूल जाओ। अपने पिता को दिखा दो कि तुम अभागिन नही हो। और वो उसका ध्यान इधर उधर लगा देते। वो उसकी उदासी से कभी अनजान नही रहे। उन्हें एहसास था कि सुखदा की उदासी अस्वाभाविक नही है।

आज दोपहर का खाना खा कर सुखदा अपने कमरे मे जा कर लेट गयी। वो कोशिश करती थी कि कभी अपने इन माँ बाप को अपने मन की उदासी का पता न चलने दे मगर शारदा देवी की आँखों से ये छुप नही पता। कुछ देर बाद शारदा ने कमरे मे जा कर झाँका तो सुखदा किसी सोच मे डूबी थी। वो उसके सिरहाने जा कर बैठ गयी

* क्या बात है आज मेरी बेटी कुछ उदास लग रही है।*

कुछ नही माँ क्या कोई काम था?* मै तो ऐसे ही लेटी थी। भला मैं उदास क्यों होने लगी। पार्टी के बारे मे ही सोच रही थी।*

हाँ मै समझ सकती हूँ । बेटा मैने चाहे कभी तुम से पुरानी बातों का जिक्र नही किया बस मन मे एक ही बात थी कि तुम किसी मुकाम पर पहुंच जाओ। कहीं वो बातें तुम्हें अपनी मंजिल से दूर न कर दें। मगर आज मन मे एक बात है। कह कर शारदा देवी सुखदा की तरफ देखने लगी।

हाँ हाँ कहो माँ?

बेटी मै चाहती हूँ कि एक निमन्त्रण पत्र तुम अपने माँ बाप को भी दो। बेशक मैने कभी तुम से उनका जिक्र नही किया मगर जानती थी कि तुम्हें उनकी याद अकसर आती है। मै नही चाहती थी कि तुम उनके विषय मे सोच कर पढाई से दूर न हो जाओ। आज तुम ने अपने आप को साबित कर दिया है।ाब मुझे कोई डर नही क्योंकि मुझे पता है तुम हमारी बेटी हो और हमे तुम पर पूरा विश्वास है। इसलिये हम तुम्हे उदास भी नही देख सकते। मैं चाहती हूँ कि तुम अपने माँबाप से अब मिल लो।।*

नही माँ मै इस लिये उदास नही कि मै उनके पास जाना चाहती हूँ । अब तो केवल आप ही मेरे माँ बाप हैं और मुझे आपकी बेटी होने पर गर्व है। आपने मेरे जीवन को एक अर्थ दिया है। आपके सिवा कोई नही मेरा। फिर भी कई बार माँ का चेहरा और छोटे भाई का रुदन याद आता है तो दिल तडप सा उठता है दोनो की बेबसी याद आती है बस। सुखदा ने शारदा देवी के गले मे बाहें डालते हुये कहा।

*अच्छा चलो,उठो कुछ कार्ड खुद जा कर देने हैं कल तेरे शहर चलेंगे। कहते हुये शारदा देवी उठ गयी।

अगले दिन अपने घर जाते हुये— वो सोच रही थी अपना कौन सा घर अपना घर तो उसका वो है जहाँ अब रह रही है।– वो ति किसी के घर बस कार्ड देने जा रही है। एक अभिलाशा लिये , अपनी सगी माँ से मिलने

की चाह लिये बस कार्ड देना तो एक बहाना था।

सुभ 10 बजे जैसे ही गाडी सुखदा के घर के आगे रुकी मोहल्ले के बच्चे गाडी के आस पास इकट्ठे हो गये। गरीब बस्तियों मे भला कभी कुछ बदलता है? इन लोगों के लिये आज भी गाडी एक दुर्लभ वस्तु है। वो भी तो इतनी उत्सुकता से मोहल्ले मे आने वाली गाडी को देखा करती थी। जैसे ही ये लोग गाडी से बाहर निकले सब इनकी ओर देखने लगे। सामने कुछ लडके जमीन पर बैठे ताश खेल रहे थे औरतें नल से पानी भर रही थी– बच्चे नंग धडंग खेल रहे थे। मोहल्ले मे कुछ घर नये बन गये थे।उन्हों ने किसी से सुखदा के बाप का नाम ले कर घर पूछा सुखदा को कुछ कुछ याद था । एक लडके ने इशारे से एक घर की ओर उँगली की।

दरवाजा टूट गया था।सुखदा ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा दरवाज चरमराहट से खुल गया। इतनी गंदगी? उसका घर तो जहाँ तक उसे याद है साफ सुथरा हुया करता था। कुछ और आगे बढी तो कंपकंपाती क्षीण सी आवाज़ आयी।

