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20 Jan 2021 · 1 min read

श्रीराम – सबरी मिलन (कविता)

विश्वास विजय करने को रघुराम आ गये।
सब्र के बेर चखने सबरी के श्रीराम आ गये।।

मुस्करा उठीं देखो चेहरे की छुर्रियाँ
झूमकर नाच उठी पुष्पों की कलियाँ
बढ़ाया मान एक भीलनी का प्रभु ने
देने प्रतीक्षा प्रतिफल रघुराम आ गये

सब्र के बेर…………….।

आँखें हुई कमजोर राह तकते तकते
चुन चुनकर पुष्प राह में रखते रखते
जन्मों जन्मों की बुझ गई नयन तृष्णा
चमक उठे नयन फिर रघुराम आ गए।

सब्र के बेर…………….।

कहें माता कुछ खिलादो भूख लगी है
मेरी जठर अग्नि मिटादो भूख लगी है
चख चख कर खिलाए खूब बेर प्रभु को
मिटाने ऊँच-नीच के भेद रघुराम आ गए।

सब्र के बेर…………….।

सुना दो प्रभु मुझे कोई प्रवचन अपना
सुन वचन धन्य बना लूं जीवन अपना
बता जीवन दर्शन ज्ञान भक्त सबरी को
मिटाने को जगत अज्ञान रघुराम आ गये।

सब्र के बेर…………….।

घूमत घामत भटकत फिरत वन में
पता जानकी का राम ढूंढत वन में
भक्तिभाव की रचने नव परिभाषा
सबरी की कुटिया में भगवान आ गए।

सब्र के बेर…………….।

बोलो सियापति रामचंद्र की जय

©_स्वतंत्र_गंगाधर

Language: Hindi
1 Comment · 489 Views
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