–शुभ कर्म–इन्द्रवज्रा छंद
इन्द्रवज्रा छंद की परिभाषा और कविता–
इन्द्रवज्रा छंद
—————-यह एक वर्णिक छंद होता है।इसमें ग्यारह अक्षर होते हैं।इसमें दो तगण,एक जगण और दो गुरू मात्राएँ होती हैं(SSI SSI ISI SS)।
तगण=SSI
जगण=ISI
गुरू =S
इंद्रवज्रा छंद की कविता “शुभ कर्म”
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हारा गुमां है सच मान जीते,
सच्चे जहां में फ़न जान जीते।
हाथों हुआ कर्म कमाल का है,
जो लोग आपा धर ठान जीते।
वादा किया जो सुन तोड़ना क्या?
झूठा दिलों को सुन जोड़ना क्या?
राहें ज़ुदा हों पर भूलना क्या?
आँखें चुरा के सुन दौड़ना क्या?
साथी बनो तो रुह से बनो रे,
भागो न हारो न चलो तनो रे।
देखो भला यार मिसाल होना,
बीजो ख़ुशी-बीज तगा चुनो रे।
है लाज तो लाज रखो सभी की,
बातें सुनी याद रही कभी की।
रे लेन या देन समान होता,
ये राह अच्छी चुनले तभी की।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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