समागम (कविता )
एक नूर से है सारा जग रौशन,
इस पृथ्वी का प्रत्येक जड़-चेतन,
सभी में है देखो”वह”विद्यमान,
या हो ज़मीं या हो आसमान।
”वह’है एक मंजिल हम पथिकों के लिए,
कई रास्ते हैं मगर वहां पहुँचने के लिए,
मौत है एक आधार उसके दीदार का,
बहुत ज़रूरी है जो इस नश्वर तन के लिए।
”वह’है एक शमा असंख्य परवानों की,
वही तो जिंदगी है हम दीवानों की,
मर मिटे बेशक ,मगर जुबां पर उफ़ नहीं,
इसी में ईद है हम मस्तानो कीें।
”वह’ है एक हसीं फूल है बड़ा सुहाना सा,
जिसकी खुशबू से इंसा हुआ दीवाना सा,
कांटे चुभे चाहे उसके बदन को ; मगर,
उस पर झूमेगा /मंडराएगा यह भंवरा दीवाना साें।