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30 Mar 2018 · 2 min read

संघर्ष

एक धर्मपरायण किसान था।उसकी फसल अक्सर खराब हो जाया करती थी । कभी बाढ़ आ जाया करती थी तो कभी सूखे की वजह से उसकी फसल बर्बाद हो जाया करती।कभी अत्यधिक गर्मी तो कभी बेहद ठण्ड! बेचारा किसान कभी भी अपनी फसल पूरी तरह प्राप्त नहीं कर पाया ।
दुःखी मन से पँहुच गया मन्दिर!
आँखों में आँसू लिए बोलने लगा,”प्रभु!बेशक आप परमात्मा है लेकिन खेती बाड़ी की जानकारी तो आपको है ही नहीं!
एक बार मेरे अनुसार मौसम को होने दीजिये फिर देखिये मैं कैसे अपने अन्न के भंडार भरता हूँ।
प्रभु भी मन्द मन्द मुस्कान के साथ किसान के उलाहने सुन रहे थे।
उलाहना देकर किसान जाने को मुड़ा ही था कि अचानक
आकाशवाणी हुई
“तथास्तु!वत्स इस वर्ष जैसा तुम चाहोगे वैसा ही मौसम हो जाया करेगा।”
किसान बड़ा ख़ुशी ख़ुशी घर आया ।
अब क्या था,किसान जब चाहता धूप खिल जाया करती और जब चाहता बारिश हो जाती।
लेकिन किसान ने कभी भी तूफान या अंधड़ को आने ही नहीं दिया।
बड़ी अच्छी फसल हुई।पौधे लहलहा रहे थे । समय के साथ साथ फसल भी बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी।
आखिर समय आया फसल काटने का। किसान बड़ी ख़ुशी खुशी खेत पँहुचा।
जैसे ही फसल काटने को हाथ बढ़ाया हैरान रह गया सारी ख़ुशी काफूर हो गई देखा कि गेंहू की बालियों में एक भी बीज नहीं था। दिल धक् से रह गया।
दुःखी होकर परमात्मा से कहने लगा ” हे भगवन यह क्या? इतना बड़ा धोखा,आपने तो मेरी इच्छानुसार मौसम दिया फिर फसल का यह हाल?”
फिर से हुई आकाशवाणी,”यह तो होना ही था वत्स! तुमने जरा भी तूफ़ान आंधी ओलो को नहीं आने दिया जबकि यही वो मुश्किलें है जो किसी बीज को शक्ति देती हैं,और इन तमाम मुश्किलों के बीच भी अपना संघर्ष जारी रखते हुए पौधा बढ़ता है और अपने जैसे हजारों बीजो को पैदा करता है जबकि तुमने ये मुश्किले आने नहीं दी फिर भी पौधा तो बढ़ा लेकिन इसमें न बीज हुए न फल। बिना किसी चुनोतियों के बढ़ते हुए ये पौधे अंदर से खोखले रह गये।होना भी यही था।”
अब जाकर हुआ किसान को अपनी गलती का अहसास।
जिन्दगी में जब तक बाधाएं नहीं आती तब तक हमें खुद की काबिलियत का भी अंदाजा नहीं होता कि हम कितना बेहतर कर सकतें हैं,जबकि बाधाओं से पार जाने के लिए हम ईमानदारी से मेहनत करें तो मंजिल कभी दूर नहीं होगी।

Language: Hindi
366 Views
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