सपने मेरे और उनके
सपना जो हो सका न अपना,
मात्र स्वपन बन कर रह गया,
ले सका न कोई आकार,
हो सका न जो साकार,
किन्तु फिर भी मै सपने देखता रहा,
और उन्ही की उधेड बुन में,
बहुत गहरे तक डूबता रहा,अनन्त गहराई तक,
स्वाश रुठने नहीं लगी जब तक,
पर आस टुट गयी, सांस फुल गयी,
लौट आया मै खाली हाथ,
हो गया मैं बिचलित,रह कर खाली हाथ,
पर कुछ हैं खुशकिश्मत,
जो रहते नहीं खाली हाथ,
वह सपने देखते हैं,और बेच देते हैं,
हो जाते हैं खुशहाल,
वह सन्तुष्ट हैं इसलिये कि उनके सपनों कि मांग कायम है ।
वह नये सपनो के साथ निकल पडते हैं,
उनकी आपूर्ती के लिये,
और दिखा जाते हैं,नये नये सब्जबाग,
और खरीददार फिर भ्रमित होकर,
आ जाते हैं उनके बहकावे में,
अदा कर देते हैं,अपने अमुल्य अधिकार,
प्रयोग करके अपना मत्ताधिकार ।
खुश है सपनो का सौदागर,
फिर बिक गये उसके सपने,और सब्जबाग,
मिल गया मुझे मेरा जनादेश,
करुंगा अपने सपनो को साकार,,।