सर झुका सकते नहीं
शकील बदायूंनी के जन्मदिन पर विशेष:
इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
फ़िल्म गंगा जमुना का ये गीत हो या फिर फ़िल्म लीडर का गाना –
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं
शकील बदायूंनी के ये गीत नहीं बल्कि एक आंदोलन है। बरसों पुराने ये नग़में आज भी अमर और लाजवाब है। इनको सुनकर देश के जांबाज़ सैनिकों के ख़ून में दुश्मन के ख़िलाफ़ उबाल आता है तो नौनिहालों के मन में देशभक्ति की भावना के अंकुर ज़रूर फूटते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर इन गीतों की गूंज कानों में रस ज़रूर घोलती है। इल्म से फ़िल्म तक का कामयाब सफ़र तय करने वाले और तमाम फ़िल्मों में सदाबहार नगमें लिखकर अमर होने वाले शायर शकील बदायूंनी का जन्मदिन भी स्वतंत्रता दिवस पखवाड़े में 3 अगस्त को आता है। शहर के हाफ़िज़ा सिद्दीक़ इस्लामिया हायर सेकेंड्री स्कूल से 10वीं पास किया। इसी बीच 24 साल की उम्र में सलमा बी के साथ शादी हो गई। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 1937 में बी.ए. पास किया और शायरी के समंदर में डूबते चले गए। अक्सर यूनिवर्सिटी लेवल पर शायरी के मुकाबलों में शरीक होकर कई अवार्ड हासिल किए। इसके बाद 1943 तक दिल्ली में सप्लाई आफिसर के पद पर नौकरी की। सन 1946 में उन्होंने दिल्ली के एक मुशायरे में नई ग़ज़ल पढ़ी –
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गमे आशिक़ी से कह दो रहे आम तक न पहुंचे,
मुझे ख़ौफ़ है कि तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे।
मैं नजर से पी रहा था तो दिल ने बद दुआ दी,
तेरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुंचे।
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इसको सुनकर फ़िल्म डायरेक्टर ए.आर. कारदार ने फ़िल्मी दुनिया में आने का बुलावा दे दिया। मुंबई पहुंचकर संगीतकार नौशाद से मुलाक़ात हुई। उनके संगीत वाली फ़िल्म दर्द के सभी गाने लिखने का मौका मिला। नौशाद के कहने पर शकील ने
हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे,
हर दिल में मुहब्बत की आग लगा देंगे…
गीत लिखा। यह सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि शकील ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने उड़न खटोला, कोहिनूर, मुगले आजम, आन दीदार, गंगा-जमुना, लीडर, संघर्ष, आदमी समेत लगभग 100 फिल्मों के गाने लिखे।
इतना होने पर भी कुछ साहित्यकार शकील बदायूंनी को रूमानी शायर मानते हैं। अगर ईमानदारी के चश्मे से देखा जाए तो उनके कलाम में हर वह रंग शामिल है, जिसकी समाज को ज़रूरत है। उन्होंने समाज की सच्ची तस्वीर को भी बयां किया है। आध्यात्म और रूमानियत का अनूठा संगम भी पेश किया है। यहां तक कि सभी पहलुओं पर ख़ूब बेबाकी और साफ़गोई से काम किया है। शकील साहब ने शायरी में समाज और ख़ुद से एक साथ सवाल किए हैं। उसकी एक बानगी यह भी है –
न सोचा था दिल लगाने से पहले,
कि टूटेगा दिल मुस्कुराने से पहले।
हर गम उठाना था किस्मत में अपनी,
खुशी क्यों मिली गम उठाने से पहले?
सामाजिक सौहार्द के लिए गई बानगी देखिए –
प्यार की आंधी रुक न सकेगी नफरत की दीवारों से
खूने मुहब्बत हो न सकेगा खंजर से, तलवारों से।
शकील बदायूंनी को 8 बार मिला फिल्म फेयर अवार्ड:
भजन, नात दोनों में कमाल : शकील बदायूंनी अपने समय के इकलौते सभी के महबूब शायर हैं। उन्होंने भक्ति रस में खूब कलाम लिखे। ऐसा नहीं कि किसी ख़ास वर्ग की भक्ति में लिखा हो, बल्कि अन्य धर्मों का भी ध्यान रखा है। उनकी लिखी नात और मनकबत को खूब पसंद किया जाता है। वहीं भजनों में भी बराबर की हिस्सेदारी रही है। फ़िल्म बैजू बावरा में लिखा उनका गीत देखिए –
मन तड़पत हरि दर्शन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
विनती करत हूँ रखियो लाज
तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुन मोरे व्याकुल मन का बात
मन तड़पत हरि दर्शन को आज
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शकील बदायूंनी ने राधा के प्यारे कृष्ण कन्हाई, इंसाफ का मंदिर, मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे… जैसे कई भजन लिखे जिन्हें ख़ूब पसंद किया जाता है। इसी तरह उन्होंने अपनी अकीदत को यूं भी बयां किया है –
काश मौत ही न आ जाए ऐसे जीने से,
आशिके नबी होकर भी दूर हैं मदीने से।
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सभी को जोड़ते हुए कहते हैं –
मंदिर में तू मस्जिद में और तू ही है ईमानों में,
मुरल की तानों में तू और तू ही है अजानों में।
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अमर हो गए गीत : उनके गीत इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओं चलके… सुनकर देशभक्ति की भावना का संचार होता है। वहीं अन्य गाने भी प्रेम का संचार करते हैं। गीत प्यार किया तो डरना क्या, ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले, आज पुरानी राहों से, जिंदगी देने वाले सुन, मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए, अफसाना लिख रही हूं, यह जिंदगी के मेले, छोड़ बाबुल का घर, जोगन बन जाऊंगी सइयां तोरे कारन, ओ दुनिया के रखवाले, चले आज तुम जहां से, चौदहवीं का चांद हो या आफताब, तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया, मधुबन में राधिका नाचे रे… आदि गीतों ने अपने समय में खूब धूम मचाई और आज भी प्रासंगिक हैं।
आठ बार मिला फिल्म फेयर अवार्ड : उनके लिखे गानों वाली तीन फ़िल्मों को लगातार फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड मिला था। फ़िल्म चौदहवीं का चांद, घराना, बीस साल बाद को यह अवार्ड मिला था। उन्हें व्यक्तिगत रूप से आठ बार यह एवार्ड हासिल हुआ, जो ख़ुद मिसाल है। सदी की सबसे अच्छी फ़िल्म मुग़ले आज़म के सभी गाने लिखे। सैकड़ों फ़िल्मों में अमर गीत लिखकर सारी दुनिया में अपने वतन का नाम रोशन किया।
साहित्य में भी महारत : आमतौर पर शकील बदायूंनी को फ़िल्मी या रूमानी शायर कहा जाता है। उनकी तमाम ग़ज़लें और भक्तिमय शायरी इस का पुख़्ता सुबूत हैं कि वह सिर्फ़ फ़िल्मी शायर नहीं थे। उन्होंने साहित्य में भी भरपूर योगदान दिया है। उनकी किताब रानाइयां, नगमा-ए फिरदौस, सनम-ओ-हरम, दबिस्तान, धरती को आकाश पुकारे अद्वितीय शायरी से भरी पड़ी हैं। ज़रूरत है इनको करीब से देखा और समझा जाए।
– अरशद रसूल