??सरकार तुम्हारी आँखों में??
सजा है जन्नत का दरबार तुम्हारी आँखों में।
खोया हुआ हूँ मैं तो सरकार तुम्हारी आँखों में।।
कोई मंदिर,मस्ज़िद,गिरजा,गुरुद्वारों में खोजे।
मुझे हो गया कुदरते-दीदार तुम्हारी आँखों में।।
पर्वत से ऊँचा,सागर से गहरा है दोस्त मेरे!
फैला ये प्यार का विस्तार तुम्हारी आँखों में।।
कौन अपना-पराया,ऊँचा-नीचा है मन-मंदिर।
सबसे समदृष्टि का व्यवहार तुम्हारी आँखों में।।
सपने में देखा न जिसकी थी हाथों में ही रेखा।
मिला सानिध्य का वो सार तुम्हारी आँखों में।।
कर्म सर्वोपरि,विजय सच्चाई को है सदा मिली।
बुराई का वस्त्र रहा तार-तार तुम्हारी आँखों में।।
“प्रीतम”तेरी प्रीत जीवन की रीत बन गई अब।
देखता हूँ सुख-दुख का संसार तुम्हारी आँखों में।