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17 Aug 2021 · 1 min read

सितम ढा गया

*** सितम ढा गया (ग़ज़ल) ***
*************************
*****2212 2122 12 *****

दीवानगी का नशा छा गया,
ये जिंदगी का मजा आ गया।

जाने लगी जान दिलबर अभी,
दिल पर हज़ारों सितम ढा गया।

मैं मांगती थी जिसे रोज ही,
मुझको खुशी से खुदा पा गया।

खिल सा गया तन बदन ये यहाँ,
नगमें हसीं वो सनम गा गया।

सीरत रहा चाहता मन सदा,
पर उम्र भर की दगा ला गया।
*************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

1 Like · 310 Views
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