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19 Feb 2020 · 20 min read

समीक्षा, डिफाल्टर कहानी ,डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

[22/01, 08:06] Amberish Srivastava: सुप्रभात सम्मानित साथियों, आज बुधवार है। आज के स्तंभ सृजन विविध के अंतर्गत डॉ0 मनोज दीक्षित के संचालन व कवि विनोद शर्मा सागर के सह संचालन में आज कहानी विधा पर चर्चा करते हुए डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव की कहानी की पुस्तक ‘कथा अंजलि’ की समीक्षा इस पटल पर प्रस्तुत की जा रही है। डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी से आग्रह है कि वह इस पटल पर अपनी इसी पुस्तक से ली गई एक कहानी हम सभी के समक्ष अवलोकनार्थ प्रस्तुत करें!

सप्रेम
एडमिन
[22/01, 08:25] Amberish Srivastava: साहित्यपीडिया पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी की पुस्तक “कथा-अंजलि” पुस्तक की समीक्षा|

पुस्तक समीक्षा

कथा अंजलि : डॉ० प्रवीण कुमार

पेशे से एक सरकारी डाक्टर, डॉ० प्रवीण कुमार द्वारा लिखित कथा संग्रह ‘कथा अंजलि’ से गुजरना उस युग से साक्षात्कार करने के सदृश है जब मुंशी प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, फणीश्वरनाथ रेणु, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, व यशपाल जैसे हिंदी के कई बड़े लेखक हिन्दी गद्य की कीर्ति पताका दिग्दिगंत तक फहराते हुए अपनी स्वर्ण रश्मियाँ बिखेरा करते थे, धीरे-धीरे समय बदला व लेखकों के अपने-अपने अंदाज बदले तथापि डॉ० प्रवीण कुमार इस बदलते दौर में भी अविचलित व अडिग रहकर स्वतंत्र रूप से निर्भीकतापूर्वक अपना कार्य करते रहे हैं | अपने इस संग्रह के अंतर्गत प्रकाशित डिफाल्टर कथा में वे कहते हैं, “हिन्दी अंग्रेजी जीवन शैली के टकराव ने औषधियों और मानव जीवन में भी भेद कर दिया है | चिकित्सा विज्ञान की कोई जाति नही होती व कोई धर्म नही होता। चिकित्सा विज्ञान देश की सीमाओ से परे केवल मानवता के हित में होता है उसका उद्देश्य जीवन के प्रत्येक क्षणों को उपयोगी सुखमय एवं स्वस्थ्यकर बनाना होता है। अतः डिफाल्टर कभी मत बनिये!” जिन्दगी एक खुली किताब में नामक कथा में सरकारी दायित्व के निर्वहन में उपजी पीड़ा को अत्यंत निर्भीकता से व्यक्त करते हुए वे कहते हैं. “सरकारी दायित्व का निर्वान्ह् इतना सरल नही है कि उसे आसानी से निभाया जा सके। इसमे राजनीतिक सामाजिक एवं अपराधिक छवि का दुरूह तिलिस्म भी शामिल हैं। कब आपको राजनैतिक आकाओें के शक से बचाव करना हैं। कब सामाजिक कार्यकर्ताओं के हठ का सामना करना हैं। कब अपराधिक तत्वों के भय से और आंतक से बचाव करना हैं एवं स्वयं को स्थापित करना हैं। बुद्धि एवं विवेक की यह उत्कृष्ट परीक्षा पास करना आसान नही हैं।“ ठीक इसी प्रकार से मोनू की कहानी में उनका सशक्त शब्द चित्रण देखिये , ”प्रभात की नरम-नरम धूप जब वृक्षों की डालियों से अठखेलियां करने लगी तब रात्रि का घनघोर अंधेरा स्वत: ही छँट गया। बच्चे शैया पर माँ का आंचल छोड़ कर क्रीडा करने लगे । रात्रि का भय प्रात:काल की उमंग व उत्साह के समक्ष निष्प्राण हो गया था। धूप की गर्मी से बिस्तर पर हलचल होने लगी। मोनू और उसके मम्मी -पापा ने अर्ध निमीलीत नेत्रों से अपने आप का मुआयना किया व स्वयम को संभाल कर मोनू के ताप का परीक्षण किया।“ ठीक इसी प्रकार से रोज कुआं खोदते रोज पानी पीते दिहाड़ी मजदूर नामक कहानी में उनका उदार व निष्पक्ष चिंतन देखिये, “जाति–भेद, वर्ग भेद, ऊंच-नीच का भेदभाव व वैमनस्य ग्रामीण परिवेश मे हर परिवार की आर्थिक अवनति का पर्याप्त कारण है। राजनीति मे इसकी जड़ें बहुत दूर तक स्थापित हो चुकी हैं। जबकि भारतीय संविधान हमें इसकी इजाजत नहीं देता है। हमारे संविधान मे सभी नागरिकों को समान अधिकार , एवं समान अवसर एवं समान शिक्षा का अधिकार दिया गया है । परंतु सामाजिक कुरीतियाँ हमारे संस्कारों , हमारे रीति रिवाजों मे समा चुकी हैं। संविधान के नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन हमारे सामाजिक परिवेश में कलंक के समान है। किन्तु अब यह स्टेटस-सिंबल का प्रतीक बन चुका है। अपराधियों को सरंक्षण देकर , राजनीतिक लाभ हेतु उनका इस्तेमाल, जाति भेद के अनुसार प्रचार–प्रसार मे उनका प्रयोग भारतीय समाज को आतंकित एवं कलंकित करता है। प्राचीन इतिहास के परिपेक्ष्य मे हम अपनी फूट, भ्रस्ट आचरण एवं लोभ-लालच से अपने शत्रुओ को प्रश्रय दे चुके हैं। यदि हम अतीत की घटनाओं से कुछ नहीं सीखे तो आने वाला भविष्य भारत वर्ष एवं भारतीय संविधान के लिए अत्यंत अहितकर साबित होगा।

