सदा मातु को मान,
हंसगति छंद ,सदा मातु को मान।
सदा मातु को मान, आज मैं रचता।
शारद से वर माँग, कार्य सब करता।
कागा करे पुकार, यहाँ जो आये।
करे उदासी अंत, प्रिया आ जाये।
लोभ मोह को त्याग, सदा खुश रहिये।
करके श्रम का दान, प्यार घर भरिये।
लिखा हंस गति छंद, प्रेरणा पायी।
सहज सुलभ ये बंध, देन सुखदायी।
मोहक तेरा रुप, हृदय अति भाये।
वाणी तेरी मधुर, रसिक तुम आये।
गोप गोपियाँ छेड़, पुकारें भैया।
कान्हा करे पुकार, यशोमति मैया।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”