Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Feb 2017 · 6 min read

सच कहा आपने……….यादव जी!

अरे सच कहने पर भला आप माफ़ी क्यों माँगे शरद यादव जी? बिना शर्मिंदगी महसूस करे डटे रहिये आप अपने बयान पर! भले ही कितनी महिला संस्थायें आपको लज्जित कर आपकी माफ़ी माँगे । चाहे मीडिया कितनी बार आपको उकसाये।

अरे क्यों माँगे आप माफ़ी ? आपने सच ही तो कहा कि वोट की इज़्ज़त बेटी की इज़्ज़त से ज़्यादा है! कितना कड़वा सच आप यूँ ही मुस्कुराकर कह गये। आपके चमचों ने तुरंत ताली बजाकर आपकी ‘सत्यवादिता’ का समर्थन भी किया भले ही बिना समझे!

इस देश मे 70 साल से वोट को जो इज़्ज़त मिल रही है वह इस देश की बेटियों की क़िस्मत में कहाँ भला?

क्या कुछ नहीं करते आप आदरणीय नेता-गण एक-एक वोट की सुरक्षा के लिए? आपने हमारे देश की विभिन्नता को जो सींचा है अपने वोट बैंक के लिए वाह! हम सबका धर्म-संप्रदाय विभिन्न है, जाति-जनजाति विभिन्न है, गाँव -प्रदेश विभिन्न है, भाषा – पहनावा विभिन्न है भूलकर भी आप हमें भूलने नहीं देते। चुनाव आते ही आप नाना प्रकार की रेवड़ियाँ बाँटते हैं हर एक वोट के लिए। किसी समुदाय को आरक्षण का लालच, किसी वर्ग को मुफ़्त लैपटॉप , मुफ़्त वाई-फ़ाई , कहीं चावल, कहीं गेहूँ , कहीं पैसा तो कहीं शराब। बेटियों के लिए तो जी नारा ही बहुत है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ ‘ !

अजी ! बेटी तो माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं हैं फिर हम भला यह कैसे आशा करते हैं कि हमारे देश की सड़के उसके लिए सुरक्षित हों ? कैसे उम्मीद करते हैं कि ट्रेन , बस, टैक्सी उसे सुरक्षित घर पहुँचा दे, स्कूल कालेज में वह सुरक्षित शिक्षा प्राप्त कर सके। अरे क्यों दें हम उसे सुरक्षा ? उसकी इज़्ज़त वोट की इज़्ज़त से कम जो है। शरद यादव जी आप बेफ़िक्र रहें। यह बात हमारा समाज और देश भली-भाँति जानता है। नहीं देते जी ! हम बेटी को वोट से ज़्यादा इज़्ज़त !

हम तो हर पल उसे यह अफ़सोस का अहसास कराते हैं कि उसे घर से निकलना ही नहीं चाहिए था, स्कूल – कालेज में पढ़ने का हक नहीं है उसे और नौकरी- व्यवसाय करना तो पाप है उसके लिए। बाहर ही क्यों हम तो घर में भी उसे सुरक्षा नहीं देते जी! मुहल्ले , कालेज के लंफगों को हक है हमारी बेटियों पर फबतियाँ कसने का, बेसुरी आवाज में भद्दे फ़िल्मी गाने गाने का, उससे छेड़ -छाड़ करने का। हम तो जी बेटी के बलात्कार का दोष भी उस पे ही मढ़ देते है क्यूँकि कभी वह ‘ग़लत वक़्त ‘पे घर से निकलती है, कभी ‘ग़लत कपड़े’ पहन कर निकलती है, कभी ज़ोर से हँसने की भूल कर बैठती है, कभी पुरूष मित्र या रिश्तेदार पर भरोसा करने की ग़लती ! अब ‘लड़के तो लड़के ही होते है ‘ है कि नहीं, आप नेताओं की राय भी यही है तथा समाज की भी। क्यों नही हो जी यह राय ? आख़िर बेटी की इज़्ज़त वोट से कम ही तो है।

माँ-बाप को हक है , समाज की दुहाई देकर बेटी के पैरों में बेड़ियाँ डालने का, उसकी आँखों से सपने देखने का अधिकार छीन लेने का, उसे ‘दान’ कर ससुराल के खूँटे से बाँध देने का।