कौन? अन्दर आ जाओ।

बरसों बाद माँ की आवाज़ सुनी थी। दिल धडका और आँख भर आयी। शारदा देवी ने हल्के से उसका कन्धा दबाया और आगे बढने का इशारा किया। वो लोग अन्दर आ गये। कमरे के एक तरफ मैले कुचैले बिस्तर पर उसकी माँ लेटी थी दूसरी तरफ दो टूटी फूटी कुर्सियाँ एक स्टूल पडा था। सुखदा तेजी से माँ की तरफ लपकी

मईया? बडी मुश्किल से सुखदा के मुँह से आवाज़ निकली बचपन मे वो ऐसे ही अपनी माँ को बुलाया करती थी। सब की जैसे साँसें रुक गयी थी आँखें सब की नम —- सुन कर माँ एक झटके से उठ कर बैठ गयी। ऐसे तो सुखदा ही पुकारा करती थी ।इतने बर्षौ बाद किसी ने मईया कहा था। उसे लगा जैसे किसी ने उसके दिल की तपती रेत पर ठंडे पानी की बौछार कर दी हो।

सुखदा?

एक झटके से खडी हो गयी उसे छुआ और फफक कर रो पडी। शाय्द गले लगाने से हिचक रही थी उनलोगों के साफ सुथरे कपडे देख कर।

माँ! सुखदा झट से उसके गले लग गयी। सब की आँखें सावन भादों सी बह रही थीं।

बेशक माँ के कपडों से बू आ रही थी—

मगर आज सुखदा को वह भी भली लग रही थी। आखिर खून अपनी महक दे रहा था। उसे अभी भी याद है जिस दिन वो शारदा देवी के साथ जा रही थी माँ कितना रोई थी,तडपी थी उसे किस तरह जोर से सीने से लगाया था मगर पिता ने एक झटके से छुडा कर उसे अलग कर दिया था। आज भी माँ के सीने मे उसे वही तडप महसूस हुयी थी।

मईया तुम्हें बुखार है? उसने माँ के आँसू पोँछ करुसे बिस्तर पर लिटा दिया।उमेश और शारदा पास पडी टूटी सी धूल से भरी कुर्सियों पर बैठ गये।शारदा सोच रही थी कि माँ बेटी के ये आँसू अतीत की कितनी धूल समेट रहे थे।

मईया बाकी लोग कहाँ गये?*सुखदा ने इधर उधर नज़र दौडाई

*बेटी क्या बताऊँ? तेरे जाने के बाद छोटा घर छोड कर चला गया था।एक माह बाद तेरे पिता भी चल बसे। दादी भी भगवान को प्यारी हो गयी। बडा राजा वहीं रेहडी लगाता था उसे भी नशे की लत लग गयी। 15 20 दिन हो गये मुझ से झगडा कर के गया तो आज तक नही लौटा। बस मुझे ही मौत नही आयी शायद तुझे देखने की हसरत मन मे थी।

बेटी मै जानती थी कि अभागिन तू नही हम लोग हैं सुखदा से ही घर सुखी था मगर मेरी किसी ने नही सुनी। शार्दा देवी तेरे लिये भगवान बन कर आयी। बस मुझे यही संतोश है।

इतना कुछ घट गया माँ , मुझे खबर तक नही दी? सुखदा रोष से बोली

* बेटी मै तुझ पर इस घर की काली परछाई नही पडने देना चाहती थी तुझे फिर से इस नर्क मे घसीटना नही चाहती थी। तू अपने इन माँ बाप के साथ सुखी रहे यही चाहती थी। अच्छा पहले चाय बनाती हूँ।*

नही मईया आप लेटी रहिये , मै बनाती हूँ। सुखदा उठने को हुयी तो माँ ने उसे जबर्दस्ती बिठा दिया। और खुद चाय बनाने लगी ।

शारदा देवी भगवान आपका भला करे। मेरी बेटी आपके हाथों मे सुरक्षित और सुखी है< अब मै चैन से मर सकूँगी।

* अरे बहिन आप ऐसा क्यों कहती हैं।अपको पता है हमारी बेटी अब डाक्टर बन गयी है,ये भला आपको मरने देगी? * शारदा देवी ने वतावरण को कुछ हलका करने की कोशिश की।

* आपको बहुत बहुत बधाई । बहुत भाग्यशाली है आपकी बेटी जो आप जैसे माँ बाप मिले।* कहते हुये वो चाय बनाने चली गयी।

