Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Apr 2017 · 3 min read

सिखों का बैसाखी पर्व

जिस बैसाखी पर्व को सिख लोग नाचते-गाते, तलवारबाजी का कौशल दिखाते, ढोल बजाते बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाते हैं, इसी बैसाखी के दिन बालपन से ही युद्ध में निपुण, गुरु परम्परा का अन्त करके ‘श्री गुरुग्रन्थ साहिब’ को ही मानने का संदेश देने वाले एवं वीरतापूर्वक अत्याचारियों से लोहा लेने के लिए धर्म को दुष्टों का विनाश करने का एक मात्र साधन बताने वाले सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की। वैसाखी मेले के अवसर पर गुरुजी ने सारी सिख संगतों को मेले में एकत्रित होने का आदेश दिया। मेले में एक बड़ा पंडाल बनाकर दरवार लगाया गया। आनंदपुर में आयोजित इस उत्सव में गुरुजी का उपदेश सुनने हजारों संगतें उपस्थित हुई।
सिख संगतों से खचाखच भरे पंडाल के दरबार में सब लोग जब टकटकी लगाये गुरु गोविन्द सिंह को देख रहे थे, तभी गुरूजी ने अपने हाथ में नंगी तलवार लेकर ऊँची आवाज में कहा- ‘‘है कोई ऐसा सिख जो हमें अपना शीश भेंट कर सके।’
यह सुनकर सभा में एकत्रित समस्त जन समूह में सन्नाटा छा गया। गुरुजी ने गर्जना-भरे स्वर में इसी वाक्य को तीन बार दुहराया। वाक्य के अन्तिम बार दुहराने के बाद लाहौर के भाई दयाराम उठ खड़े हुये और उन्होंने बड़े ही दृढ़ स्वर में कहा-‘‘गुरूजी आपकी सेवा में मेरा शीश हाजिर है, कृपया भेंट स्वीकार करें।’’
यह सुनकर गुरुजी दयाराम को दरबार के एक कोने बने तम्बू में ले गये और कुछ देर बाद खून से सनी तलवार लेकर दरबार में आ गये। उन्होंने फिर एक और सिख का शीश भेंट करने की माँग दुहरायी। इस बार दिल्ली के धर्मदास ने अपना शीश देने के बात कही। गुरुजी धर्मदास को भी तम्बू में ले गये और पुनः रक्त भीगी तलवार लेकर दरबार में उपस्थित हुये। उन्होंने फिर यही वाक्य दोहराया कि ‘‘अब कौन अपना शीश भेंट करने को तैयार है।’’
गुरुजी की बात सुनकर इस बार समस्त सिख संगतों में भय व्याप्त हो गया और दरबार से लोगों ने एक-एक कर खिसकना शुरू कर दिया। तभी द्वारका के मोहकम चन्द ने उठकर कहा- ‘गुरूजी मेरा शीश आपके चरणों में अर्पित है।’’
गुरुजी मोहकम चन्द को भी तम्बू में ले गये और कुछ देर बाद रक्त से सनी तलवार को लेकर दरबार में हाजिर होकर बोले-‘‘और कौन अपना शीश दे सकता है।“
चौथी बार जगन्नाथपुरी के साहब सिंह और पांचवी बार हिम्मत सिंह ने गुरुजी को अपने शीश भेंट किये। तदोपरांत गुरूजी दरबार में आये और तलवार म्यान में रखकर सिंहासन पर बैठ गये। तम्बू में जिन पाँच सिखों को शीश भेंट कराने के लिए ले जाया गया था, वे जब नयी पोशाक पहनकर तम्बू से बाहर निकलकर दरबार में उपस्थित हुये तो दरबार में बैठे लोगों के आश्चर्य की कोई सीमा न रही।
गुरुजी ने पांचों सिखों को अपने पास बिठाया और सिख संगत के बीच घोषणा की कि जिन पाँच जाँबाज सिखों ने आज शीश भेंट किये हैं आज से ये पाँचों मेरे ही स्वरूप हैं। ये आज से ‘पंच प्यारे’ कहलायेंगे। जिस स्थान पर यह समारोह हुआ उस स्थान का नाम केसरगढ़ रख दिया गया।
गुरुजी ने ‘चरण पाहुल’ को ‘खण्डे के अमृत’ नाम देकर ‘पंच प्यारों’ के साथ-साथ अनेक सिखों को अमृतपान कराकर उनके नाम के पीछे ‘सिंह’ जोड़ने को आदेश दिया और स्वयं अपना नाम भी गुरु गोविन्द राय के स्थान पर गुरू गोविन्द सिंह रखा और गुरूजी ने कहा कि अमृतपान करके ही सिख बना जा सकता है। तभी से कोई पांच सिख जो मर्यादा के पक्के हों, ‘गुरू ग्रन्थ साहिब’ के सम्मुख अमृत तैयार करते हैं।
बैसाखी का त्योहार खालसा के स्थापना दिवस पर पूरे सिख समुदाय में बड़ी धूमधाम से मनाने का प्रचलन तभी से है। इस अवसर पर खालसा पंथ में आस्था व्यक्त की जाती है।
————————————————————-
रमेशराज, 15/109, ईसा नगर, अलीगढ़

