Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jun 2018 · 11 min read

साक्षात्कार

अजमेर के किन्नरों से बातचीत का पहला अंक सलोनी के साक्षात्कार के रूप अलग-अलग पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। पहली कड़ी में कई बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा नहीं हो पाई। हमने एक बार वापस तीनों बहनों का साथ में साक्षात्कार लेने की इच्छा सलोनी जी के सामने रखी उन्होंने हमारी इच्छा की कद्र करते हुए इजाजत दे दी। इस बार इन तीनों बहनों ने बेबाकी से सवालों का जवाब दिया। इन तीनों के बीच जो वार्ता हुई वह कुछ इस प्रकार है-
डॉ फिरोज अहमद व मोहम्मद हुसैन – आपका समाज साक्षात्कार से इतना बचता क्यों है? इसके पीछे क्या कारण माना जाएगा?
सलोनी – पहले इस बात को समझना होगा कि हर समाज के अपने नियम – कानून होते हैं, साथ ही कुछ मर्यादाएं भी। ठीक यही स्थिति हमारे किन्नर समाज की भी है। कई ऐसी बातें जो हमारे हमारी सामाजिक मर्यादाएं हैं वे गोपनीय होती है। वे किसी से भी सांझा नहीं की जा सकती। साक्षात्कार के दरमियान कई ऐसी बातें मुंह से निकल जाती है जिसे निकलना नहीं चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण कारक है। दूसरी बात आप जब साक्षात्कार लेकर चले जाएंगे तो हमारी गोपनियता भंग हो जाएगी। जनता में जाने के बाद हमारी मान्यताओं के प्रति वह अलग अलग तरह की व्याख्याएं करेंगे और अपने विचार व्यक्त करेंगे।
संध्या – बड़ों का मान सम्मान रखना बहुत जरूरी है। हम हमारे बडों के व्यवहार एवं नियमों को अन्य समाज के सामने रखेंगे तो मर्यादा भंग होगी क्योंकि हो सकता है कि किसी सवाल का जवाब हम गलत दे दे। आप उस जवाब को प्रमाण मान लेंगे और जैसा हमने बताया वैसा ही आप प्रकाशित कर देंगे जिससे समाज में गलत जानकारियां पहुंचेगी जो समाज में विसंगतियों का एक कारण बन जाएगा।
काजल- हां मैं सलोनी और संध्या की बात से बिल्कुल सहमत हूं, क्योंकि हमारी कुछ सीमाएं और दायरे रहते हैं हम उन का उल्लंघन नहीं कर सकते। जो नियम हमारे पर लागू किए गए हैं हम उनको हंसी खुशी से पालन करने के लिए तैयार हैं। इनका उल्लंघन करना हम अनुचित समझते हैं।
सलोनी- गलत जवाब या हम नियमों के विरुद्ध कोई बात कह दे तो हमारा समाज हमें बहिष्कृत कर देगा। ऐसे में हम कहां जाएंगे? यह डर हमें हमेशा परेशान करता रहता है।
डॉ फिरोज अहमद व मोहम्मद हुसैन- रोजगार, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों से जुड़े हुए मुद्दों पर अगर आपका समाज बात करने के लिए सामने नहीं आएगा तो समस्याओं का समाधान कैसे होगा?
