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4 Feb 2017 · 1 min read

समर्पण

समर्पण “” !! कर दे
खुद को,
अपने सारे अरमानो को
अपनी चिता को
अपने हाथो से जला जा
कल हो न हो
इस पर मरहम
लगाने वाला
खुद अपनी प्यास को
बुझा जा
तूझ को अकेला
ही तो चलना है
किस के साथ की
सोचता है
तेरा नाम है
समर्पण
फिर किस को तू
यहाँ खोजता है
विवशता तेरे
रग रग के अंदर
यूं शामिल
है जैसे
नसों के अंदर खून
तूं विवश ही रहेगा
न उभर कर
कुछ कर पायेगा
यह मत भूल
तेरा अपना
वजूद, कुछ नहीं
तो कुछ है
सब इनका, पल
भर को खुश होता
तेरा यह चेहरा
तुझो को
याद दिलाता है, यह
कभी न भूल
तूं है
समर्पण, बस कभी
न भूल, कभी न भूल !!

कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
647 Views
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