सार ललित छंद
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विषय : मेरे शब्द
विधा : सार ललित छंद
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ऐसे शब्द कहाँ से लाऊं, जो पीड़ा दर्शायें।
इस पीड़ा के वशीभूत सब, नेह सुधा बरसायें।।
शब्द शब्द में भाव छिपे हैं, इनसे मिले मिठाई।
कुण्ठा, चिंतन, संतापो का, यह बस एक दवाई।।
कुछ शब्दों में मिल जाते हैं, जैसे मीर्च खटाई।
तार तार कर संबंधों को, शब्द भरे तीताई।।
शब्द बनाते संबंधों को, जिससे मन हर्षाये।
ऐसे शब्द कहाँ से लाऊं, जो पीड़ा दर्शाये।।
शब्द शब्द से घाव लगे जो, शब्द करे भरपाई।
शब्द दिलाते जग में इज्ज़त, शब्द मिले रुसवाई।।
शब्द दिलाते ऊँची पदवी, यही हमें महकाते।
भर उर में नफरत का अंकुर, हमें यहीं बहकाते।।
शब्द प्रखर हो मन के अंदर, कविता नयी रचाये।
ऐसे शब्द कहाँ से लाऊं, जो पीड़ा दर्शाये।।
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मैं संजीव शुक्ल “सचिन” घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रेषित है।
[ पं.संजीव शुक्ल “सचिन ]