साकी, शराब और मैं..
साकी तुझे कैसे बताऊँ मैं क्यो शराब पीता हूँ.?
जब भी तेरी गली से गुजरता हूँ तो वस पीता हूँ ।
तेरी मोहब्बत मुझे खींच लाती है साकी,
मेरी मोहब्बत मुझे मजबूर कर देती है इसलिए पीता हूँ।।
तुझे बनाया है साकी, शराब की बोतल की तरह,
हुश्न दिखता है बाहर से, नशा रहता है अंदर रूह की तरह।।
तूने ना जाने कितनों को शायर बना दिया,
शराब तूने ना जाने कितनों को वे वक्त सुला दिया।
जो भी किया तूने अच्छा ही किया,
जाग कर भी लोगों ने जीवन नशेबाजो की तरह जिया।।
पी कर नशा शराब की बोतल से, मैंने घर को जला दिया।
सब कुछ राख कर दिया मैंने, मगर तेरी मोहब्बत को बचा लिया ।।
शौक के लिए पीता था, अब आदत बन गयी।
अच्छा हुआ जिंदगी से, कुछ सराफत तो कम हुई।।
सरीफों का समाज हर आदत को तराजू से तौलता है।
पकड़कर तराजू उल्टा, हर बार अपनी ही बोली बोलता है।।
शराब की बूंदे, मेरे दिल पर ओस की तरह फैल जाती है।
जब भी दर्द होता है, दवा बनकर अंदर चली जाती है।।