समीक्षा ,कवि देवेंद्र कश्यप निडर।
आदरणीय देवेंद्र कश्यप निडर जी की रचनाएं कुंडलिया,मुक्तक आदि समसामयिक व व्याकरण की दृष्टि से निर्दोष रचनायें हैं। कृषकों की पीड़ा को महसूस करते हुए देवेंद्र कश्यप जी लिखते हैं ।
रोटी पैदा करने खातिर वह कितनी मेहनत करते हैं ।वह रात और दिन खेतों में से खून बहाया करते हैं।
भारत माता की वंदना करते हुए करते हुए देवेन्द्र जी की रचना धर्मिता प्रणम्य है ।दीपक के रूप में प्रकाश को प्रतिष्ठित करते हुए कहते हैं,
पैदा कर लो जैसे दीपक का होता है वह महिला जो झोपड़ियो में, रोशनी भेद ना करता है।
भारत के संविधान सराहनीय है। अवधी भाषा में लिखे गये गीतअद्भुत हैं एवं जमीन से जुड़े हुए हैं।उसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। आशा करता हूं कि भविष्य में देवेंद्र जी इसी प्रकार रचना करते रहेंगे ।और अपनी रचनाओं से हम सबको लाभान्वित करते रहेंगे।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”