शख़्स
इक शख़्स था, कहता रहा
इस शहर में, तन्हा रहा
वो ज़हर पीकर उम्रभर
हालात से लड़ता रहा
भीतर ही भीतर टूटकर
वो किसलिए जीता रहा
कन्धों पे लादे बोझ-सा
रिश्तों को वो ढोता रहा
वो शख़्स कोई और नहीं
हम सबका ही चेहरा रहा
इक शख़्स था, कहता रहा
इस शहर में, तन्हा रहा
वो ज़हर पीकर उम्रभर
हालात से लड़ता रहा
भीतर ही भीतर टूटकर
वो किसलिए जीता रहा
कन्धों पे लादे बोझ-सा
रिश्तों को वो ढोता रहा
वो शख़्स कोई और नहीं
हम सबका ही चेहरा रहा