साहित्यपीडिया डॉट काम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित मात्र उपरोक्त पुस्तक का आकर्षक आवरण पृष्ठ भी हमारी भारतीय संस्कृति के पूर्णतः अनुरूप है | यह भी अच्छी बात है कि उपरोक्त पुस्तक फ्लिपकार्ट व अमेजन आदि पर सहजता से सर्वसुलभ है| हमारा पूर्ण विश्वास है कि यह डॉ० प्रवीण की यह पुस्तक की साहित्य यात्रा जनमानस को पर्याप्त सुकून देकर जनसामान्य के हृदय को आह्लादित अवश्य करेगी|

–इंजी ० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
९१, आगा कालोनी सिविल लाइंस सीतापुर
[22/01, 08:26] Amberish Srivastava: डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी से उनकी पुस्तक कथा अंजलि से ली गई एक कहानी पोस्ट करने के आग्रह के साथ-साथ आज के सह संचालक कवि विनोद शर्मा ‘सागर’ से अनुरोध है कि वे आज के सह-संचालन के दायित्व का निर्वाहन करें।
एडमिन
[22/01, 09:19] Dr Praveen Kumar: डिफाल्टर

मित्रों विलंब से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। आज प्रस्तुत है डिफाल्टर कहानी जो उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति की कहानी है ।जो हमारे देश में प्रचलित हिंदी- अंग्रेजी दवाओं के भेदभाव से ग्रस्त है।

