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17 Apr 2017 · 1 min read

सफ़र….

लहरों की चदर को औढ़ कर
चलो हाथों से रौशनी को पकड़ते हैं
काग़ज़ की नईआ में बैठ कर
समंदर के सफ़र पे निकलते हैं
पानी के बुलबुलों के बीच में
नीली सी सिआही को भरते हैं
उर्दू जैसी सुंदर सी लहरें
पानी के हर्फ़ों को पड़ते हैं
नापते हैं मंज़िल की डग़र को
क़दम दो क़दम रास्ते पर बड़तें हैं
चंद बूँदों के झरनों की कहानी
चलो हवाओं से बातें करते हैं
लहरों की चदर को औढ़ कर
चलो हाथों से रौशनी को पकड़ते हैं
काग़ज़ की नईआ में बैठ कर
समंदर के सफ़र पे निकलते हैं
-राजेश्वर

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