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26 May 2017 · 2 min read

सच्चा सुख ।

सच्चा सुख……??

“मालिनी आजकल बहुत परेशान रहती है और उसका चिड़चिड़ापन भी बढ़ता जा रहा है” कुसुम अपने पति मोहन से कह रही थी।मोहन कुछ सोचते हुए बोला-
“न जातु कोमः कामानामुपभोगेन शाम्यति
हविष कृष्ण वर्त्मव भूय एवाभिवर्धते॥”
अर्थात
“इन्द्रियों के सुखों के उपभोग से उनकी शान्ति नहीं होती। यही नहीं, बल्कि भोगो से तो वासना और बढ़ती ही जाती है। जैसे जलती हुई अग्नि में उसे शान्त करने के लिये घी डाले तो वह और भी बढ़ती है।”
कुसुम बोली आप कह तो सही रहें हैं पर दुख होता है उसके लिए। कितनी कर्मठ और मेहनती हैं। हालांकि सुना है तनख्वाह अच्छी है उसकी पर घर का किराया फिर बच्चा भी अच्छे स्कूल में पढ़ता है।बेचारी अपने ऊपर एक पैसा भी खर्च नहीं कर पाती सच में बहुत दुख होता है उसके लिए।”भाभी घर पर हो क्या?” – मालिनी दरवाजे पर खड़ी बोल रही। उसकी आवाज में आज एक अलग ही खनक थी, आंखें खुशी से चमक रही थी। कुसुम जैसे ही दरवाजे पर गई मालिनी उससे लिपट गई।अरे वाह! क्या हुआ मैडम जी? आज तो……। कुसुम ने कहा।
अरे भाभी मेरा बेटा बोर्ड की परीक्षा में अव्वल आया है। बस लगता है आज मानों भगवान ने मेरे सारे दुखों का फल दे दिया है अभी उसके प्रधानाध्यापक का भी फोन आया था। आंखें नम करते हुए मालिनी बोली भाभी मैं हररोज ईश्वर से शिकायत करती थी, पर सच्चा सुख दे दिया भगवान ने मुझे। मोहन और कूसुम दोनों एक दूसरे को नम आंखों से देख मुस्कुरा रहे थे।

नीलम शर्मा

Language: Hindi
367 Views
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