प्रवीण कुमारश्रीवास्तव।
“डिफाल्टर,” कहानी

हमारे गाॅव में एक परमानन्द जी का परिवार रहता था। शाम को जब मेहनतकश मजदूर,बटोही घर पहॅुच कर विश्राम की मुद्रा में होते थे तब परमानन्द जी के यहाॅ महफिल जमा करती थी। रात्रि के सन्नाटे को चीरती हंसी ठहाके खिलखिलाने की अवाज से लोग ये अन्दाज लगा लेते थे। कि परमानन्द जी का परिवार अभी तक जगा हुआ है। इस तरह कहे तो गाॅव की रौनक इस परिवार से ही थी। वर्ना दीन-दुखियों, शराबी -कवाबी,जुआरियो, सट्टेबाजो, नशेडी भगेंडी लोगो की कमी नही थी हमारे गांव में ।
हमारा गांव यमुना पार बसा हुआ था। बस थोडी ही दूर पर रेलवे स्टेशन बस अड्डा, पोस्ट आॅफिस भवन पास-पास ही थे । मेरे पिता जी तब स्टेशन सुप्रीटैन्डेन्ट हुआ करते थे लोग आदर से उन्हे वर्मा जी कहा करते थे । वैसे उनका पूरा नाम श्री प्रेम चन्द्र प्रसाद वर्मा था । कभी-कभी पिता जी परमानन्द जी की महफिल में भी शामिल हुआ करते थे । हम तब बच्चे हुआ करते थे और पिता जी एवं परमानन्द जी की रसीली सार्थक बातो को ध्यान से सुना करते थे ।
श्री परमानन्द जी चार भाई थे सबसे बडे़ परमानन्द जी स्वंय, दुसरे नम्बर पर भजनानन्द, तीसरे नम्बर पर अर्गानन्द और चौथे नम्बर पर ज्ञानानन्द जी थे। चारो भाइयेां में क्रमशः दो वर्षो का अन्तर था। परमानन्द जी 60 वर्ष के पूरे हो चुके थे। चारो भाई परम आध्यात्मिक एवं अग्रेजी संस्कार के परम खिलाफ थे। घर में बहुयें घूघट में रहती थी व बच्चे दबी जुवान में ही बात कर सकते थे । बडे संस्कारी बच्चे थे ये सब भ्राता आर्युवेद एवं शास्त्रो के बड़े ज्ञाता थे। अग्रेजी औषधियों का सेवन भी पाप समझते थे ।
एक दिन की बात है परमानन्द जी के सिर मे दर्द उठा फिर चक्कर भी आया। हृस्ट पुस्ट शरीर में मामूली सा चक्कर आना उन्हे कोई फर्क नही पड़ा । वे वैसे ही मस्त रहा करते थे। अचानक एक दिन साइकिल से जाते वक्त सब्जी मण्डी के पास उनकी आखों के आगे अन्धेरा छाने लगा ,व जोर से चक्कर आया ।वे गिर पडे़। लोग उन्हे उठाने दौड़ पडे, लोगो ने उन्हे अस्पताल पहुचाया उनका रक्त-चाप अत्यन्त बढ़ा हुआ था। डाक्टर साहब ने अग्रेजी दवाइयां खाने को दी, जो जीवन रक्षक थी। लोगो के लिहाज से या डाक्टर साहब की सलाह मान कर उन्हानें दवाइयां ले ली, परन्तु उन्हे इन दवाइयों का सेवन जीवन भर करना मंजूर नही था। अतः उन्होने कुछ दिनो के पश्चात इन दवाइयों का सेवन बन्द कर, जडी़ बूटियों और परहेज पर विश्वास करना शुरू कर दिया।
कुछ दिन बीते कुछ पता ही नही चला । उच्च रक्त-चाप कोई लक्षण प्रदर्शित नही कर रहा था, अतः उन्होने सब कुठ ठीक मानकर औषधीयों का सेवन भी बन्द कर दिया ।
अब तक दो वर्ष बीत चुके थे। परमानन्द जी प्रातः उठे तो प्रकाश के उजाले में उन्होने बल्ब की रोशनी में इन्द्र धनुषीयें रंग नजर आने लगा। बायां हाथ और बायां पैर कोशिश करने के बावजूद गति नही कर रहा था । कुछ -कुछ जुबान भी लडखडा रही थी। मुँह भी दायी और टेढा होे गया था। पलके बन्द नही हो रही थी। सारे लक्षण पक्षाघात के प्रकट हो चुके थे। डाक्टर को बुलाया गया, उस समय हमारी तरह 108 एम्बुलेैंस नही हूुआ करती थी, कि, फोन लगाओ और एम्बुलेैंस हाजिर, और उपचार शुरू। बल्कि डाक्टर महोदय बहुत अश्वासन एवं मोटी फीस लेकर ही घर में चिकित्सा व्यवस्था करने आते थे ।
डाक्टर का मूड़ उखडा हुआ था जब उन्हे ये मालूम हुआ कि उच्च रक्त-चाप होते हुये भी परमानन्द जी ने औषधियों का सेवन दो वर्ष पहले ही बन्द कर दिया था ।उसके बाद न तो रक्त-चाप ही चेक कराया न ही कोई परामर्श
लिया । डाक्टर के मुँह से अचानक निकला, डिफाल्टर, ये तो बहुत बडा डिफाल्टर है ।जान बूझकर भी इसने दवाइयों का सेवन नही किया, न ही, सलाह ली । नतीजतन इसको अन्जाम भुगतना पडा़ अब इसका कुछ नही हो सकता इसे मेडिकल काॅलेज ले जाओ तभी इसकी जान बच सकती है। अभी पक्षाघात हुआ है अगर हृदयाघात भी हुआ तो जान भी जा सकती है।
परमानन्द जी के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ सा टूट पडा़ था। आनन फानन में वाहन की व्यवस्था कर उन्हे मेडिकल काॅलेज ले जाया गया। डाक्टरो के निरंतर प्रयासो से परमानन्द जी की जान तो बच गयी परन्तु वे जीवन भर बैसाखी के सहारे जीते रहे ।
हिन्दी अग्रेंजी संस्कारो के टकराव ने औषाधियों और मानव जीवन में भी भेद कर दिया था। चिकित्सा विज्ञान की कोई जाति नही होती ।कोई धर्म नही होता है। चिकित्सा विज्ञान द्वेष की सीमाओ से परे केवल मानवता के हित में होता है उसका उद्देश्य जीवन के प्रत्येक क्षणो को उपयोगी सुखमय एवं स्वस्थ्यकर बनाना होता है। अतः डिफाल्टर कभी मत बनिये। हमेशा डाक्टर की सलाह को ध्यान से सुनिये व पालन कीजिये। तभी, मानवता की दृष्टि में चिकित्सा विज्ञान का अहम येागदान हो सकता है ।
नोट-उच्च रक्त-चाप दिवस पर विशेष कहानी।
[22/01, 13:14] +91 88879 81524: समस्त विद्वजनों को सादर नमन
आज मंच में
प्रस्तुत कहानी ” डिफाल्टर” डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित कहानी संग्रह “कथा अंजलि” से उद्धृत है।
आप सभी से विनम्र निवेदन है कि प्रस्तुत कहानी की सार्थक समीक्षा प्रस्तुत कर मंच को सुशोभित करें।
[22/01, 13:27] +91 96215 75145: प्रस्तुत डिफॉल्टर कहानी शहरी कथावस्तु सुन्दर शब्दशिल्प से युक्त मेडिकल साइंस की शानदार कहानी है ।
काबिले ग़ौर कथाशिल्प के साथ ही खबरदार करने वाली कहानी है ।
[22/01, 13:32] +91 88879 81524: आदरणीय भाई श्री निडर जी आपसे एक विस्तृत टिपण्णी की अपेक्षित है। सप्रेम
[22/01, 13:48] Amberish Srivastava: स्वागत है अनुज देवेंद्र कश्यप निडर जी, यद्यपि बहुत सुंदर प्रतिक्रिया है आपकी तथापि अपने संचालक महोदय की भांति हम भी आपसे एक विशद व विस्तृत प्रतिक्रिया की अपेक्षा रखते हैं । सस्नेह।
[22/01, 14:23] +91 96215 75145: आदरणीय डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी द्वारा रचित कहानी “डिफॉल्टर” की शुरुआत गॉव के उस मंजरकशी से होती है जो अमूमन गॉवों में होती है । कहानी का प्रारम्भ ही कौतूहल व मन रंजन के माहौल से होता है जो डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव की सिद्धहस्तता के लिए पर्याप्त है । प्रस्तुत कहानी में प्रवीण जी कहते है कि गॉव के एक परिवार का मालिक परमानन्द है जिसके यहां शाम को महफिल जमती थी । लोग हँसते खिलखिलाते थे जो प्राय: गॉव में कहीं न कहीं होता ही है । परमानन्द का स्वभाव जनहितैषी है जिसके चलते दीन दुखियों की सेवा सुश्रूषा में लगा रहता है ।
इस कहानी के माध्यम से कलम के जादूगर प्रवीण श्रीवास्तव ने मानवता को प्रस्फुटित करने का महनीय प्रयास किया है ।
गॉव का मनोरम शब्द चित्र खीचने के साथ ही शहर के प्रमुख नागरिक सेवाओं जैसे बस अड्डा, रेलवे स्टेशन आदि के जरिए गॉव के जोड़ने का एक नया संस्करण भी प्रस्तुत किया है । कथाकार प्रवीण श्रीवास्तव जी परमानन्द के पिताजी को स्टेशन सुप्रीटेन्डेंट के प्रस्तुत करने में सफल साबित हुए हैं ।
कहानीकार प्रवीण श्रीवास्तव ने बड़े ही चपलता से परिवार में संस्कार को परोस देते है जो उनकी काबिलियत को बताती है ।
कहानी का कथाशिल्प बहुत ही बोधगम्य व प्रवाहमयी है । इस कहानी में डा प्रवीण श्रीवास्तव ने अपने व्यवसाय के मुताबिक मेडिकल समस्या का बेहतरीन तरीके समाधान भी निकालते है । कलमकार प्रवीण श्रीवास्तव ने काल्पनिकता के जरिए व्यवहारिक समस्या को धरातल पर उतार ही नहीं दिया अपितु समाधान को ढूढ़ निकालते है ।
यद्यपि कहानी को गढ़ने में कलमकार ने बड़ी ही चतुरता का परिचय दिया है फिर भी कहीं कहीं व्याकरणिक त्रुटियां नज़र आ रही हैं और अंग्रेजी दवाओं व देशी दवाओं के विवाद को सतह पर लाकर लोगों को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है ।
कुल मिलाकर यह कहानी प्रवीण श्रीवास्तव के कलम से बहुत ही खूबसूरत बनकर आम जन की पीड़ा बयां करने में सक्षम है ।
[22/01, 14:32] Amberish Srivastava: अनुज देवेंद्र कश्यप निडर जी, डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव की कहानी डिफाल्टर के अधिकांश तत्वों को समाहित करते हुए अत्यंत सारगर्भित व सुंदर समीक्षा प्रस्तुत की है आपने। जिसके लिए हृदय तल से साधुवाद। सस्नेह।
[22/01, 15:50] +91 92361 96822: डिफाल्टर बहुत ही सुन्दर एवं शिक्षा प्रद है जीवन अमूल्य है इसे बहुत ही सावधानी एवं आनन्द मय से जीना चाहिए कोई खिलवाड़ नहीं करना चाहिए त्वरित लाभ हेतु अंग्रेजी दवाओं का यथोचित प्रयोग करके जीवन सुरक्षित रखना चाहिए
परमानन्द जैसी कोई भी दकियानूसी व रूढिवादिता नही करना चाहिए

