Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Mar 2021 · 3 min read

संवेदना

“एक ज़बरदस्त टक्कर लगी और सब कुछ ख़त्म …” अपने मोबाइल से हवलदार सीताराम ने इंस्पेक्टर पुरुषोत्तम को ठीक वैसे ही और उसी अंदाज़ में कहा, जैसाकि उसने एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह के मुख से सुना था, “सर ड्राईवर को चीखने तक का मौका नहीं मिला। एक चश्मदीद ने मुझे यह सब बताया … खून के छीटे …”

“ज़्यादा विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं है बेवकूफ़! तुम्हें पता नहीं मैं हार्ट पेशंट हूँ ….” इंस्पेक्टर पुरुषोत्तम ने टोकते हुए कहा।

“सॉरी सर!” सीताराम झेंपते हुए बोला।

“ये बताओ, दुर्घटना हुई कैसे?” पुरुषोत्तम का स्वर कुछ गंभीर था।

“सर ये वाक्या तब घटा, जब एक कार सामने से आ रहे ट्रक से जा टकराई।”

“ट्रक ड्राइवर का क्या हुआ? कुछ पैसे-वैसे हाथ लगे की नहीं।”

“पैसे का तो कोई प्रश्न ही नहीं सर”

“क्यों?”

“वह मौक़े से फ़रार हो गया था, मैं दुर्घटना स्थल पर बाद में पंहुचा था।”

“तुम्हें दो-चार दिन के लिए निलंबित करना होगा।”

“क्यों सर?”

“तुम मौक़े पर कभी नहीं पंहुचते?”

“सॉरी सर!”

“अबे सॉरी कह रहा है बेवकूफ! क्या जानता नहीं दुर्घटनाएं हमारे लिए फ़ायदे का सौदा होती हैं? आज के दौर में बिना ऊपरी कमाई के गुज़र -बसर करना मुश्किल है। जितने अपराध …! उतनी आमदनी … !!” पुरुषोत्तम ने विस्तार पूर्वक सीताराम को समझाया, “ख़ैर अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है … ट्रक और कार की अच्छी तरह जाँच-पड़ताल करो, शायद कुछ क़ीमती सामान हाथ आ जाये। एक काम करो मुझे ट्रक और कार का नंबर लिखवा दो.… इससे इनके मालिकों का पता चल जायेगा तो वहाँ से कुछ फ़ायदा…” कहते-कहते इंस्पेक्टर के स्वर में चमक आ गई।

“साब जिस जगह दुर्घटना हुई है, वहाँ अँधेरा है। नंबर ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा है। एक सेकेण्ड सर … मोबाईल की रौशनी में कार का नंबर पढने की कोशिश करता हूँ।” और सीताराम ने जैसे ही कार का पूरा नंबर पढ़कर पुरुषोत्तम को सुनाया वह बुरी तरह चीख पड़ा, “नहीं, ये नहीं हो सकता … ये कार तो मेरे लड़के अमित की है….” और फ़ोन पर पहली बार मानवीय संवेदनाएँ उमड़ पड़ीं। अब तक जो इंस्पेक्टर दुर्घटना में नफ़ा-नुक़सान ही देख रहा था। पहली बार उसके हृदय का पिता जीवित हुआ था।

“संभालिये सर अपने आपको …” बेवकूफ सीताराम इतना ही कह सका था कि फ़ोन डिस्कनेक्ट हो गया।

°°°

पुरुषोत्तम ने अपने इकलौते पुत्र अमित से बहुत गहरे जुड़ा हुआ था। अमित भी अपनी माँ कविता से ज़ियादा अपने पिता पुरुषोत्तम को महत्व देता था। अमित के बालपन से जुड़ीं अनेक स्मृतियाँ पुरुषोत्तम के हृदय में हरी हो गई।