सलोनी – सुप्रीम कोर्ट ने हमें थर्ड जेंडर की श्रेणी प्रदान कर दी है। इसे तकरीबन 2 वर्ष से ज्यादा का समय हो गया है। सरकार को कई दिशा – निर्देश भी कोर्ट द्वारा दिए गए। पर हुआ क्या? जमीन पर क्यों कोई सुधार हो दिखाई नहीं दे रहा है । आपको दिखता हो तो ठीक है, पर मुझे तो कोई सुधार दिखाई दे नहीं दे रहा है। पब्लिक टॉयलेट तक में हमारे लिए कोई सुविधा अलग से नहीं है। समाज की विकृत सोच के कारण किन्नर बचपन से ही शिक्षा से उपेक्षित हो जाते हैं। हमारी हार्दिक इच्छा होने के बावजूद हम ज्यादा पढ़ नहीं पाते। क्या सरकार ने हमारे लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों के लिए कोई व्यवस्था की है? इतनी पीढ़ियों के बाद भी हमारी स्थिति अछूतों के समान है। खाली नाम थर्ड जेंडर दे देने से कुछ नहीं होता है। अक्सर कहते हैं कि नाचने गाने के अलावा भी किन्नर समाज का जीवन है। पर वह जीवन क्या है? यह कोई नहीं बताता है। किन्नर समाज के नियम – कानून और यहां का परिवेश हमें दुखी भी करता है। कई बार यहां से निकलने की बहुत इच्छा होती है, पर सवाल वही है कि हम यहां से निकलने के बाद जाएंगे कहां? रहेंगे कहां? इसीलिए मन मारकर चाहे सुखी हो या दुखी, हम इस परिवेश में रहने के लिए मजबूर हैं।
डॉ फिरोज अहमद व मोहम्मद हुसैन – जब किसी वर्ग से जुड़े मानव अधिकारों के मुद्दों पर चर्चा होती है, तभी वह सामने आ पाते हैं। अगर आप सवालों से या चर्चा से भागते फिरेंगे तब वह मुद्दे सामने कैसे आएंगे? जनता आपके दर्द को समझ कैसे पाएगी? मेरा तो मानना है कि आपको बात करनी चाहिए। इसके बगैर हम आपके समस्याओं को समझ नहीं पाएंगे।
सलोनी- हम बात करना चाहते हैं, पर बताइए कि हम बात किससे करें? हमारी कौन सुनने वाला है? उदाहरण के तौर पर पुलिस थाने में अगर हमारे समाज यानी किन्नर समाज से ही जुड़ा हुआ कोई मामला लेकर हम जाते हैं तो पुलिस अधिकारियों का नजरिया हमारे प्रति उपेक्षापूर्ण होता है। वे हंसी मज़ाक में हमारे मुद्दों को लेते हैं। कई दिनों तक चक्कर लगाने के बाद व हमारी हंसी उड़ाने के बाद वह कहते हैं कि यह मामला आपके समाज का है अतः आपको स्वयं यह मुद्दा हल करना होगा। ऐसे में हम अपने आप को छला हुआ महसूस करते हैं। सत्ता के सभी नियम- कानून हम पर लागू है, पर हमारे अधिकारों के लिए व्यवस्था द्वारा तैयार किए गए विभागों में जब हम जाते हैं तो उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कौन है जो हमारी पीड़ा सुने? कोई हमारी सुनने के लिए तैयार नहीं है। हम चाहते हैं कि हमारे मुद्दों से जुड़ी कोई हेल्प टेक्स्ट या हेल्पलाइन की व्यवस्था हो। घर परिवार में भी बहू अपने पति, सास, ननद आदि को अपना दर्द बयां कर सकती है। यह व्यवस्था समाज के दूसरे लोगों के संदर्भ में भी है। पर हमारे अखाड़े में चाहे गुरुओं से विवाद हो या किन्नरों में, हमें स्वाभिमान से समझौता करना ही पड़ता है। या फिर आपस में लड़ झगड़ कर मामला अराजकता तक पहुंच जाता है।
काजल – हम भी चाहते हैं कि हम अपना दुख दर्द आप लोगों के सामने बताएं, आप जैसा जीवन बिताएं, हम भी वैसा जिए, पर मेरी एक प्रार्थना आप लोगों से हैं कि किन्नरों को देखकर हंसना बंद करें। जितनी देर आप हंसने में लगाते हैं उतनी देर आप किन्नरों से बात करने में लगाएं। हमारे विचार आप जाने, हम आपके विचार जाने। इससे एक अच्छा सौहार्दपूर्ण माहौल बनेगा। हम एक दूसरे के प्रति अजनबी नहीं रहेंगे। अगर आप हमारा हाथ पकड़कर हमें चलाना चलाना चाहते हैं तो हम भी आपके साथ पूरा सहयोग देते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। अगर यह तालमेल बैठ गया तो मैं आज यह कहती हूं कि एक दिन इस देश पर किन्नर राज करेगा और यह आप लोगों के सहयोग से ही संभव हो पाएगा। क्योंकि एक औरत के समर्थन द्वारा पुरुष ऊंचे ऊंचे पद पर पहुंच जाता है, ठीक उसी तरह से जिस तरह से एक मर्द की सहायता से एक औरत प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद तक पहुंच जाती है। तो मैं जो कह रही हूं वह भी संभव हो सकता है। आप हमारी पीड़ा को समझते भी नहीं है और मदद भी नहीं करते हैं। तब आपको क्या अधिकार है कि आप हमारे घरों में ताक-झाक करें? आप हम पर हंसने वाले कौन होते हैं?