[22/01, 16:06] Dr Praveen Kumar: आदरणीय विजय पांडे जी ने मेरी लेखनी को एवं संदेश को सार्थक कर दिया है । अतः वे इस समीक्षा के लिए बधाई के पात्र हैं विजय पांडे कंठ जी का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
[22/01, 16:15] +91 88879 81524: आदरणीय श्री विजय पाण्डेय ” कंठ” जी आपका हार्दिक स्वागत है ।
आपने कहानी के मूल उद्देश्य व संदेश को समाहित करते अपनी सटीक व सार्थक टिप्पणी प्रस्तुत की आपक असीम आभार
सादर नमन
[22/01, 17:43] +91 92361 96822: आदरणीय अम्बरीश जी ,डा. प्रवीण जी,विनोद शर्मा जी आप सभी लोगों को सादर नमन,
बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक शुभकामनाएं
समूह के सभी सदस्यों को नमन
[22/01, 18:09] Amberish Srivastava: समीक्षा:
“डिफाल्टर,” कहानी
कथाकार: डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव।

डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव की कहानी ‘डिफाल्टर’ की कथावस्तु आज के ग्रामीण समाज पर पूर्णतया आधारित है इसी तत्व में व्याप्त भ्रम के आधार पर कहानीकार ने अपनी कहानी की यह गगनचुंबी अट्टालिका खड़ी की है इसकी कथावस्तु को भली भाँति समझने के लिए कहानी का एक दृश्य देखिए…

“हमारे गाॅव में एक परमानन्द जी का परिवार रहता था। शाम को जब मेहनतकश मजदूर,बटोही घर पहुँच कर विश्राम की मुद्रा में होते थे तब परमानन्द जी के यहाॅ महफिल जमा करती थी। रात्रि के सन्नाटे को चीरती हँसी ठहाके व खिलखिलाने की अवाज से लोग यह अन्दाज लगा लेते थे। कि परमानन्द जी का परिवार अभी तक जगा हुआ है। इस तरह कहें तो गाँव की रौनक इस परिवार से ही थी। वर्ना दीन-दुखियों, शराबी -कवाबी, जुआरियो, सट्टेबाजों व नशेड़ी-भँगेड़ी लोगो की कमी नही थी हमारे गाँव में।’

