साहब की दाढ़ी में तिनका
चोर की दाढ़ी में तिनका
साहब ने बड़ा ली दाढ़ी
तिनका छुप गया उनका
भीष्म पितामह मिला देश को
गंगनाभ की गूंज
कुरुक्षेत्र बन गया देश
अक्षुणी सेना खींच रही तीर ।
कोरबों को मिला सहारा
भीष्म पिता की गोद में
देश हो गया लाक्षागृह
सफेद दाढ़ी की ओट में ।
विस्व गुरु हो गया देश
जनता ठोक रही ताली
सभी लोगों को मिली समानता
मोक्ष की अलख जगा ली ।
फाइव ट्रिलियन पर मोर नाचता
काला हो गया सफेद
जश्न हो रहा हर घर में
हर जेब में पंद्रह लाख का जोर ।
देश हो गया आत्मनिर्भर
कोर्ट हो गया फेल
भीड़ जजमेंट कर देती सड़क पर
मिडिया की चाटुकारिता हो गयी तेज़ ।
हिन्दू धर्म प्रखर हुआ है
गर्त में था जो दशकों से
गाय खा रही हरा भरा चारा
आँसु निकल रहे भैस के अश्क़ों से ।
रोजगार मिल गया सभी युवा को
लग गयी रेड़ी हजार
राफेल कर रहा एक्सपोर्ट पकोड़े
देश हो रहा माला माल ।
हाथ जोड़कर खेत में खड़ा व्यापारी
लेकर गुंडे साथ
किसान की हो गयी बल्ले बल्ले
फसल का हो रहा डॉलर में निर्यात ,
फाइलों में निर्यात
फोर्व्स में छप रहा किसान का नाम
दिल्ली में बैठा किसान शुक्रिया करने
जाड़ें में खेत का कर रहा
कन्यादान ।