साँप पाले जायेंगे।
फैसले जनहित के सारे कल पे टाले जायेंगे।
आस्तीनों में दुबारा साँप पाले जायेंगे।।
खून होगा आपसी सद्भाव का चारों तरफ।
धर्म मजहब जाति के मुद्दे उछाले जायेंगे।।
भेड़ियों के हौसलों को देखकर यह लग रहा।
अम्न के रक्षक सभी अब मार डाले जायेंगे।।
हुस्न से जो कर रहा है इश्क वादे सैंकड़ों।
जिस्म के पाते ही सारे तोड़ डाले जायेंगे।।
दीप बाइज्जत बरी होंगे असल अपराधी अब।
और भोली गरदनों के पार भाले जायेंगे।
प्रदीप कुमार “दीप”