अब इस कहानी के द्वितीय तत्व चरित्र चित्रण पर आते हैं। इस कहानी के नायक साठ वर्षीय वयोवृद्ध परमानंद जी सहित उनके चारो भाई परम आध्यात्मिक एवं अग्रेजी संस्कार के परम खिलाफ होते हैं न केवल यह वरन उनके घर में सभी बहुयें घूँघट में ही रहती थीं व बच्चे दबी जुबान में ही बात कर सकते थे। सभी बच्चे बहुत संस्कारी थे। ये सब भ्राता आयुर्वेद एवं शास्त्रों के परम ज्ञाता थे जो कि अंग्रेजी औषधियों का सेवन भी पाप समझते थे। एक दिन अकस्मात ही परमानन्द जी के सिर मे दर्द उठने के साथ साथ चक्कर भी आने पर अति आत्मविश्वासवश वे इस पर समुचित ध्यान नहीं दे पाते हैं वे समझते हैं कि उनके हष्ट पुष्ट शरीर में मामूली सा चक्कर आने से उनकी समझ में उन्हें कोई फर्क ही नही पड़ा है परिणामतः वे वैसे ही मस्त रहते रहे। अचानक एक दिन साइकिल से जाते वक्त सब्जी मण्डी के पास उनकी आँखों के आगे अँधेरा छाने व उन्हें जोर का चक्कर आने के परिणामस्वरूप वे जमीन पर गिर पड़ते हैं परिणामस्वरूप कतिपय लोगों की सहायता से उन्हें अस्पताल पहुँचाया जाता है जहाँ पर हुए परीक्षण के दौरान उनका रक्त-चाप अत्यन्त बढ़ा हुआ पाया जाता है डाक्टर साहब उन्हें जीवनरक्षक अँग्रेजी दवाइयां खाने को देतें है । लोगो का लिहाज कहिए या डाक्टर साहब की सलाह मान कर वे उपरोक्त दवाइयां ले तो लेते हैं तथापि उन्हें उन दवाइयों का आजीवन सेवन कदापि मंजूर नहीं होता। अतः वे कुछ दिनों के पश्चात इन दवाइयों का सेवन बन्द कर, जडी़ बूटियों और परहेज पर विश्वास करना प्रारम्भ कर देते हैं। यह समस्त वृत्तांत नायक की रूढ़िवादिता ही का प्रतीक है।

अब आते हैं कहानी के तृतीय तत्व संवाद पर तो हम यह पाते हैं कि यह कहानी वर्णनात्मक या मनोविश्लेषणात्मक शैली में रच दी गई है जिसमें संवाद की कहीं पर भी आवश्यकता नहीं आन पड़ी है।

इस कहानी के चतुर्थ तत्व देशकाल तथा वातावरण को इस कहानी के परिपेक्ष्य में समुचित रूप से परिभाषित करने के लिए लेखक ने भारतवर्ष के भूभाग का चयन किया हुआ है जहाँ पर उसके अतीत की स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं यथा…

“हमारा गांव यमुना पार बसा हुआ था। बस थोडी ही दूर पर रेलवे स्टेशन बस अड्डा, पोस्ट आॅफिस भवन पास-पास ही थे । मेरे पिता जी तब स्टेशन सुपरिंटेंडेन्ट हुआ करते थे । लोग आदर से उन्हे वर्मा जी कहा करते थे । वैसे उनका पूरा नाम श्री प्रेम चन्द्र प्रसाद वर्मा था । कभी-कभी पिता जी परमानन्द जी की महफिल में भी शामिल हुआ करते थे । हम तब बच्चे हुआ करते थे और पिता जी एवं परमानन्द जी की रसीली सार्थक बातो को ध्यान से सुना करते थे।

“वस्तुतः इस कहानी में भारतीय भूभाग पर रची गई इस कहानी के वातावरण सभ्यता रूढ़ि व संस्कार का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है।

अब आते हैं इस कहानी के पंचम तत्व उद्देश्य पर। सत्य तो यह है कि साहित्य की किसी भी विधा की रचना बिना उद्देश्य के नहीं होती वरन कहानीकार का कोई न कोई प्रयोजन प्रत्येक कहानी की रचना के पार्श्व में होता ही है और यही उद्देश्य कहानी के आवरण में छिपा रहता है उसके पूर्व में ही प्रकट हो जाने पर उसका कलात्मक सौंदर्य नष्ट हो जाता है। इस कहानी का उद्देश्य पूर्णतः सकारात्मक है । कुछ समय बीत जाने पर परमानंद जी के शरीर में उच्च रक्तचाप का कोई भी लक्षण प्रदर्शित नहीं होता है परिणामतः वे अपनी अंग्रेजी दवा का सेवन बन्द करके निश्चिंत हो जाते हैं । अचानक एक दिन जब उनके शरीर में पक्षाघात के लक्षण प्रकट होते हैं जब उन्हें डॉक्टर के पास पुनः ले जाया जाता हैं । डॉक्टर साहब उन्हें देखते ही पहचान लेते हैं और उनके मुख से अनायास ही वितृष्णा में’ डिफाल्टर’ शब्द निकल जाता है। कहानीकार ने इसी शब्द को अपना शीर्षक बनाया है जो कि लघु होने के साथ साथ अत्यंत प्रभावोत्पादक भी है। डॉक्टर के प्रयासों से इस कहानी के नायक परमानंदजी की जान तो बच जाती है परंतु आजीवन वे बैसाखियों के सहारे ही रह जाते हैं।

अंत में कहानीकार का इस समाज को इस कहानी के माध्यम से दिया गया संदेश इसे अति विशिष्ट श्रेणी में ला खड़ा करता है। यथा…..