संध्या – कुछ दिनों पहले अखबारों में खबर पढ़ा थी कि किन्नरों को भी आरक्षण मिलेगा। नेताओं, समाजसेवी और बड़े-बड़े लोगों की रेलम पेल हमारे दरवाजे पर लग गई। सभी हमें कई बातें बताने लगे, पर इतना वक्त गुजर जाने के बाद जमीन पर क्या हुआ? इस और कितने कदम बड़े? शायद किसी ने फिर से इस मुद्दे की ओर ताका भी नहीं। हमें तो ऐसा लगता है कि सभ्य समाज अगर हमें आरक्षण या कोई दूसरी सुविधा देने की बात करता है तो वह एक तरह से छलावा है, क्योंकि वह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके अधिकारों या उनके हितों में कोई दूसरा अपना हक जताएं। आधार कार्ड, वोटर id कार्ड, पेन कार्ड एवं पासपोर्ट जैसे कई बुनियादी पहचान पत्रों को बनवाने में हमें कितना संघर्ष करना पड़ता है, यह हम ही जानते हैं। हमारे समाज में कई लोगों के पास यह चीजें उपलब्ध नहीं है। व्यवस्था से उन्हें कई स्तर पर भेदभाव झेलना पड़ता है और अपना रास्ता तय करना होता है। आगे एक सोचने की बात यह है कि बाहर से आने वाले विदेशी सैलानियों व नागरिकों के प्रति अतिथि देवो भवः के भाव हमारे देश में रखे जाते हैं, रखना भी चाहिए अच्छी बात है। पर मेरा सवाल यह है कि जो आपके देश में ही उपेक्षित किन्नर समाज है उसको किस श्रेणी में आप रखते हैं? उनकी स्थिति कैसी है? कभी सोचा है आपने? हम हिंदुस्तान के नागरिक हैं, पर हमारे से ज्यादा आप विदेशियों को लाड – प्यार करते हैं और महत्व देते हैं। उनको महत्व दो पर क्या आप हमारी सुध तक नहीं लेंगे?
डॉ फिरोज अहमद व मोहम्मद हुसैन – आपकी समस्याओं पर जो शोध कार्य हो रहा है, उन से आप क्या अपेक्षा रखती हैं?
सलोनी – देखिए मेरा तो मानना है कि यह सब केवल औपचारिकता मात्र है। क्योंकि 10- 12 सालों से तो मैं भी देख रही हूं कि अखबार वाले, न्यूज़ चैनल वाले, साहित्यकार, youtube वाले आदि आते हैं और हमारे दर्द को उकेर कर चले जाते हैं। बाद में उन समस्याओं पर विचार तक भी करते हैं या नहीं, कुछ पता ही नहीं है। अगर इन इन सभी से सुधार होता तो वह कब का हो चुका होता। 10 – 12 साल की अवधि अपने आप में कोई कम अवधि नहीं होती है। हमें तो लगता है कि यह सभी चीजें हैं जो हमारे दर्द को कहने वाली है, उन्हें रिकॉर्ड करके शायद कचरे की टोकरी में फेंक दी जाती है।
डॉ फिरोज अहमद व मोहम्मद हुसैन –काजल! आपको क्या लगता है कि आजकल जो आपकी समस्याओं को लेकर शोध हो रहा है वह एक तरह की औपचारिकता ही है? सलोनी की इस राय से आप सहमत हैं?
काजल- हां, वास्तव में मैं सहमत हूं। आपको मालूम होना चाहिए कि आजकल हमारे समाज से जुड़ी हुई काफी सारी सामग्री इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। इसके अलावा आजकल पत्र- पत्रिकाओं में भी जानकारी आ रही है। उससे भी आप हमारे बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इन सब साक्षात्कारों या जानकारियों का दौर पहले भी कई बार चला है, पर फायदा कुछ भी नहीं हुआ है।
सलोनी – आप जानते होंगे कि किन्नर केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं बसते हैं, बल्कि उन का फैलाव पूरे विश्व में बिखरे हुए रूप में मिल जाएगा। भारतीय समाज में किन्नर को सामाजिक एवं लैंगिक भेदभाव के कारण उसको समाज से अलग कर दिया जाता है, पर बाहर ऐसा नहीं है। वहां की सरकारे उनके लिए वह सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाती है जो व्यक्ति को मुख्यधारा से जोड़े हुए रखती हैं। यह लोग वहां के जन समुदाय में पूर्ण रूप से घुल मिल गए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सार्वजनिक स्थानों पर भ्रमण, सामाजिक एवं अन्य सभी समुदायों में उनकी बराबरी की भूमिका रहती है। पर एशिया की सरकारें किन्नरों के प्रति भेदभाव का रवैया रखती है। सन 2017 तक तो किन्नरों के लिए इस प्रदेश में जमीन पर कुछ होता हुआ नहीं दिखता है। किन्नर किसी भी देश में हो सकते हैं, या कहें तो विश्व के किसी भी हिस्से में पैदा होते रहते हैं और होते रहेंगे। पर जहां पर भेदभाव होता है वहां पर यह वर्ग हाशिए पर चला जाता है। साक्षात्कार लेने वाले, कहानियां लिखने वाले या सरकारी घोषणाओं पर करने वाले फिर मुड़कर हमारी तरफ नहीं देखते हैं। जमीन से सुधार की बहुत आवश्यकता है।
डॉ फिरोज अहमद व मोहम्मद हुसैन – आप सभ्य समाज को क्या संदेश देना चाहेंगी?
