“”सखी रे मनवा तरसा जाए, अब तक साजन क्यों ना आए!””
सखी री मनवा तरसा जाए अब तक साजन क्यों ना आए ।
विरह में तन तो जलता जाए, सावन चाहे बरसता जाए।
बलम की याद सताए जिया ना अब तो जाए।।
बोले कोयल मोर भी डोले मन में हुक सी जागी।
दिवस तो जैसे तैसे बीता रात रात भर जागी।
अब आएंगे अब आएंगे, नैना गए मेरे पथराए।
सखी री मनवा तरसा जाए, अब तक साजन क्यों ना आए।।
मेघा छाए कारे कारे बिजुरी शोर मचाए।
फुर फ़ुर गिरता सावन तन तो भीगा जाए ।
फिर भी प्यास बुझे न मन की प्यासा ही रह जाए।
किसे बताऊं पीर ह्रदय की कोई मेरी सुन न पाए।
सखी रे मनवा तरसा जाए, अब तक साजन क्यों ना आए।।
प्रीत में यह तो रीत नहीं है, संदेशा कोई तो ले जाए।
मीत क्यों भूल गए हैं मेरे, लौटकर कैसे भी वे आए।
लौटे नहीं गर अब भी वे तो प्राण को कैसे बचाएं ।
अनुनय बिन उनके अब तो, पल एक भी सहा न जाए।
सखी री मनवा तरसा जाए, अब तक साजन क्यों ना आए।।
राजेश व्यास अनुनय