सरहद…एक सीमा
सरहद पार किया
अपनों को ही ताड़ दिया
मिट्टी की सौंधी खुशबू को
लहू से है लाल किया
जिन्हें आना है,आएँगे
जिन्हें जाना था,चले गये
क्या जाने वाले लौट के आ पाएँगे
ये तेरा ये मेरा
किसने जाना ये सबका
एक जमीन के टूकड़े को
मुल्कों में बाँट दिया
घर सूना,गलियाँ खाली
बस्ती भी है बुझी-बुझी
एक किसी चिनगारी ने
घरों को है जला दिया
दामन में थे तारे सारे
नीली छतरी के साये में
तारों को भी तोड़
आसमान को वीरान किया
अब तो ये आलम है
घर बन रहा काफिला है
काफिले से भीड़ है
और दर्द बड़ा गंभीर है
एक आहट सुकून की
मोड़ देगी सारे काफिले को
आअो काफिलों को
घरों में तब्दील करें
जख्म तो भर जाते हैं
मरहम की मजबूत पट्टी पर
दर्द कभी भरता नहीं
समय के चलते पहिये पर
सरहद तो सारा अपना है
पर हद को किसने समझा है.