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18 Feb 2021 · 5 min read

सरकारी दफ्तर में भाग (4)

यहाँ आकर मेरी मुलाकात रहीम भाई से हुई, उन्होने मेरे उस बुरे वक्त में, मेरे बडे भाई की तहर मेरी मदद की। रहीम भाईजान से मेरी मुलाकात एक साहूकार के घर पर हुयी। वो उस साहूकार के घर पिछले कई वर्षाे से काम करते थे। रहीम भाईजान ने ही उनकी गारन्टी ली, तब ही उन्हे साहूकार के घर काम मिल पाया। संजीव की माँ ने उसको बताया था, कि रहीम मामा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, एक हादसे में उनकी बीबी, बेटी, बेटे सभी उन्हें अकेले छोड़कर चले गये। और उस दिन से तुम्हारे रहीम मामा ही हमारे परिवार के सदस्य जैसे हो गये।
शायद यही कारण था, कि संजीव के जीवन में जितना राम का महत्व था। उतना ही रहीम का था। क्योकि जहाँ एक ओर उसे उसकी माँ के द्वारा राम के आदर्शवादी जीवन की प्रेरणा मिली थी, वही रहीम मामा के द्वारा उसे कुरान-ए-शरीफ की आयते पढ़ने को मिला था। संजीव राम-रहीम दोनो के प्रति आस्था रखता था।
संजीव को अपनी मां की ऐसी हालत देखकर अपने कभी-2 अपने पुर्खाे और अपने पिता को बुरा-भला कहने का मन करता, लेकिन संजीव यह भी जानता था, कि उसके बस में कुछ नही है।
उस शाम संजीव की अपनी माँ के संघर्षाे की लम्बी दाँस्तान याद करते-करते पता नहीं कब आँख लग गई, पता ही नही चला। शायद यही वजह थी, कि संजीव ने अपनी पढ़ाई बहुत मेहनत से की थी, और वो अपनी सभी कक्षाओं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण रहा था। एम. ए. की परीक्षा उसने 80 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी। संजीव की आँखों के सामने से उसकी जिन्दगी के 20 वर्षाें का दृश्य गुजर रहा था। और अपनी बीती जिन्दगी के बारे में सोचते-सोचते न जाने कब उसकी आँख लग गई, पता ही नही चला।

अगली सुबह संजीव के जीवन में एक नई ताजगी लेकर आयी, अक्सर ही संजीव अपने घर के पास बनी मस्जिद की पहली अजान के साथ उठ जाता था। सुबह के ठीक 4ः00 बजे होती थी अजान। संजीव और उसके रहीम मामा मंे इसी बात को लेकर शर्त लगी रहती, कि देखते हैं कि कल अजान से पहले कौन उठता है। इसलिए संजीव उस दिन अजान के 5 मिनट पहले ही गया था। जैसे ही 5 मिनट बाद मस्जिद से अजान की अजान हुयी, उस अजान के साथ रहीम मामा भी उठ गये। रहीम मामा के उठते ही संजीव बोला, ‘‘मामू देखा ! मैं आज फिर जीत गया ! आप हार गये।’’ संजीव ने अपने दोनों ऊपर हवा में ऐसे उठाये जैसे संजीव सुबह जल्दी उठने की शर्त में नही, बल्कि कोई क्रिकेट मैच जीता हो। संजीव और रहीम मामू के ठहाके मार जोर से हँस पड़े, उन दोनों के ठहाको की आवाज से बगल के कमरे में सो रही संजीव की माँ भी उठ गयी। और बोली तुम दोनो मामा-भाँजों को और तो कोई काम है, बस सुबह-सुबह उठकर दाँत खिहाड़कर खी-खी हँसने लगते हो।
संजीव की माँ की इस डाँट से दोनो मामा-भाँजे बिल्कुल शान्त हो गये, और दोनो ने अपने मार्निंग सूज पहने और रोज की तरह मार्निंग वाॅक पर निकल गये।
संजीव अपने मामा के साथ वाॅक पर निकल ही रहा था, कि पीछे से उसकी माँ रोका और कहा, ‘‘इतनी जल्दी कहाँ की है, ठहलने ही जा हो।
संजीव, ‘‘क्या है माँ ?’’
सीता, ‘‘अरे इन्टरव्यू के लिए कितने बजे जायेगा।’’
संजीव, ‘‘माँ 7 या 7ः30 तक निकल जाऊँगा।’’

