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30 Dec 2018 · 1 min read

सन्तान

कविता
जब हाथ बढ़े दो मुस्काते
हर सुबह रुकी हर शाम रुकी।
तुतलाते शब्दों में जैसे
ये सारी कायनात रुकी।
वो पल सपनों में बीत गए
सुधाकलश सब रीत गए।
नन्हे मुंह बन ज्योतिकीरण
अपनी बाजी को जीत गए।
अब अपना तन मन खाली है
दिन रात ज्यों टूटी प्याली है।
आवो इन टुकड़ों को जोड़ें
जीवन की राहें कुछ मोड़ें।
अभी दिन ढलना बाकी है
अभी भी चलना बाकी है।।

Language: Hindi
1 Like · 210 Views
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