ग़ज़ब बात यह है कि उनकी इज़्ज़त भले ही वोट से कम हो पर बेटियों की इज़्ज़त उनकी जान की क़ीमत से अधिक ज़रूर होती है! उनकी हर छोटी-बड़ी इच्छा से परिवार की इज़्ज़त पर बट्टा ज़रूर लग जाता है। समाज मे नाक कट जाती है पूरे परिवार की अगर बेटी अपनी कोई इच्छा पूरी करनी चाहे तो- चाहे उसकी इच्छा पढ़ाई की हो, खेल की, शादी की या तलाक़ की। बेटी अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन-साथी चुन ले? तौबा! कितना कंलक लगता है जी परिवार की इज़्ज़त पे! माँ-बाप उसका शरीर उससे दुगुने – तिगुने उम्र के व्यक्ति को बैंड- बाजे के साथ सौंप सकते हैं, दुर्जन व्यक्ति को सहर्ष दान कर सकते हैं। नितांत अजनबी को सौंप देना तो ख़ैर परंपरा ही है । पर मजाल है कि वह अपना तन उसे सौंपना चाहे जिससे वह प्रेम करती है! अजी इतना दुस्साहस तो एक कुलटा ही कर सकती है! इस गुनाह के लिए उसकी जान अपने हाथों से निर्ममता से छीन लेना कर्तव्य है जी माँ- बाप एवं भाईयों का। बेटी का रक्त ही अब परिवार का कलंक धो सकता है! बेटी की इज़्ज़त भले ही कम हो पर ख़ानदान की इज़्ज़त तो बहुत है जी!

क्यों हो बेटी की इज़्ज़त ? उसे तो अपनी सोच पर भी अधिकार नहीं है। सोच तो दूर की बात है ससुराल में तो उसे चेहरा दिखाने का भी हक नहीं है। ससुराल का रूतबा उसके घुंघट और दबी ज़बान पर ही तो क़ायम है!

अजी क्यों न हो उसकी इज़्ज़त वोट से भी कम? अरे ! बेटी वोट भी तो दूसरों की मर्ज़ी से ही करती है। जहाँ मर्द ने कहा लगा दिया जी वहाँ अँगूठा ! तो क्यों करे आप जन नेता बेटी की इज़्ज़त ? आप तो जी सिर्फ़ ‘मर्दों वाली बात’ ही करें, मर्दों के मन की बात कहें। औरत ने तो आपको ही वोट देना है- कभी बाप के कहने पर, कभी भाई के कहने पर, कभी पति के! नाबालिग़ बेटियाँ तो वोट भी नहीं दे सकती हैं तो होता रहे उनका बलात्कार और क़त्ल ।

क्यों हो बेटी की इज़्ज़त ? महिला आरक्षण के चलते जो गाँव में प्रधान , सरपंच बनती भी हैं वह भी अधिकतर घुंघट में रहती हैं या घर की चारदीवारी में और सत्ता की बागडोर अपने घर के मर्दों को सौंप देती हैं।

अरे शरद यादव साहब क्यों माँगे आप माफ़ी? और भला कितनी बार माफ़ी माँग सकते हैं आप? सच बोलने की तो पुरानी बीमारी है आपको! आप ही तो थे जो संसद में हाथ से हवा में नारी का जिस्म रेखांकित कर रहे थे, दक्षिण भारतीय महिलायों की सुंदरता का बखान कर रहे थे। विलक्षण प्रतिभा है आप में सुंदरता परखने की और उसकी सही जगह वर्णन करने की। श्रृंगार रस कूट-कूट कर भरा है आपमें । अट्टहास लगाकर तमाम मर्द सांसदों ने आपकी हौसला अफ़्जाई भी तो की थी!

कुछ सिरफिरे लोगों की आलोचना सुनकर आप व्यथित न हों क्योंकि आप अकेले नहीं है! राजनैतिक दल कोई भी हो, कई मर्द नेताओं की राय आपसे मेल खा ही जाती है।

आपने एक सच कहा ही था कि दूसरा सच विनय कटियार जी कह गये। कितने गर्व से उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी में चुनाव प्रचार हेतु प्रियंका गाँधी से अधिक सुंदर महिलाएँ हैं। अरे इसमें बुरा मानने की कया बात है भला? सुंदरता की तारीफ़ ही तो की थी न? मर्द की तो यह जन्मजात विकलांगता है। बेचारों को नारी में सुंदरता के अलावा कुछ नज़र ही नहीं आता है। नारी की बुद्धी , विवेक, गुण, प्रतिभा ,उपलब्धियाँ सब उसे नारी के तन की सुंदरता के सामने नगण्य लगती हैं। अरे मर्द तो वह भोला जीव है जो शेविंग ब्लेड से लेकर कार तक विज्ञापन में नारी के शरीर की सुंदरता देख कर ख़रीद लेता है! कितनी आसानी से तुष्ट होने वाला प्राणी है यह मर्द ! बाहरी सुंदरता से ही संतुष्ट है वह। यह तो नारी ही इतनी महत्वाकांक्षी होती है जो मर्दों में गुण खोजती है।