“हिन्दी अग्रेंजी संस्कारो के टकराव ने औषाधियों और मानव जीवन में भी भेद कर दिया था। चिकित्सा विज्ञान की कोई जाति नही होती। कोई धर्म नही होता है। चिकित्सा विज्ञान द्वेषभाव से परे केवल मानवता के हित में होता है उसका उद्देश्य जीवन के प्रत्येक क्षणो को उपयोगी सुखमय एवं स्वस्थ्यकर बनाना होता है। अतः डिफाल्टर कभी मत बनिये। हमेशा डाक्टर की सलाह को ध्यान से सुनिये व पालन कीजिये। तभी, मानवता की दृष्टि में चिकित्सा विज्ञान का अहम येागदान हो सकता है ।”

यद्यपि कहानी में वर्तनी व व्याकरण से संबंधित कुछ त्रुटियाँ हैं जो संभवतः इसे जल्दबाजी में टाइप करके पोस्ट करने की वजह से रह गई होंगी तथापि इस कहानी का आरंभ मध्य तथा आदि अत्यंत रोचक है व कहानीकार की भाषाशक्ति व अनुपम शैली पाठकों को सहज ही अपनी ओर आकृष्ट करती है।

अंत में डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव को हमारी ओर से साधुवाद।

समीक्षक:
इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
[22/01, 18:31] Dr Praveen Kumar: आदरणीय श्री अंबरीश श्रीवास्तव “अंबर” जी, जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकार की कलम से कहानी डिफाल्टर की समीक्षा होना, मेरे लिये परम सौभाग्य का विषय है।आदरणीय समीक्षक ने कहानी के समस्त पांच तत्वों पर विस्तृत चर्चा की है,. जो अत्यंत प्रशंसनीय व सराहनीय है और मेरे जीवन की अमूल्य निधि है। अंम्बरीश जी को कोटिशः धन्यवाद व आभार ज्ञापित करता हूं।
[22/01, 18:34] Amberish Srivastava: इस स्नेहाशीष हेतु हार्दिक आभार आदरणीय अग्रज। आपकी प्रत्येक कहानी ऐसी ही समीक्षा के सर्वथा योग्य है। सादर।
[22/01, 19:12] +91 88879 81524: अत्यंत सुंदर सटीक व सारगर्भित समीक्षा हेतु आपका हृदयतल से आभार आदरणीय श्री अम्बर जी।
सादर नमन ??
[22/01, 19:51] +91 99366 60168: डिफाल्टर कहानी डॉक्टर प्रवीण कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखित कथा संग्रह कथा अंजलि से उद्धृत एक सामाजिक ज्ञानवर्धक कहानी है।
प्रस्तुत डिफाल्टर कहानी शहरी कथावस्तु सुन्दर शब्द शिल्प से सुनियोजित मेडिकल साइंस की कहानी है।
डिफाल्टर कहानी जो उच्च रक्तचाप से पीड़ित किन्तु दकियानूसी विचारों से ग्रस्त व्यक्ति की कहानी है।जो हमारे देश में प्रचलित हिन्दी, अंग्रेजी दवाओं के भेदभाव से ग्रस्त हैं।
डिफाल्टर कहानी के माध्यम से जनमानस को जागरूक कर भटके हुए मानव को एक नई दिशा देती है और जीवन रक्षा का संदेश देती है जो मानवता के लिए एक जीता जागता उदाहरण है।
लक्ष्मी वर्मा
[22/01, 20:06] Dr Praveen Kumar: आदरणीया लक्ष्मी देवी जी ने अत्यंत सुंदर शब्दों में अपनी समीक्षा प्रस्तुत की है। वह वाकई में सराहनीय है। अतः इस सार्थक समीक्षा हेतु आभार प्रकट करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद लक्ष्मी जी इसी प्रकार हिंदी सभा में अपना अमूल्य समय देकर प्रतिभागिता करने की कृपा करें।
[22/01, 20:08] +91 88879 81524: अत्यंत सुंदर सटीक समीक्षा हेतु आपको सादर नमन आभार आदरणीया ।
??
[22/01, 20:12] +91 88879 81524: “बचाव उपचार से सदैव बेहतर होता है” कहा गया है और हम अच्छी तरह से जानते भी हैं परंतु यदि आज का युग हो या प्राचीन समय की बात हो जब स्थितियाँ उपचार की हो तो हमें चिकित्सा की कोई भी पद्धति हो जो लाभकारी प्रतीत हो उसे अपनाने में कोई कोताही कदापि नहीं बरतनी चाहिए।

चिकित्सा की कोई पद्धति चाहे क्यों न हो सबका उद्देश्य मात्र मानव कल्याण व स्वास्थ्य लाभ ही होता है जो हम मानवों के लिए वरदान है और जिसका पालन न करने वाला सदैव डिफाल्टर अर्थात् दोषी ही होता है।

इसी संदेश को अपने कथानक के मूल मे समाहित करते हुए प्रस्तुत कहानी ‘डिफाल्टर’ हमें अपने जीवन में विभिन्न परिवर्तनों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करती है….