Language: Hindi
Tag: लेख
474 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Needs keep people together.
Needs keep people together.
सिद्धार्थ गोरखपुरी
जमाना खराब हैं....
जमाना खराब हैं....
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
भक्त कवि श्रीजयदेव
भक्त कवि श्रीजयदेव
Pravesh Shinde
"सन्देशा भेजने हैं मुझे"
Dr. Kishan tandon kranti
कर्जा
कर्जा
RAKESH RAKESH
हर कोरे कागज का जीवंत अल्फ़ाज़ बनना है मुझे,
हर कोरे कागज का जीवंत अल्फ़ाज़ बनना है मुझे,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
शंभु जीवन-पुष्प रचें....
शंभु जीवन-पुष्प रचें....
डॉ.सीमा अग्रवाल
बेड़ियाँ
बेड़ियाँ
Shaily
THE MUDGILS.
THE MUDGILS.
Dhriti Mishra
महान कथाकार प्रेमचन्द की प्रगतिशीलता खण्डित थी, ’बड़े घर की
महान कथाकार प्रेमचन्द की प्रगतिशीलता खण्डित थी, ’बड़े घर की
Dr MusafiR BaithA
अखंड भारत
अखंड भारत
कार्तिक नितिन शर्मा
"झूठे लोग "
Yogendra Chaturwedi
खुद से प्यार
खुद से प्यार
लक्ष्मी सिंह
मन का जादू
मन का जादू
Otteri Selvakumar
माथे पर दुपट्टा लबों पे मुस्कान रखती है
माथे पर दुपट्टा लबों पे मुस्कान रखती है
Keshav kishor Kumar
"कितना कठिन प्रश्न है यह,
शेखर सिंह
জীবন নামক প্রশ্নের বই পড়ে সকল পাতার উত্তর পেয়েছি, কেবল তোমা
জীবন নামক প্রশ্নের বই পড়ে সকল পাতার উত্তর পেয়েছি, কেবল তোমা
Sakhawat Jisan
सहन करो या दफन करो
सहन करो या दफन करो
goutam shaw
सत्य की खोज, कविता
सत्य की खोज, कविता
Mohan Pandey
■ कामयाबी का नुस्खा...
■ कामयाबी का नुस्खा...
*Author प्रणय प्रभात*
कोई...💔
कोई...💔
Srishty Bansal
जब तक जरूरत अधूरी रहती है....,
जब तक जरूरत अधूरी रहती है....,
कवि दीपक बवेजा
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मुक्तक-विन्यास में रमेशराज की तेवरी
मुक्तक-विन्यास में रमेशराज की तेवरी
कवि रमेशराज
आज का दौर
आज का दौर
Shyam Sundar Subramanian
फ़ितरत
फ़ितरत
Ahtesham Ahmad
*गठरी बाँध मुसाफिर तेरी, मंजिल कब आ जाए  ( गीत )*
*गठरी बाँध मुसाफिर तेरी, मंजिल कब आ जाए ( गीत )*
Ravi Prakash
(6)
(6)
Dr fauzia Naseem shad
वक्त-वक्त की बात है
वक्त-वक्त की बात है
Pratibha Pandey
मां ने जब से लिख दिया, जीवन पथ का गीत।
मां ने जब से लिख दिया, जीवन पथ का गीत।
Suryakant Dwivedi
Loading...