चाहे नारी घर की नौकरानी हो या देश की प्रधानमंत्री मर्द ने तो उसे कुछ प्यारे लघु नामों से ही पुकारना है जैसे- ‘माल’, ‘टोटा’,’पटाखा’, ‘फुलझड़ी ‘…… पता नहीं माँ-बाप अपनी बेटियों का नाम रखते ही क्यों हैं? कई बार तो ससुराल वालों का बहू का दुबारा नामकरण करना पड़ता है। अब ज़रूरी तो नहीं कि माँ-बाप ने जो नाम बेटी का रखा हो वह उसके लिए उपयुक्त हो? अब उपनाम तो वैसे भी बदलना है ही, चलो नाम भी बदल देते हैं!अपनी बहू है भई उसका नाम भी अपनी पसंद का ही होना चाहिए। अपना पुराना नाम क्या ? उसने तो वैसे भी अपना अस्तित्व ही भूल जाना है ससुराल के रंग में ढलते-ढलते।

तो माननीय् शरद यादव जी ! आप किसी बहकावे या दबाव में आकर क्षमा न माँग लिजियगा। आपने जो कहा वह कटू सत्य है और आप है ‘ सत्यवादी हरिश्चंद्र ‘!

Language: Hindi
Tag: लेख
391 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जीवन संवाद
जीवन संवाद
Shyam Sundar Subramanian
"अ अनार से"
Dr. Kishan tandon kranti
ना आसमान सरकेगा ना जमीन खिसकेगी।
ना आसमान सरकेगा ना जमीन खिसकेगी।
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
शृंगारिक अभिलेखन
शृंगारिक अभिलेखन
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दो पल का मेला
दो पल का मेला
Harminder Kaur
2) “काग़ज़ की कश्ती”
2) “काग़ज़ की कश्ती”
Sapna Arora
आईना देख
आईना देख
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
सत्य कुमार प्रेमी
-- गुरु --
-- गुरु --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
काश कभी ऐसा हो पाता
काश कभी ऐसा हो पाता
Rajeev Dutta
Kohre ki bunde chhat chuki hai,
Kohre ki bunde chhat chuki hai,
Sakshi Tripathi
ठिठुरन
ठिठुरन
Mahender Singh
काफी है
काफी है
Basant Bhagawan Roy
जमाने की साजिशों के आगे हम मोन खड़े हैं
जमाने की साजिशों के आगे हम मोन खड़े हैं
कवि दीपक बवेजा
■ चार पंक्तियां अपनी मातृभूनि और उसके अलंकारों के सम्मान में
■ चार पंक्तियां अपनी मातृभूनि और उसके अलंकारों के सम्मान में
*Author प्रणय प्रभात*
गल्प इन किश एण्ड मिश
गल्प इन किश एण्ड मिश
प्रेमदास वसु सुरेखा
*मजा हार में आता (बाल कविता)*
*मजा हार में आता (बाल कविता)*
Ravi Prakash
दिल से ….
दिल से ….
Rekha Drolia
*
*
Rashmi Sanjay
मानव-जीवन से जुड़ा, कृत कर्मों का चक्र।
मानव-जीवन से जुड़ा, कृत कर्मों का चक्र।
डॉ.सीमा अग्रवाल
पहले वो दीवार पर नक़्शा लगाए - संदीप ठाकुर
पहले वो दीवार पर नक़्शा लगाए - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
अरमां (घमण्ड)
अरमां (घमण्ड)
umesh mehra
वो एक ही शख्स दिल से उतरता नहीं
वो एक ही शख्स दिल से उतरता नहीं
श्याम सिंह बिष्ट
तुम्हारी सादगी ही कत्ल करती है मेरा,
तुम्हारी सादगी ही कत्ल करती है मेरा,
Vishal babu (vishu)
दरोगवा / MUSAFIR BAITHA
दरोगवा / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
पूर्वार्थ
ये साल बीत गया पर वो मंज़र याद रहेगा
ये साल बीत गया पर वो मंज़र याद रहेगा
Keshav kishor Kumar
हर पिता को अपनी बेटी को,
हर पिता को अपनी बेटी को,
Shutisha Rajput
खुद पर यकीं
खुद पर यकीं
Satish Srijan
शब्द सारे ही लौट आए हैं
शब्द सारे ही लौट आए हैं
Ranjana Verma
Loading...