इतना कहकर संजीव अपने मामू के साथ मार्निंग वाॅक पर निकल गया। संजीव के मामा उसके साथ रोज जाया करते थे मार्निंग वाॅक पर। संजीव की माँ सीता ने अपने बेटे के जाने की तैयारी करने लगी। रहीम मामू अपनी 15 वर्ष की आयु से रोज ठहलने जाया करते थे। और यही कारण था, कि रहीम मामा 75 वर्ष की उम्र में भी 35-40 वर्ष के युवा दिखते थे। सुबह की ताजी ठण्डी हवा लेने का बहुत शौक था उन्हें। रहीम मामा ने संजीव को बताया था, कि पहले वो अपने बेटे के साथ जाते थे, मामू अपने परिवार के बारे में बताते हुये हमेशा कुछ मायूस से हो जाते थे। लेकिन अपने परिवार को खो देने के बाद संजीव के मामा ने उसे मार्निंग वाॅक ले जाने लगे। शुरू-शुरू में संजीव को भी सुबह-सुबह उठना, उनके साथ मार्निंग वाॅक पर जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। लेकिन धीरे-धीरे संजीव को रहीम मामू का साथ पंसद आने लगा। रहीम मामू सुबह-सुबह संजीव के साथ टहलते-टहलते कुरान-ए-शरीफ के बारे में बताते थे। शायद यही वजह थी, कि संजीव गीता-भागवत, रामायण के साथ-साथ कुरान की आयतें भी पूरे सम्मान से पढ़ता था। क्योंकि उर्दू पढ़ना सिखा दिया था उसको, उसके रहीम मामू ने उसको।
उस दिन दोनों मामा-भांजे मार्निंग वाॅक से एक-सवा घण्टे में ही लगभग 6ः00 बजे तक वापस आ गए थे। संजीव की माँ ने अपने बेटे जाने की सारी तैयारी कर दी थी। संजीव जब घर लौटा और अभी अपने घर की दहलीज पर ही था। कि उसने देखा, कि उसकी माँ बड़ी मग्न होकर उसके जाने की तैयारी कर रही है। फिर पीछे से रहीम माम आ गये, और बोले, ‘‘क्या हुआ जऩाव ? किस सोंच में हैं आप जाना नही है क्या ? संजीव ने अपनी माँ के उस रूप के देखकर अन्दर ही अन्दर भावुक हो गया, और रहीम मामू के कहने पर अन्दर आया और फिर उसकी माँ बोली, ‘‘आ गया संजीव जा बाथरूम में गर्म पानी आ रहा है। नहा ले। संजीव ने नहाया और जाने की तैयारी में जुट गया। बहुत कुछ अलग सा महसूस कर रहा था संजीव उस दिन। इसलिये नहा धोकर संजीव अपनेे पूजा गृह में गया, जहाँ एक ओर तो राम, शंकर, विष्णु की तश्वीर लगी थी संजीव की माँ पूजा करती थी, और दूसरी ओर कुरान रखी जहाँ उसके रहीम मामा नम़ाज अदा करते थे। संजीव ने एक ओर तो भगवान से प्रार्थना की और दूसरो खुदा सज़दा किया। संजीव पूजाघर में ही था कि पीछे से उसकी माँ और मामा दोनो को आ गये।
एक ओर तो उसकी माँ ने भगवान से प्रार्थना की, कि ‘‘हे ईश्वर मैंने अपने बेटे को इस काबिल बना दिया है कि वह अपने कदमों पर खड़ा को तैयार है आप इस पर अपनी कृपा बनाये रखना। हे प्रभू इसे इसके मकसद में कामयाबी देना। तो दूसरी ओर संजीव के रहीम मामा अपने खुदा से इबादत करते हुये अपने खुदा से दुआ कर रहे थे।

कहानी अभी बाकी है…………………………….
मिलते हैं कहानी के अगले भाग में

Language: Hindi
302 Views
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