समीक्षा -कविवर गोपाल दास
मित्रों, आदरणीय गोपाल दास नीरज हायकु सम्राट हैं ।उनका दर्शन हायकु में परिलक्षित हो रहा है ।
जैसे,
जन्म मरण।
समय की गति के ।
हैं दो चरण ।
श्री नीरज अपने दार्शनिक भाव में मस्त हो कहते हैं।
हम तो मस्त फकीर ,हमारा कोई नहीं ठिकाना रे.
जैसा अपना आना प्यारे वैसा अपना जाना रे।
झंझावात के बीच खड़े गोपालदास नीरज जी कहते हैं, स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे,
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ,
अपने संघर्षमय जीवन को याद करते हुए नीरज जी कहते हैं,
मैं तूफानों में चलने का आदी हूं। तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
नीरज जी निराशा के अंधकार से उबरने का संदेश देते हैं,और प्रकाश की ओर चलने के लिए कहते हैं ।
निराशा में आशा की किरण दिखाते हुए कहते हैं कि,
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये।
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिये।
इस प्रकार नीरज जी की कविताओं में नैसर्गिक प्रवाह आकर्षण व गति दिखाई देता है, साथ में दर्शन, संघर्ष और आशा विश्वास की किरण भी दिखाई देती है । भावों का सहज स्वाभाविक संप्रेषण ह्रदय स्पर्शी व मार्मिक है ।धन्यवाद ।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव” प्रेम”