Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Jun 2019 · 3 min read

संस्मरण

यादें खट्टी मीठी
********************************************
✍️प्रथम यात्रा घर से ससुराल तक✍️
********************************************
एक ऐसा अनुभव एक ऐसी याद जो जेहन में आते ही स्वतः हमें खुद पे हँसने को मजबूर कर देती है।

बात तब की है जब मेरी शादी को तीन वर्ष बीत गये किन्तु प्रा.सेक्टर में नौकरी की बिवसता अवकाश की कमी के कारण मैं एक बार भी ससुराल नहीं जा सका।

ऐसा नहीं है कि इन तीन वर्षों में मुझे छुट्टी न मिली लेकिन हमारे यहाँ की तथाकथित लोक नियम, प्रथा, रीतिरिवाज (नवरतन) जिसमें पहली बार ससुराल जाने पर नव दिन व नव रात ससुराल में रहना अनिवार्य था के कारण मै तीन वर्षों तक अपने ससुराल जा न सका।

खैर जब मेरे ससुराल वाले ने मेरे मंतव्य को जानने के बाद कि मैं इतने दिनों उनके यहाँ क्यों न आया मुझे आश्वासन दिया कि आप एक बार आईये और स्वेच्छानुसार जितने दिन संभव हो रहे या एक ही दिन रह कर चलें जायें कोई बंधन नही।

यह आश्वासन पाकर मैं ससुराल जाने को उद्दत हुआ सबके लिए कुछ न कुछ उपहार खरीदे और पैदल ही अपने गाँव से ससुराल के लिए चल पड़ा।

यहाँ तक सबकुछ सहज था समस्या तो अब प्रारंभ हुई । जिस गाँव मेरी शादी हुई है वहाँ मैं शादी से पहले एक बार भी नहीं गया था केवल व केवल एकबार बस शादी करने ही गया वह भी रात्रि में ,एक विडंबना और देखिए तब मुझे दिशा भ्रम हो गया था रास्ते मुझे याद नहीं थे और उस भरी दुपहरी में एक जन भी राह में न मिला जिससे मैं सही रास्ता पुछ सकूं, परिणाम मैं चार बार गलत रास्तों का वरण कर एक से दो कि.मी. आगे जा जाकर पुनः उसी चौराहे पर वापस हुआ तब कही जाकर एक अदद इंसान मिला जिसने उस गाँव जाने का सही मार्ग मुझे सुझाया।

जैसे तैसे बारह कि.मी. का वह मार्ग मात्र पाँच घंटे में पूर्ण कर मैं उस गाँव के करीब पहुंचा हद तो तब हो गई जब उस गाँव के बाहर हमारे ससुर जी मिलें मैनें उन्हें ससम्मान प्रणाम किया शायद तब इस आश में कि यहाँ से ससुर जी मुझे अपने साथ घर तक ले चलेंगे किन्तु……..

यहाँ भी डूबते को तिनके का सहारा नसीब न हो सका उन्होंने हाल समाचार जानने के बाद मुझसे जो शब्द कहें सुन कर मैं पुनः आसमान से गीरा और खजुर पर अटके जैसा महसूस करने लगा।

दामाद जी आप घर चलिए मिथलेश घर पे हीं हैं। मिथलेश हमारे साले साहब का नाम है..

दोस्तों मैं समझ न पा रहा था कि उनसे कैसे कहूँ… ससुर जी मैं तो रास्ता ही भूल गया हूँ आपके घर जाऊँ तो जाऊँ कैसे ……पर कह न सका बस मन मारकर मन ही मन उनके आतिथ्य को कोसता हुआ गाँव में दाखिल हुआ बड़े ही मशक्कत के बाद ससुर जी का वह तथाकथित घर मिला जो मेरा ससुराल था , वह भी पहचान सका तो कारण हमारे श्रीमती जी की वो साड़ी जो मैं बड़े ही अरमानों से खरीद कर लाया था वही साड़ी धो कर सुखाने वास्ते बाहर टंगा हुआ था…..आखिरकार सुबह का भूला शाम को ससुराल पहुच ही गया।
….??
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 344 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
अनेकों ज़ख्म ऐसे हैं कुछ अपने भी पराये भी ।
अनेकों ज़ख्म ऐसे हैं कुछ अपने भी पराये भी ।
DR ARUN KUMAR SHASTRI
खुद से ज्यादा अहमियत
खुद से ज्यादा अहमियत
Dr Manju Saini
सरस्वती वंदना-6
सरस्वती वंदना-6
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
नौकरी
नौकरी
Aman Sinha
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
*माँ*
*माँ*
Naushaba Suriya
You're going to realize one day :
You're going to realize one day :
पूर्वार्थ
कौआ और बन्दर
कौआ और बन्दर
SHAMA PARVEEN
'तड़प'
'तड़प'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
पुण्यधरा का स्पर्श कर रही, स्वर्ण रश्मियां।
पुण्यधरा का स्पर्श कर रही, स्वर्ण रश्मियां।
surenderpal vaidya
माँ का जग उपहार अनोखा
माँ का जग उपहार अनोखा
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
नववर्ष पर मुझको उम्मीद थी
नववर्ष पर मुझको उम्मीद थी
gurudeenverma198
आख़िरी इश्क़, प्यालों से करने दे साकी-
आख़िरी इश्क़, प्यालों से करने दे साकी-
Shreedhar
इस दुनिया की सारी चीज भौतिक जीवन में केवल रुपए से जुड़ी ( कन
इस दुनिया की सारी चीज भौतिक जीवन में केवल रुपए से जुड़ी ( कन
Rj Anand Prajapati
अब मत करो ये Pyar और respect की बातें,
अब मत करो ये Pyar और respect की बातें,
Vishal babu (vishu)
सारे  ज़माने  बीत  गये
सारे ज़माने बीत गये
shabina. Naaz
प्यार जिंदगी का
प्यार जिंदगी का
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
समृद्धि
समृद्धि
Paras Nath Jha
जीवन मार्ग आसान है...!!!!
जीवन मार्ग आसान है...!!!!
Jyoti Khari
हम बच्चों की आई होली
हम बच्चों की आई होली
लक्ष्मी सिंह
तेरा सहारा
तेरा सहारा
Er. Sanjay Shrivastava
रोम-रोम में राम....
रोम-रोम में राम....
डॉ.सीमा अग्रवाल
मातृभूमि
मातृभूमि
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कैसे भुल जाऊ उस राह को जिस राह ने मुझे चलना सिखाया
कैसे भुल जाऊ उस राह को जिस राह ने मुझे चलना सिखाया
Shakil Alam
,,,,,,,,,,,,?
,,,,,,,,,,,,?
शेखर सिंह
"अन्तर"
Dr. Kishan tandon kranti
(21)
(21) "ऐ सहरा के कैक्टस ! *
Kishore Nigam
*तुम और  मै धूप - छाँव  जैसे*
*तुम और मै धूप - छाँव जैसे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
ज़िंदगी एक पहेली...
ज़िंदगी एक पहेली...
Srishty Bansal
*ई-रिक्शा तो हो रही, नाहक ही बदनाम (छह दोहे)*
*ई-रिक्शा तो हो रही, नाहक ही बदनाम (छह दोहे)*
Ravi Prakash
Loading...