??◆साहिल◆??
दोनों किनारे डूब गए दिले-दरिया तूफ़ानी में।
ऐसी विरह की चोट लगी इस भरी जवानी में।।
सावन बदली घिर-घिर बरसे रस्ता देखे साजन।
कैसे कटेगी रात हिज़्र की इस भरी जवानी में।।
नागिन-सी रात अँधेरी मुझे डसने को है आए।
धक-धक धड़के दिल मेरा इस भरी जवानी में।।
ये बारिस का पानी है या अश्क़ गिरे ज़मीं पर।
आँखों का समंदर बह गया इस भरी जवानी में।।
इस ओर तड़फती हूँ मैं उस ओर मेरे साजन।
दोनों ओर लगी आग बराबर इस भरी जवानी में।।
इंतज़ार की हद से गुज़र कैसे बसर करूँ ज़िन्दगी।
अस्थियाँ ज़िगर की जलती हैं इस भरी जवानी में।।
“प्रीतम” तेरे हिज़्र में धड़के दिल ज्यों दरिया का पानी।
साहिल कहीं नज़र न आए इस भरी जवानी में।।
राधेयश्याम बंगालिया प्रीतम
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