समीक्षा ,आचार्य शिव प्रकाश अवस्थी
आचार्य शिव प्रकाश अवस्थी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। संगीत, साहित्य ,कला, धर्म, आध्यात्म, दर्शन ,मनोविज्ञान, कर्मकांड ,पूजन ज्योतिष विद्या में उन्हें सिद्धि हासिल है। मैं आचार्य जी की रचना से अत्यंत प्रभावित हुआ और उनकी वेदना से भी और उनकी वेदना को भी महसूस करता हूं ।कवि कहता है।
राम जी अब फिर धरा पर आपका अवतार हो।
है दशानन वध जरूरी ,दैत्य कुल संहार हो।
क्योंकि आज घर-घर में दशानन बन चुके हैं ।अनगिनत अहंकारी नीच रावण आकार ले चुके हैं। कोई परिवार दंभ, कोई परिवार साज सज्जा और कोई परिवार अपने स्टेटस के पीछे परेशान है। उसे अपने आत्मानंद की चिंता है नहीं। वे कहते हैं ऐसे छलिया दंभी कुंठित लोग,
बेर शबरी से निशाचर ,छीन कर ले जाएंगे।
यदि राम नहीं आए तो शबरी के बेर उसके पास नहीं बचेंगे कालनेमि जैसे साधु अवध को लूटते रहेंगे । समाज के जागरूक व्यक्ति बन कर वे कहते हैं कवि समाज का पथ प्रदर्शक होता है, जागरूक व्यक्ति होता है, वे कहते हैं
कवि कुल की मर्यादा में हम, दाग नहीं लगने देंगे ।भर्तृहरि के नीति शतक में आग नहीं लगने देगें।
अर्थात कवि के रूप में आप अपना उत्तरदायित्व पूरी तरह निभाना चाहते हैं ।भगवान कृष्ण कृष्ण के विषय में व्यथित होकर कहते हैं ।
अब तुम गीत गाना छोड़ दो। बांसुरी की धुन बजाना छोड़ दो। क्योंकि इतने छलिए इस पृथ्वी में आ गए हैं कि गोपी गोपियों की आवश्यकता नहीं ।आज कृष्ण को चाहने वाला कोई नहीं है ।यहां पर ब्यूटी ,सुंदरता ,सौंदर्य का अश्लील देह प्रदर्शन है। वह आध्यात्मिक ज्ञान कहां है। लोग भगवान कृष्ण पर ही आरोप मढ़ देते हैं । श्री अवस्थी जी की शनि चालीसा अद्भुत है। उनके मुक्तक उन की भांति अद्भुत है ।अत्यंत रोचक है उन्होंने उनके संबंध में लिखा है ।
सरकारों के व्यापार के बारे में भी लिखा है आरक्षण के संबंध में भी लिखा है। अतः वे साधुवाद के पात्र हैं ।ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी लेखनी सतत चलती रहे। और हम सब को लाभान्वित एवं मार्गदर्शन करती रहे।
डा,प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”