समय का चलन अब डराने लगा है
गीतिका
आधार छन्द-भुजंग प्रयात(वाचिक)
122 122 122 122
समान्त-आने
पदांत:लगा है
समय का चलन अब डराने लगा है।।
खुली लूट का डर सताने लगा है।(१)
घटाएं गगन में घिरीं हैं डराने,
तमस का अंधेरा ही’छाने लगा है।(२)
वदहवासियां है सुकूं के फलक पर,
नया बिंब मानव बनाने लगा है।(३)
गयी सूख पय अब सजल आंसुओं की,
मगर आंख आंसू बहाने लगा है।(४)
अटल को दुखातीं ज़माने की’ बातें,
जमाना अटल को सताने लगा है।(५)
?❤️?
अटल मुरादाबादी