काजल- भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़कर अन्य देशों के लोग किन्नर समाज के प्रति जैसे सोच है वैसी सोच हमारी देश की जनता भी अपनाएं।
सलोनी- देखिए हमारे समाज को प्रारंभ से ही ऐसे बच्चों को चयनित करने की आवश्यकता है जिनकी बनावट और व्यवहार अन्य बच्चों से भिन्न है। स्कूल और परिवार में ऐसे बच्चों को चयनित कर उनको उचित माहौल में शिक्षित करने की आवश्यकता है। उनको शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए विशेष छूट मिलनी चाहिए। इसके बिना ऐसे बच्चे किन्नर समाज की काल- कोठरियों में आने के अलावा कोई रास्ता नहीं ढूंढ पाते हैं।
संध्या- अक्सर जो साक्षात्कार, tv प्रोग्राम, कहानियों के माध्यम से हमारे दर्द को उकेरने का काम किया जाता है। वह कार्य वहां तक सीमित न रहकर जमीनी स्तर पर बदलाव की ओर बढ़ना चाहिए। ऐसा ही एक प्रोग्राम आमिर खान का आया था। सच का सामना नामक सीरियल में यह सब दिखाया जा रहा था, पर हुआ क्या? कहानी सुनी और बात खत्म। कोई भी प्राणी समाज से अलग नहीं रह सकता किन्नर भी। ऐसे में हमारी ओर बुनियादी तौर से सुधार होना चाहिए।
सलोनी – सार्वजनिक यातायात के साधनो में स्त्री-पुरुष को छूट देने के संदर्भ में अलग-अलग केटेगरी है, इस श्रेणी में किन्नर क्यों नहीं है। जैसे नोटबंदी औरतों के लिए हुई जितनी सुविधाएं पुरुषों के लिए हैं जितनी सुविधाएं औरतों के लिए है, पर किन्नर की जगह कहां है? टैक्स में औरतों के लिए इतना देना है, पुरुषों के लिए इतना देना है, यह सब मानक तय कर रखे हैं पर किन्नरों के लिए क्या है? औरत कितना सोना रख सकेगी, पुरुष कितना सोना रख सकेगा, लेकिन किन्नर समाज के लिए क्या है? इन सभी दृष्टिकणों से लगता है कि किन्नर समाज को जानबूझकर विमर्श के बिंदु से बाहर रखा जा रहा है।
काजल – मैं इस समाज से यह सवाल पूछती हूं कि किन्नर आता कहां से है? यह आप ही के समाज की देन है। ईश्वर ने तो हमें मानव समाज के अंदर जन्म दिया, पर आपने आपके समाज ने ही हमें घर की गंदगी के समान बाहर निकाल दिया। क्या घर में कोई विकलांग बच्चा पैदा होता है तब क्या उसकी उसकी आप कोई परवरिश नहीं करते हैं? वह बच्चा अगर खाट पर पड़ा पड़ा उम्र बिता दें तो भी आप उस बच्चे को परिवार से अलग नहीं करते हैं। जब आपके समाज में उन लोगों की परवरिश हो सकती है तो किन्नरों की क्यों नहीं? यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि आप शरीर से अक्षम विकलांगों को सहायता देने के लिए तैयार हैं जो दूसरों पर निर्भर होते हैं, पर किन्नर वर्ग के पास में काम करने की हिम्मत पूर्ण रुप से होती है वे शारीरिक रूप से विकलांग भी नहीं होते हैं, तब भी उन्हें अस्वीकार कर दिया जाता है। जब सभ्य समाज हमें स्वीकार नहीं करेगा, तभी तो हम उनसे दूर अपने ही अखाड़ों में गुरु के नियमों के अनुसार चाहे वह नियम अच्छे हो या बुरे मजबूरन जीना पड़ता है। जहां तक ऐसे बच्चों को हमारे वर्ग द्वारा आश्रय देने की बात है, रोड़ पर मरते हुए एवं ठोकरे खाते हुए किन्नर बच्चों को एक छत उपलब्ध करवाना कोई गंदी बात नहीं है। हमारे ngo यही है। सरकार ने इन संगठनों को समर्थन एवं सुविधाएं नहीं दी है। ऐसी संस्थाओं को सपोर्ट करने की बहुत जरूरत है। सड़क पर कोई झगड़ा हो गया हो तो हमारी मदद कौन करेगा? ऐसी स्थिति में हम अपने आप को असहाय महसूस करते हैं। कहीं कोई किन्नर मर गया, किसी कोर्ट कचहरी के मामले में फस गया तो उसे रिपोर्ट दर्ज कराने से लेकर मुकदमा