सन्नाटा ही सन्नाटा
सन्नाटा ही सन्नाटा !!!
सुबह होती है सन्नाटा लिए
दोपहर होती है सन्नाटा लिए
शाम होती है सन्नाटा लिए
रात होती है सन्नाटा लिए
गुज़रता हर लम्हा सन्नाटा लिए
सन्नाटा ही सन्नाटा , सन्नाटा ही सन्नाटा !!!
कान सुनने को तड़फती
आँखे देखने को तड़पती
मुँह बोलने को तरसती
हाथ छूने को छटपटाती
दिल अहसास को मचलती
सन्नाटा ही सन्नाटा , सन्नाटा ही सन्नाटा !!!
न कोई आता , न कोई जाता
न कोई बोलता , न कोई सुनता
आखे पथरा गई, कान बहरा गये
हाथ पैर रह गये, शरीर ढल गया
अपने भूल गये , मेरी दुनियाँ बदल गई .
सन्नाटा ही सन्नाटा , सन्नाटा ही सन्नाटा !!!
कहाँ गये मेरे अपने !
मेरे अपने , मेरे सपनो की तरह,
सुबह होते ही ग़ायब हो जाती
सन्नाटा ही सन्नाटा , सन्नाटा ही सन्नाटा !!!
छत, दिवार , दरवाज़े और खिड़की
हँसती और कहती ,
अब मैं ही तेरा साथी हूँ !
सन्नाटा ही सन्नाटा , सन्नाटा ही सन्नाटा !!!
Dated : 15/02/2008
SRB 51बी Shipra Riviera,
इंदिरापुरम ग़ज़िआबाद