प्रस्तुत कहानी गाँव की बेफ़िक्री व नशेड़ीपन के साथ-साथ वहाँ की मेहनतकशी व अनंत आनंदमयी माहौल के दृश्य प्रस्तुत करने से लेकर शहरी सुविधाओं तथा जीवन शैली तक का भी सफ़र हमें सफलतापूर्वक करवाती है।

कहानी तत्वों के आधार पर यदि हम आदरणीय डॉ0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित “डिफाल्टर” कहानी का विश्लेषण करते हैं तो सर्वप्रथम कहानी की कथावस्तु अर्थात कथानक की दृष्टि से कहानी के विषय में नवीनता रोचकता तथा संदेशपरकता परिलक्षित होती है।

पात्र चयन अत्यंत कुशल ढंग से किया गया है जो कहानी को रोचक और पूर्ण बनाते तो हैं ही साथ-साथ वे संदेश प्रवाह में भी पूर्णतया सक्षम हैं ।

कहानी में संवाद का सहारा नहीं लिया गया है क्योंकि कहानी मनोविश्लेषणात्मक तथा विवरणात्मक शैली में कहीं गई है इसीलिए कथोपकथन आवश्यक नहीं होते फिर भी कहानी अपने कथानक को धाराप्रवाह ढंग से कहती जाती है जो कहानीकार की कुशलता व प्रवीणता को प्रदर्शित करता है।

भारतीय देशकाल में रचित इस कहानी में प्राचीन सभ्यतागत रुढ़ियों के दर्शन होते हैं।
जो उस वातावरण की भ्रान्तियों के दुष्परिणाम को समुचित रूप से रेखांकित करती हैं।

उददेश्य की दृष्टि से कहानी में सकारात्मकता व नवीनता की पुष्टि तो होती ही है साथ-साथ ही यह कहानी वर्तमान समाज को एक सकारात्मक संदेश भी देती है ।

कहानी का शीर्षक “डिफाल्टर” अत्यंत प्रभावी सटीक व सुन्दर है।
नव संदेश के साथ कहानी पाठक मन पर एक अमिट छाप छोड़ती है।

