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11 May 2017 · 1 min read

सँभालो वतन को अमन के फरिश्तों

122- 122- 122- 122
तनफ्फुर की आंधी जो चलने लगी है
मुहब्बत की शम्मा रतो बुझने लगी है
2
उड़न छू हुई है ये इंसानियत अब
किसी पेड़ पर वो लटकने लगी है

क़यामत की है ये निशानी जहां में
जो अब आदमीयत निगलने लगी है

ग़लत होने वाला है कुछ लग रहा है
मेरी आंख देखो फड़कने लगी है

संभालो वतन को अमन के फरिश्तों
कि अब जिंदगी ये बिखरने लगी है

मिली मुझको जब से हसीं तेरे जैसी
मेरी जिंदगी ये संवरने लगी है

ये फुर्कत सनम की मेरी जान लेगी
ये शब काली नागन सी डसने लगी है

पिला आज मुझको तू ये मयक़दा ही
इसे देख कर प्यास बढने लगी है

सदा दूर रहती थी हमसे हसीं जो
वो मिलने को मुझसे तरसने लगी है

न रोको मुझे आज बहक जाने दे तू
मेरे दिल की धड़कन मचलने लगी है

मिला जबसे हमदम मेरी जिंदगी ये
बिगडते बिगडते संवरने लगी है

अभी रात बाकी अभी बात बाकी
अभी दिलरुबा क्यूँ खिसकने लगी है

चलो आज हद से गुजर जाएं हम तुम
सहर की तरफ सब ये बढने लगी है

कोई तेरे जैसा न “प्रीतम” जहां में
मेरी आंख में तू थिरकने लगी है

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