लड़ने तक लम्बी जंग लड़नी पड़ती है, एक तो सिस्टम के साथ दूसरी समाज की सोच के साथ। बहन को कोई छेड़ता है तो चार भाई खड़े हो जाते हैं और हमें कोई छेड़ता है तो कितने लोग खड़े होते हैं? मैं यह कहना चाहती हूं कि देश वासियों हमारे लिए खड़ा होना शुरु कीजिए क्योंकि हम लोग भी तो आप लोगों की गंदगी या उठाकर हमारे अखाड़ों में उन्हें पाल रहे हैं। किन्नर के रूप में जन्म लेने वाले बच्चों को आप दर दर की ठोकरें खाने के लिए घर से बाहर मत निकालिए, उन्हें स्वीकारिये क्योंकि किन्नर आप पर बोझ नहीं बनेगा। यह बात ध्यान रखने लायक है कि किन्नर भले ही औलाद पैदा करने में सक्षम नहीं है, पर अनाज तो पैदा कर ही सकता है।

Language: Hindi
454 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक शाम ऐसी कभी आये, जहां हम खुद को हीं भूल जाएँ।
एक शाम ऐसी कभी आये, जहां हम खुद को हीं भूल जाएँ।
Manisha Manjari
बड़ी बात है ....!!
बड़ी बात है ....!!
हरवंश हृदय
कोई ना होता है अपना माँ के सिवा
कोई ना होता है अपना माँ के सिवा
Basant Bhagawan Roy
सड़क
सड़क
SHAMA PARVEEN
तुम
तुम
Sangeeta Beniwal
मौन शब्द
मौन शब्द
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
अब प्यार का मौसम न रहा
अब प्यार का मौसम न रहा
Shekhar Chandra Mitra
भ्रम जाल
भ्रम जाल
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
"वक़्त के साथ सब बदलते हैं।
*Author प्रणय प्रभात*
मैं भी डरती हूॅं
मैं भी डरती हूॅं
Mamta Singh Devaa
दूसरों की राहों पर चलकर आप
दूसरों की राहों पर चलकर आप
Anil Mishra Prahari
तेरा पापा मेरा बाप
तेरा पापा मेरा बाप
Satish Srijan
मातृ दिवस या मात्र दिवस ?
मातृ दिवस या मात्र दिवस ?
विशाल शुक्ल
24/250. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/250. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मेरा एक मित्र मेरा 1980 रुपया दो साल से दे नहीं रहा था, आज स
मेरा एक मित्र मेरा 1980 रुपया दो साल से दे नहीं रहा था, आज स
Anand Kumar
नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं
Kavi praveen charan
"अटल सत्य"
Dr. Kishan tandon kranti
खुद में बदलाव की एक तमन्ना करिए
खुद में बदलाव की एक तमन्ना करिए
Dr fauzia Naseem shad
सपना
सपना
ओनिका सेतिया 'अनु '
जब तक हो तन में प्राण
जब तक हो तन में प्राण
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ट्रेन दुर्घटना
ट्रेन दुर्घटना
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
When the ways of this world are, but
When the ways of this world are, but
Dhriti Mishra
कैसा
कैसा
Ajay Mishra
तुम्हें भूल नहीं सकता कभी
तुम्हें भूल नहीं सकता कभी
gurudeenverma198
💐प्रेम कौतुक-335💐
💐प्रेम कौतुक-335💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ज़िन्दगी के सफर में राहों का मिलना निरंतर,
ज़िन्दगी के सफर में राहों का मिलना निरंतर,
Sahil Ahmad
गांधी से परिचर्चा
गांधी से परिचर्चा
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
The greatest luck generator - show up
The greatest luck generator - show up
पूर्वार्थ
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*
Ravi Prakash
इक्कीस मनकों की माला हमने प्रभु चरणों में अर्पित की।
इक्कीस मनकों की माला हमने प्रभु चरणों में अर्पित की।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
Loading...