सजा तो दो
मैं टूट के बिखर जाऊँगा सज़ा तो दो
दिल से उतर जाऊँगा कोई वज़ह तो दो
क्यूँ हर बार मना लेते हो मुझे रूठने दो
मैं दीवार उठाऊंगा थोड़ी जगह तो दो
मैं टूट के बिखर जाऊँगा सज़ा तो दो
दिल से उतर जाऊँगा कोई वज़ह तो दो
क्यूँ हर बार मना लेते हो मुझे रूठने दो
मैं दीवार उठाऊंगा थोड़ी जगह तो दो