Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Aug 2020 · 5 min read

सबका ध्यान रखने वाले कोरोना योद्धाओं का हम ध्यान रखें

सबका ध्यान रखने वाले कोरोना योद्धाओं का हम ध्यान रखें

(इन वीरों के मान-सम्मान को बरकरार रखना चाहिए, ये देश की सरकार और न्यायालय की अहम जिम्मेदारी बनती है)

—प्रियंका सौरभ
कोरोना महामारी ने पूरी विश्व व्यवस्था को बदल दिया है और लगभग सभी को अपने जीवन के तरीके को बदलने के लिए मजबूर भी किया है। हालांकि, कई लोगों के लिए इस महामारी ने न केवल अपने व्यावसायिक दृष्टिकोण को बदलने के लिए मजबूर किया, बल्कि इसने उनके काम की मात्रा में वृद्धि की; काम के घंटे बढ़ने, नौकरी संभालने के जोखिम, तनाव की मात्रा में वृद्धि आदि भी नए विषय उभर का सामने आये .मगर इस महामारी के दौरान लोक सेवक और स्वास्थ्य पेशेवर अधिक जोखिम में रहें हैं। जब सारी दुनिया अपने घरों में महफूज जीवन जी रही थी, तब इन योद्धाओं ने अपना जीवन दांव पर लगाकर सबकी सहायता करने में कोई कमी/कसर नहीं छोड़ी, जैसे ही काम के बोझ में वृद्धि हुई, समाज के कुछ वर्गों ने इन कोरोना वारियर्स को अतिरिक्त वेतन देकर उन्हें क्षतिपूर्ति देने का तर्क दिया, जबकि कुछ ने इसका विरोध भी किया।

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को चपेट में ले रखा है। आज भी दुनिया भर में इस वायरस से संक्रमित होने वालों और जान गंवाने वालों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। भारत समेत तमाम देशों में अब कोरोना के मरीज बढ़ रहें हैं। वहीं कोरोना के फ्रंट लाइन वारियर्स हर दिन अपनी जान हथेली पर रख इस वायरस से लड़ रहे हैं। कुछ ने तो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इस युद्ध में जान तक न्योछावर कर दी है.अपने स्वयं के जीवन और उनके परिवारों के जीवन को खतरे में डालते हुए, लोक सेवक फ्रंटलाइन पेशेवर बने जो कोरोना को फैलने से रोकने और बेअसर करने के लिए पहले दिन से कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वे वे हैं जो अभूतपूर्व स्थिति से निपट रहे हैं, और इस खतरे से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं।

हमने देखा है कि उनके काम के घंटे बढ़े हैं,अत्यधिक काम करने वाले लोक सेवकों को भारी मात्रा में तनाव का सामना करना पड़ रहा है और कभी-कभी समाज में गलत सूचना के प्रसार के कारण उन्हें सार्वजनिक क्रोध का भी सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में पुलिस कर्मियों और स्वास्थ्य अधिकारियों को एक गांव में चेक अप अभियान के लिए जाने पर पथराव की स्थिति का सामना करना पड़ा। साथ ही वे ढांचागत समस्याओं की कमी से भी जूझ रहे हैं और नवीन समाधानों के जरिए रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे कुछ जिलों में लोक सेवकों ने नए विचारों के साथ नागरिकों के दैनिक जीवन को वापस लाने की योजना बनाई है, जैसे कि बाजार शुरू करने के लिए विषम योजनाएं, अभिनव विज्ञापन बनाना, गीतों और कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक करना आदि।

देश भर से अब ऐसी ख़बरें नहीं आई है कि एक तरफ तो कोरोना योद्धाओं पर फूल बरसाकर उनके प्रति सम्मान जताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर संक्रमित होने पर उन्हें इलाज के लिए भटकने को छोड़ दिया गया है। देश की लगभग सभी राज्य सरकार ने कोरोना योद्धाओं की मौत पर तो उनके परिवार की आर्थिक मदद के लिए 50 लाख रुपए का प्रावधान कर दिया, मगर संक्रमित होने पर अस्पताल में लगने वाले खर्च को लेकर सचेत नहीं है। हालत यह हो गए है कि डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, पुलिस अधिकारी तक को इलाज के रुपयों के लिए साथियों व रिश्तेदारों से गुहार लगानी पड़ रही है। केंद्र सरकार को ऐसे मामलों पर सख्ती से पेश आकर इन वीरों के मान-सम्मान को बरकरार रखना चाहिए, ये देश की सरकार और न्यायालय की अहम जिम्मेदारी बनती है.

किसी भी कार्य को पूरा करने और आगे बढ़ने के लिए अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। जिसे ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी और राज्य के स्वास्थ्य सचिव निकुंज धाल द्वारा दिखाए गए अनुकरणीय सेवा से देखा जा सकता है, जो अपने पिता की मृत्यु के 24 घंटे के भीतर ड्यूटी पर लौट आए। यह कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर जोर देता है। हम उनकी इस देश सेवा की निष्ठा के आगे नतमस्तक है ,देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वर्तमान में अलगाव का अभ्यास कर रहा है और घर से काम कर रहा है, या बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा है। ऐसे समय के दौरान, आईएएस अधिकारी और ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर निगम के आयुक्त (जीवीएमसी) जी श्रीजाना, बच्चे को जन्म देने के 22 दिन बाद ही काम पर लौट आईं, जिससे उनकी प्रसूति टूट गई। आईएएस अधिकारी जी श्रीजाना द्वारा समर्पण का यह कार्य इतनी बड़ी जिम्मेदारी को संभालने के महत्व को दिखाकर एक सबक देता है।