“अमित, पापा अच्छे हैं या मम्मा?” कविता अक्सर पाँच वर्षीय अमित से पूछती थी।
“पापा अत्थे हैं।” अमित अपनी तुतली ज़ुबान में बोलता।
“क्यों अत्थे हैं।” कविता भी तुतलाते हुए पूछती।
“पापा चॉकलेट देते हैं।” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अमित के गाल पे किस्स किया और चॉकलेट का पूरा पैकेट उसके हवाले कर रहे थे, लेकिन कविता ने पैकेट अपने हाथों में ले लिया।
“आपने इसकी आदत बिगाड़ दी है।” कविता ने दिखावटी नाराज़गी जाहिर की, “देखो चॉकलेट से इसके दाँतों में कीड़े लगने लगे हैं।”
“कविता डार्लिंग, अभी से ये सब क्यों सोचती हो अभी तो इसके खाने-पीने, खेलने के दिन हैं। अभी तो इसके दूध के दाँत टूटेंगे। फिर नए दाँत आएंगे।” कहते हुए पुरुषोत्तम ने कविता को बाँहों में भर लिया।
“हटो जी, खाना ठण्डा हो रहा है। मैं खाना लगाती हूँ।”
“जो हुकुम सरकार!” कहते हुए पुरुषोत्तम हाथ-मुँह धोने के लिए बाथरूम की ओर चले गए।
°°°
“सुनो जी, अमित का बुखार नहीं उतर रहा है। रोज़ रात को चढ़ जाता है। डाक्टर कहते हैं ठीक हो जायेगा।” कविता ने चिन्तित स्वर में कहा। माँ वैष्णो देवी के दर्शन कर आते हैं, बच्चे को लेकर। वहाँ रास्ते में एक अच्छे वैध भी हैं उनकी दवाई से कई बच्चे ठीक हुए हैं।”

“मुन्ना को बीमारी की हालत में ले जाना ठीक रहेगा।” पुरुषोत्तम ने अपनी चिंता जाहिर की।

“इन्सान जब दुःख में होता है तभी भगवान को याद करता है। मैंने मन्नत भी मांगी है कि अमित को एक बार माँ के दरबार में ज़रूर ले जाऊंगी।” कविता ने हृदयकग बात बताई।

Language: Hindi
1 Like · 432 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all
You may also like:
योग न ऐसो कर्म हमारा
योग न ऐसो कर्म हमारा
Dr.Pratibha Prakash
*मॉं भजनों को सुन-सुन कर, दौड़ी-दौड़ी आ जाना (गीत)*
*मॉं भजनों को सुन-सुन कर, दौड़ी-दौड़ी आ जाना (गीत)*
Ravi Prakash
संसार है मतलब का
संसार है मतलब का
अरशद रसूल बदायूंनी
कलम की वेदना (गीत)
कलम की वेदना (गीत)
सूरज राम आदित्य (Suraj Ram Aditya)
जय माता दी -
जय माता दी -
Raju Gajbhiye
■ मंगल कामनाएं
■ मंगल कामनाएं
*Author प्रणय प्रभात*
वो छोटी सी खिड़की- अमूल्य रतन
वो छोटी सी खिड़की- अमूल्य रतन
Amulyaa Ratan
बीड़ी की बास
बीड़ी की बास
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
साहिल के समंदर दरिया मौज,
साहिल के समंदर दरिया मौज,
Sahil Ahmad
वैविध्यपूर्ण भारत
वैविध्यपूर्ण भारत
ऋचा पाठक पंत
ज़माना इश्क़ की चादर संभारने आया ।
ज़माना इश्क़ की चादर संभारने आया ।
Phool gufran
औरत
औरत
shabina. Naaz
" कटु सत्य "
DrLakshman Jha Parimal
हम मिले थे जब, वो एक हसीन शाम थी
हम मिले थे जब, वो एक हसीन शाम थी
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
जब तक हो तन में प्राण
जब तक हो तन में प्राण
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मेरा भारत
मेरा भारत
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
रक्तिम- इतिहास
रक्तिम- इतिहास
शायर देव मेहरानियां
23/84.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/84.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
प्रायश्चित
प्रायश्चित
Shyam Sundar Subramanian
हाँ, मेरा यह खत
हाँ, मेरा यह खत
gurudeenverma198
जीवन में प्राकृतिक ही  जिंदगी हैं।
जीवन में प्राकृतिक ही जिंदगी हैं।
Neeraj Agarwal
******शिव******
******शिव******
Kavita Chouhan
बेमौसम की देखकर, उपल भरी बरसात।
बेमौसम की देखकर, उपल भरी बरसात।
डॉ.सीमा अग्रवाल
गीत// कितने महंगे बोल तुम्हारे !
गीत// कितने महंगे बोल तुम्हारे !
Shiva Awasthi
अधरों ने की  दिल्लगी, अधरों  से  कल  रात ।
अधरों ने की दिल्लगी, अधरों से कल रात ।
sushil sarna
मेरी आंखों में कोई
मेरी आंखों में कोई
Dr fauzia Naseem shad
वक्त थमा नहीं, तुम कैसे थम गई,
वक्त थमा नहीं, तुम कैसे थम गई,
लक्ष्मी सिंह
कहानी ( एक प्यार ऐसा भी )
कहानी ( एक प्यार ऐसा भी )
श्याम सिंह बिष्ट
नौकरी वाली बीबी
नौकरी वाली बीबी
Rajni kapoor
💐प्रेम कौतुक-557💐
💐प्रेम कौतुक-557💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
Loading...