अंत में एक रोचक व सुन्दर कहानी हेतु आदरणीय डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव जी को साधुवाद तथा हार्दिक बधाई ।
सादर नमन
[22/01, 20:56] +91 99187 11020: आदरणीय प्र वीण दादा को सदार प्रणाम ??डिफ़ॉल्टर कहानी हम सभी को प्रेरणा देने के लिए उपयुक्त कहानी है ?सभी के लिए उपचार से बेहतर बचाव होता है। यदि समय रहते हम सब अपना बचाव करते रहे तो उपचार की कम से कम आवश्य कता होगी और यदि उपचार शुरू कर ही लिया तो बिना चिकित्सक पर। मर्श के दवा नहीं बंद करनी चाहिए। ये नसीहत भी ड।क्टर साहब ने इस कहानी के माध्यम से दे दी है। कहानी में प्र त्ये क दृश्य का चित्रण शब्दों के माध्यम से बहुत ही सुंदर ढंग से किया गया है।
[22/01, 21:00] Dr Praveen Kumar: आदरणीय श्री विनोद शर्मा जी ने अपनी समर्थ लेखनी व विवेक से डिफाल्टर कहानी की जो समीक्षा की है।उसके लिये मैं अनुज विनोद शर्मा जी का आभार व धन्यवाद ज्ञापित करता हूं । मै मां वीणापाणि से प्रार्थना करता हूं क्योंकि लेखनी सतत चलती रहे।
[22/01, 21:05] Dr Praveen Kumar: आदरणीया सुनीता जी ने अपने व्यस्त समय में से कुछ समय कहानी के लिए निकालकर हमें कृतार्थ कर दिया ।अतः इसके लिए वे धन्यवाद व स्नेहाशीष की पात्र हैं ।
[22/01, 21:13] +91 99187 11020: सादर ??आप अपने व्यस्त तम समय में से जब साहित्य को इत ना समय दे रहे हैं तो हम सभी का कर्त् व्य है की आपके साहित्य का वाचन अवश्य करे। धन्यवाद दादा ?
[22/01, 22:07] +91 84006 91503: माननीय डॉ प्रवीण श्रीवास्तव द्वारा लिखित डिफाल्टर कहानी समसामयिक कहानी है जो औषधियों के प्रकार को लेकर भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य सभ्यता पर पटाछेप करती है ।कहानी के अनुसार रक्त चाप की बीमारी अंग्रेजी दवाओं से ही ठीक हो सकती है परन्तु कुछ बीमारी ऐसी भी हैं जो आयुर्वेद होम्योपैथ से ही ठीक हो सकती है अर्थात पाश्चात्य सभ्यता को जबरन मढा जाना प्रतीत होता है वर्तमान में दूषित राजनीतिक के कारण आयुर्वेद या भारतीय औषधि ह्रास की स्थिति में है क्योंकि,
अक्ल मन्दो को न रोटी ।
खुस्क हलुवा बखीलो को।
अगर ऐसा न हो तो आज भी मरे व्यक्ति को जीवन देने का प्रयास भारतीय विद्वान कर सकते है ।
अतः कहानी जैसा देश वैसा भेस पर आधारित होने के कारण आगे बढ़ने की शिक्षा देती है चाहें भले ही बैसाखी के सहारे बढो ।
अतः कहानी में भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात सा प्रतीत होता है कहानी का शिल्प सौन्दर्य युक्त है अतः प्रवीण जी की कहानी आधुनिकता पर आधारित उत्कृष्ट प्रस्तुति है क्योंकि इससे यह भी प्रतीत होता है कि आज भी भारतीय संस्कृति ग्रामीणों में विद्यमान है ।
कौशलेन्द् अवस्थी ।
[22/01, 22:23] Amberish Srivastava: स्वागत है मित्र, उपरोक्त कहानी के एक अन्य पक्ष को रखने के लिए हार्दिक आभार। अपनी उपरोक्त डिफाल्टर नामक कहानी में डॉ0 साहब ने परमानंदजी द्वारा पहले अंग्रेजी दवाइयों को बंद करने के उपरांत तत्पश्चात कुछ समय तक उपरोक्त रक्तचाप न बढ़ने के कारण जिन औषधियों के बंद बन्द करने की बात कही है (अर्थात कोई भी औषधि का सेवन न करने के कारण वह डिफाल्टर कहलाया है) वे औषधियां आयुर्वेदिक औषधियाँ ही हैं अथवा नहीं? इसका स्पस्टीकरण वे स्वयं ही देगें। सप्रेम।
[22/01, 22:32] Amberish Srivastava: यह बात भी एकदम सत्य है कि आयुर्वेद के माध्यम से भी अनेक असाध्य रोगों का निदान सम्भव है । डायबिटीज के मामले में हम और हमारे कुछ एक मित्र इसके स्वयं ही उदाहरण हैं । तथापि कुछ बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप आदि की दवा सावधानीवश आजीवन खाना ही श्रेयस्कर होता है अन्यथा कभी भी अकस्मात ही हार्ट अटैक आने में देर नहीं लगती। सप्रेम।
[22/01, 23:01] +91 97580 99547: आदरणीय डां, प्रवीण
कुमार जी द्वारा रचित कहानी डिफाल्टर पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । यह कहानी हमे शिक्षा देती है की पद्धति चाहे कोई भी कयों न हो उसको सहजता से स्वीकार कर लेना चाहिए अपनी परंपरागत जिद पर नहीं अडे रहना चाहिए। क्योंकि जीवन सर्वोपरि है बाकी सब चीजें गोण हो जाती हैं। समाज को एक सही दिशा देने के लिए यह कहानी रचने के लिए डॉक्टर प्रवीण जी को बहुत-बहुत बधाई।
[22/01, 23:14] Sushil Verma: कथाशिल्प की कसौटी पर डॉ० प्रवीण कुमार जी की कहानी “डिफाल्टर” तो खरी उतरती ही है ; इसमें लोकमंगल की भावना का भरपूर समाहित होना कहानी की सबसे की सबसे बड़ी विशेषता है । जिससे इस कहानी को हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कहानियों के बीच स्थान पाने का दावा मजबूत होता है । भाषा शैली देशकाल परिस्थितियों के तद्रूप है । ग्रामीण अंचल के सीधे सरल लोगों का मेलजोल , दिनचर्या , मान्यतायें पाठक के मन मस्तिष्क के पटल पर सजीव हो उठती हैं । कहानी में वर्णनात्मक , विचारात्मक और गवेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है । रक्तचाप दिवस पर सेवा से चिकित्सक कहानीकार ने बड़े ही रोचक ढंग से चिकित्सा पद्धतियों का समन्वय स्वीकार करने को सही ठहराया है । इलाज में रोगी के दुराग्रह व लापरवाही के गंभीर परिणामों का संकेत देना लेखक की लोकमंगलकारी दृष्टि है जिसने ऐसे रोगी को डिफाल्टर कहा है । लेखक की कल्पना शक्ति की प्रशंसा करनी ही पड़ेगी जिसने कहानी में काल भेद की दृष्टि से तुलनात्मक अंतर यथा एम्बूलेंस सेवाओं का अभाव भी रेखांकित किया है । शिल्प सौष्ठव पर चर्चा करते हुए कहानी के सुगठन /कसाव , तारतम्य , रोचकता की प्रशंसा करनी ही पड़ेगी जो अंत तक कहानी पढने के लिए पाठक को बाध्य करती है । — सुशील
[22/01, 23:16] Amberish Srivastava: स्वागतम छायाजी, बहुत सुंदर प्रतिक्रिया पोस्ट की है आपने जिसके लिए हार्दिक बधाई।
[22/01, 23:17] Amberish Srivastava: बहुत ही शानदार समीक्षा के लिए साधुवाद आदरणीय मित्र।
[22/01, 23:19] +91 84006 91503: समीक्षा चाटुकारिता नहीं आलोचना समालोचना मे ही निहित है यदि भगतसिंह इत्यादि अपना जीवन बचाते सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेजी अफसर बन जाते तो सवा सौ करोड़ भारतीय जन मानस का क्या होता क्योंकि साहित्यकार आम नहीं होता है उसके विचारों का प्रभाव जन मानस पर पडता है ।
[22/01, 23:36] +91 99360 16690: बहुत अच्छा लिखा।
[22/01, 23:40] +91 99360 16690: बहुत अच्छी कहानी की सुन्दर समीक्षाएं पढ़ने को मिलीं।डा.प्र.श्रीवास्तव जी सहित आप सभी को बधाई।
[22/01, 23:55] Amberish Srivastava: इस चर्चा में भाग लेने हेतु आप सभी के प्रति हार्दिक आभार।

Language: Hindi
Tag: लेख
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Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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