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16 Nov 2018 · 2 min read

##**** समय की नई पहचान ***##

।।समय की पहचान।।
एक आश्रम में बहुत बड़ा मंदिर था वहाँ पर रोज सुबह 8 :30 बजे भागवत कथा होती थी वहाँ पर रोज एक काली कुतिया गुरूजी के पास ही बैठकर भागवत कथा सुनती थी।
आश्रम में ही रहकर वो काली कुतिया रोज सुबह आकर कथा सुनती प्रसाद खा कर ही जीवित रहती थी और शांत रहती ज्यादा किसी को भौकती थी।
कीर्तन व् भागवत कथा के समय सबसे आगे गुरूजी के पास ही नजदीक में बैठे रहती थी और कथा सुनती फिर प्रसाद ग्रहण कर एक कोने में ही सो जाती थी।
गुरूजी हमेशा सोचते रहते हुए कहा करते ये पिछले जन्म में शायद कुछ अच्छी इंसान आत्मा रही होगी।
इसलिए वह इस जन्म में भी काली कुतिया के जन्म में मंदिर में आकर बैठ कर भागवत कथा सुनती है।
*श्री कृष्ण ने कहा भी है कि ;-
गीता के 6 वे छठवे अध्याय में कहा गया है कि ईश्वर बड़े दयालु होते हैं।
भक्त को ऐसे स्थान में जन्म देता है जब आध्यत्मिक जगत में आदर की कमी हो जाती है तो आत्मा अगले जन्म में फिर से उसी जगह पर पहुँचा देता है जहाँ पर आप याने आत्मा जाना चाहती है।
मनुष्य शरीर में ही नही कुछ और आत्मा में भेज दिया जाता है।
चाहे वो कोई पशु पक्षियों या कोई भी आत्मा में प्रवेश किया जाता है।
इसी कारण वो काली कुतिया भी पिछले जन्म में अच्छी आत्मा में रही होगी और कुछ पुराना हिसाब चुकता करने के लिए फिर से कुतिया के रूप धारण कर अपने जीवन को सुधार करने के लिए आयी है।
एक दिन गुरूजी भागवत कथा सुनाने के लिए कुछ बिलंब देरी हो गई तो वह काली कुतिया गुरूजी के पास जाकर पूँछ हिलाने लगी और बहुत देर तक खड़ी ही रही गुरूजी को समझ नहीं आया कि क्यों ये यहाँ पर आकर अपने पूँछ हिला रही है और इशारा कर रही है कि वक्त हो गया है भागवत कथा सुनाने के लिए जाना है।
गुरूजी ने समय देखा सचमुच वक्त हो गया था और घड़ी देखकर ही लगा आज लेट हो गया कथा सुनाने में देरी हो गई थी।
बहुत दिनों तक गुरूजी कलकत्ता में रहने को चले गए और कुछ दिनों में आश्रम के लोगों से पूछा गया कि काली कुतिया कैसी है तो पता चला कि वह अब इस दुनिया में नही रही चल बसी थी ।
आश्रम में रहते हुए कुछ लोगों की गलती से उसकी जान चली गई थी।
कुछ लोग काम करते हुए गर्म पानी उसके ऊपर फेंक दिया था और जिससे उसकी चमड़ी जल गई और कुछ दिनों में उसकी मौत हो गई।
पाराशर मुनि। ने कहा भी है ;-कुत्तों की आयु मात्र 12 साल की होती है।
लेकिन उसकी आध्यात्मिक शक्ति पिछले जन्म की आत्मा का पुण्य प्रताप से ही उसे यह जन्म वरदान साबित हुआ था।
प्रारब्ध से ही मनुष्य के संस्कार कर्म निहित रहते हैं और समय की नई दिशाओं में पहचान कराते हैं।
*** राधैय राधैय जय श्री कृष्णा ***
##*** श्रीमती शशिकला व्यास **##
# भोपाल मध्यप्रदेश #

Language: Hindi
2 Likes · 290 Views
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