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4 Aug 2016 · 1 min read

“संवेदना”

कितनी संवेदनायें उग आती हैं पल भर में ,
कुछ मुठ्ठी छींट देती हूँ गीले कागज़ों पर ,
और अंकुरित होकर जब ये फूट पड़ती हैं ,
अनावृत हो जाती है जाने कितनी कल्पनायें.
…निधि…

Language: Hindi
360 Views
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