सरकारी लापरवाही और पाखंड से मरती जनता का जिम्मेवार कौन…?
कोरोना संकट से आज पूरा देश जूझ रहा है। हर तरफ हताशा और निराशा का माहौल बना हुआ , हर तरफ से बुरी खबर ही सुनाई पड़ रही है । निराशा का माहौल इतना गहराया हुआ है कि जो लोग शारीरिक रूप से कमजोर है या बुजुर्ग है वो हर दिन को अपने लिए सौभाग्य समझ रहे हैं, जैसे कि उन्होंने इस दिन जीने की आश ही छोड़ रखी हो।
आम आदमी कोरोना से ज्यादा सरकारी अव्यववस्था और सरकारी निकम्मेपन से ज्यादा परेशान है क्योंकि कोरोना तो पिछली साल भी था किंतु इतने मरीज नही थे जिससे सरकारी व्यवस्था की पोल खुलती किन्तु अब जैसे ही मरीजो की संख्या बढ़ी उससे पहले सरकारी तंत्र मरीज हो गया ।
सरकारी लापरवाही की मिसाल तो यही देख जान पड़ती है कि एक तरफ प्रधन्मन्त्री जी ने तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का ठेका राम मंदिर के लिए दिया , ग्यारह सौ करोड़ का ठेका नए संसद भवन के लिए दिया और करोड़ों रुपये बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियों में फूंक दिए और सोलह सौ करोड़ रुपये के अपने निजी जेट हवाई जहाज बनाबाए किन्तु कोरोना बीमारी से बचने के लिए एक भी उपाय नही किया जो उपाय वैक्सीन के रूप में किया वो भी आधा अधूरा ,जबकि दूसरी तरफ सरकारी संस्थाएं कोरोना बीमारी की दूसरी लहर की लगातार चेतावनी देती रही ।
लापरवाही की हद तो तब हो गयी तब लगातार लाखों में कोरोना मरीज हॉस्पिटल आने लगे ,हॉस्पिटल धरासायी होने लगे उसके वाद भी देश का शीर्ष नेतृत्व चुनावी रैलियों में बिना मास्क और सामाजिक दूरी के वोट मांगता रहा। जब देश का प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इस तरह का व्यवहार करेंगे तो आम आदमी से कोरोना के प्रति चेतना कितनी समझी जा सकती है।
आम आदमी अपने हर खरीद पर और अपनी हर कमाई पर सरकार को टैक्स भुगतान करता है जिससे उससे सामूहिक रूप से सार्वजनिक सुरक्षा मिलती रहे और सरकारी तंत्र उस पैसे को अपनी योजनाओं में धुएं की तरह उड़ा देता है ,ऐसी योजनाओं में जिससे स्वयम की पार्टी का नाम हो वाह वाही हो , और आम जनता समझती है कि सरकार उनके लिए प्रतिबद्ध है ।
सच बताओ तो सरकार ने पिछले सालों में देश को केवल धार्मिक कर्मकांड और अंधविस्वास में धकेला है ना कि कोई वैज्ञानिक सोच प्रदान की हो, इसी कारण है आज ना तो भगवान और ना ही सुल्तान देश को बचा पा रहे हैं ।
देश की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से नाकामी के दौर से गुजर रही है , देश के शमशानों में चिताओं के अंबार लगे है और जल्लाद थक रहे हैं । शमशानों से जलती चिताओं के धुएं ऐसे उठ रहे हैं जैसे यही पर फेक्टरियों की चिमनिया हों किन्तु सरकार आज भी केबल अपना पक्ष मजबूत करती हुई दिख रही है ।
इसलिए अब देश वासियों के लिए जरूरी है कि आस्था की
समझ नही आता सरकार ने अपने कार्यकाल में किया क्या है..? महंगाई शीर्ष पर(पेट्रोल,डीजल,गैस)..!
बेरोजगारी शीर्ष पर..!
80% हिंदुओं को मुसलमानो से डर शीर्ष पर..!
20% मुसलमानो को हिंदुओं से डर शीर्ष पर ..!
साम्प्रदायिक तनाव और दंगे शीर्ष पर.. !
टेक्सदर भुगतान शीर्ष पर..!
बैंक की नकारत्मक ब्याज दर शीर्ष पर..!
बाहरी देशों (चीन-पाक) से असुरक्षा शीर्ष पर..!
लाभप्रद सरकारी संस्थाओं की बिक़बाली भी शीर्ष पर..?
महिला बलात्कार और अराजकता भी शीर्ष पर..!
और अब कोरोना मरीजों की संख्या में तो देश विस्वगुरु और आत्मनिर्भर हो गया है । साथ ही अंधविस्वास में भी देश शीर्ष पर पहुंच गया है, थाली बजाओ ,ताली बजाओ, और दिए जलाओ ,जिससे कोरोना भाग जाएगा ।
इसलिए अब समय आ गया है कि देश की जनता को अंदभक्ति छोड़कर एक वैज्ञानिक सोच की तरफ देश को आगे बढ़ाने पर जोर देंना चाहिए और सरकार पर भी इसी तरफ आगे बढ़ने का दबाब बनाना चाहिए ।