ऐसी खबरें भी सुर्खियां बनीं कि कोरोना से मौत के बाद बेटे ने पिता के शव को कंधा नहीं दिया, मां के शव को कंधा नहीं दिया, परिवार वाले शव छोड़कर चले गए। इन्हीं खबरों के बीच कश्मीर के श्रीनगर निवासी एंबुलेंस चालक जमील अहमद डिगू ऐसे कोरोना वारियर्स के रूप में सामने आए हैं, जिन्होंने श्रीनगर में कोरोना से मरने वाले सभी मरीजों के शव को न सिर्फ कब्रिस्तान तक पहुंचाया बल्कि उन्हें दफन करने में भी मदद की। वह पिछले चार महीने से अपनी जान की परवाह किए बिना मानवता की सेवा में लगे हुए हैं।कई लोक सेवक दर्दनाक तनाव के बाद मनोवैज्ञानिक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और अपने पारिवारिक संबंधों को बनाए रखना का जोखिम उठा रहें है। अपना कर्तव्य निभाते हुए अनुकरणीय साहस भी दिखा रहे हैं। उनके साहसी कार्य के बावजूद, कुछ समाज तबके उनको वो सम्मान नहीं दे रहें जो उनको मिलना चाहिए.

हमारे लोक सेवक इस तरह की गंभीर स्थिति को संभाल रहे हैं, इसलिए वे वास्तव में कोविद -19 के दौरान अपने अतिरिक्त घंटों के काम के लिए अतिरिक्त भुगतान करने के लायक हैं। इस पर हमें बेवजह की बहस में नहीं पड़ना चाहिए। हाल ही में, महाराष्ट्र की एक स्कूल जाने वाली लड़की ने अपनी सेवा के लिए पुलिस कर्मियों की सराहना करते हुए एक पत्र लिखा है। कृतज्ञता के इस छोटे से कार्य ने पुलिस कर्मियों के मनोबल को बढ़ाने में मदद की है। इस तरह के छोटे -छोटे कार्य न केवल उन्हें बेहतर काम करने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद करेगा, बल्कि इस कोविद -19 महामारी को भी जल्द से जल्द समाप्त करने में मदद करेगा।
— —-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 310 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बुढ़ादेव तुम्हें नमो-नमो
बुढ़ादेव तुम्हें नमो-नमो
नेताम आर सी
तेरे जागने मे ही तेरा भला है
तेरे जागने मे ही तेरा भला है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
#क़तआ
#क़तआ
*Author प्रणय प्रभात*
2262.
2262.
Dr.Khedu Bharti
यह कब जान पाता है एक फूल,
यह कब जान पाता है एक फूल,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
🌺आलस्य🌺
🌺आलस्य🌺
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
त्यागकर अपने भ्रम ये सारे
त्यागकर अपने भ्रम ये सारे
Er. Sanjay Shrivastava
अगर जीवन में कभी किसी का कंधा बने हो , किसी की बाजू बने हो ,
अगर जीवन में कभी किसी का कंधा बने हो , किसी की बाजू बने हो ,
Seema Verma
मकर संक्रांति पर्व
मकर संक्रांति पर्व
Seema gupta,Alwar
बचपन
बचपन
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
प्राण प्रतिष्ठा
प्राण प्रतिष्ठा
Mahender Singh
जीना है तो ज़माने के रंग में रंगना पड़ेगा,
जीना है तो ज़माने के रंग में रंगना पड़ेगा,
_सुलेखा.
साझ
साझ
Bodhisatva kastooriya
यही जीवन है
यही जीवन है
Otteri Selvakumar
kavita
kavita
Rambali Mishra
सोच के रास्ते
सोच के रास्ते
Dr fauzia Naseem shad
🤔🤔🤔
🤔🤔🤔
शेखर सिंह
"लहर"
Dr. Kishan tandon kranti
वो ओस की बूंदे और यादें
वो ओस की बूंदे और यादें
Neeraj Agarwal
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
कवि दीपक बवेजा
आज भी अधूरा है
आज भी अधूरा है
Pratibha Pandey
वर्षा जीवन-दायिनी, तप्त धरा की आस।
वर्षा जीवन-दायिनी, तप्त धरा की आस।
डॉ.सीमा अग्रवाल
बेवफाई करके भी वह वफा की उम्मीद करते हैं
बेवफाई करके भी वह वफा की उम्मीद करते हैं
Anand Kumar
समर कैम्प (बाल कविता )
समर कैम्प (बाल कविता )
Ravi Prakash
आखिर मैंने भी कवि बनने की ठानी MUSAFIR BAITHA
आखिर मैंने भी कवि बनने की ठानी MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
तनख्वाह मिले जितनी,
तनख्वाह मिले जितनी,
Satish Srijan
अच्छे थे जब हम तन्हा थे, तब ये गम तो नहीं थे
अच्छे थे जब हम तन्हा थे, तब ये गम तो नहीं थे
gurudeenverma198
हालात ही है जो चुप करा देते हैं लोगों को
हालात ही है जो चुप करा देते हैं लोगों को
Ranjeet kumar patre
किसी नदी के मुहाने पर
किसी नदी के मुहाने पर
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
६४बां बसंत
६४बां बसंत
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Loading...