* सुखदा, तुम्हारी मईया को साथ ले चलते हैं। अकेली है बिमार है कैसे रहेगी। फिर तुम्हें अलग से चिन्ता रहेगी। बेटा जब तक तुम नही मिली थी बात और थी। वो अब भी तुम्हारी माँ है तो तुम्हारा फर्ज है कि उसकी देख भाल करो। जब तक हमे डर था कि कहीं तुम अपनी माँ को देख कर हमे छोड ना दो तो हमने तुम्हें रोके रखा अब हमे पता है कि हमारी बेटी हमे छोड नही सकती तो क्यों ना माँ को भी साथ ही रख लें भगवान की दया से हमारे पास किसी चीज़ की कमी नही है।* उमेश ने सुखदा की ओर देख कर कहा।

* पापा आप महान हैं।* कह कर सुखदा उमेश के गले से लग गयी।

बडी मुश्किल से उन लोगों ने सुखदा की माँ को मनाया। भगवान की दया से उनके पास बहुत कुछ था और उन्हें सुखदा की माँ को अपने साथ रखना मुश्किल नही था। सुखदा सोच रही थी कि क्या आज के जमाने मे उसके मम्मी पापा जैसे लोग मिल सकते है? मईया तो जैसे अपनी आँखें नही उठा पा रही थी। काश कि आज सुखदा के पिता जिन्दा होते तो देखते कि जिसे अभागी कह कर घर से निकाल दिया था , वही उसकी भाग्य विधाता बन कर आयी है।कितनी सौभाग्यशाली है उसकी सुखदा! — समाप्त

Language: Hindi
1 Comment · 1616 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
प्रेरणा
प्रेरणा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Hello
Hello
Yash mehra
दोहा त्रयी . . . .
दोहा त्रयी . . . .
sushil sarna
तानाशाहों का हश्र
तानाशाहों का हश्र
Shekhar Chandra Mitra
बृद्ध  हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
बृद्ध हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
Radiance
Radiance
Dhriti Mishra
ये मौन अगर.......! ! !
ये मौन अगर.......! ! !
Prakash Chandra
सोई गहरी नींदों में
सोई गहरी नींदों में
Anju ( Ojhal )
Perfection, a word which cannot be described within the boun
Perfection, a word which cannot be described within the boun
Sukoon
#बन_जाओ_नेता
#बन_जाओ_नेता
*Author प्रणय प्रभात*
"तेरी यादें"
Dr. Kishan tandon kranti
Apne yeh toh suna hi hoga ki hame bado ki respect karni chah
Apne yeh toh suna hi hoga ki hame bado ki respect karni chah
Divija Hitkari
23/55.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/55.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कुछ लोगो के लिए आप महत्वपूर्ण नही है
कुछ लोगो के लिए आप महत्वपूर्ण नही है
पूर्वार्थ
दिल शीशे सा
दिल शीशे सा
Neeraj Agarwal
तुम्हें पाना-खोना एकसार सा है--
तुम्हें पाना-खोना एकसार सा है--
Shreedhar
जीवन  के  हर  चरण  में,
जीवन के हर चरण में,
Sueta Dutt Chaudhary Fiji
सावन बरसता है उधर....
सावन बरसता है उधर....
डॉ.सीमा अग्रवाल
जो ना कहता है
जो ना कहता है
Otteri Selvakumar
भीड़ पहचान छीन लेती है
भीड़ पहचान छीन लेती है
Dr fauzia Naseem shad
इतना तो करम है कि मुझे याद नहीं है
इतना तो करम है कि मुझे याद नहीं है
Shweta Soni
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
ग़ज़ल/नज़्म : पूरा नहीं लिख रहा कुछ कसर छोड़ रहा हूँ
ग़ज़ल/नज़्म : पूरा नहीं लिख रहा कुछ कसर छोड़ रहा हूँ
अनिल कुमार
किसी की किस्मत संवार के देखो
किसी की किस्मत संवार के देखो
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
उस जमाने को बीते जमाने हुए
उस जमाने को बीते जमाने हुए
Gouri tiwari
क्षणिकाए - व्यंग्य
क्षणिकाए - व्यंग्य
Sandeep Pande
दुनिया जमाने में
दुनिया जमाने में
manjula chauhan
ज़िंदादिली
ज़िंदादिली
Dr.S.P. Gautam
भगवान का शुक्र है आपका कोई पैगाम तो आया।
भगवान का शुक्र है आपका कोई पैगाम तो आया।
Surinder blackpen
हर दिन एक नई शुरुआत हैं।
हर दिन एक नई शुरुआत हैं।
Sangeeta Beniwal
Loading...