शुभकामनाएं
शुभकामनाएं
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नमस्कार दोस्तों,
सबसे पहले शुभकामनाओं की एक खेप स्वीकार कर लीजिए।ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है कि शुभकामनाऔं का ये झोंका आखिर किस पुण्य प्रताप के फलस्वरूप आप को दुर्भाग्यवश अरे नहीं नहीं भाई सौभाग्य का पारितोषिक प्रसाद स्वरूप आपको सुशोभित हो रहा है।कुछ समझ में आया हो तो बता ही डालिए, ताकि शुभकामनाओं का एक और गुच्छा मैं आपकी ओर अबिलम्ब उछाल दूँ। नहीं समझ में आया तो भी कोई बात नहीं है, निराश होने की जरूरत नहीं है आपको फ्री में एक शुभकामना दे ही देता हूँ।
हाँ तो बात शुभकामनाओं की चल रही थी।सबसे पहले मैं आपको शुभकामनाओं के साथ बता दूँ कि मेरी शुभकामनाएं एकदम नये किस्म की हैं जिसमें दिल का कोई कनेक्शन ही नहीं है।
आजकल शुभकामनाओं का रोग बेहिसाब बढ़ गया है ,इतना बढ़ गया है बेचारा कोरोना भी खौफ में है।यही नहीं गुस्से में भी है और खीझ भी बहुत रहा है।अब आप फिर अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं।चलिए बुरा मत मानिए और शुभकामनाओं का गुच्छा और संभालिए।
हां तो मै कोरोना के गुस्से और खीझ के बारे में कह रहा था।दरअसल जबसे कोरोना के पवित्र कदम अपनी भारतभूमि पर पड़े हैं तबसे हर किसी को शुभकामनाएं देने का जैसे लाइलाज रोग सा लग गया है।अब भाई फिर बुरा न मान लेना मैं आप पर कतई ये आरोप नहीं लगा रहा, यूँ कहिए लगा ही नहीं सकता।कारण कि आपकी शराफत का प्रमाण अभी कल ही गिनीज बुक में पढ़ने का मौका दुर्भाग्यवश न न सारी सौभाग्यवश मिल चुका है।अब ये तो कोई बात नहीं हुई कि बिना कुछ सोचे समझे आप गुस्सा हो रहे हैं,अरे भाई मैने बिना आपके कुछ कहे सारी भी बोल दिया है। चलिए अब गुस्सा छोड़िए मैं अपनी ओर से आपको एक और शुभकामना दे दे रहा हूँ।
हाँ तो मैं कह रहा था कि बेचारा कोरोना उतनी गति पकड़ भी नहीं पा रहा है जितनी रफ्तार से शुभकामनाओं ने पकड़ रखा है,बात यहीं समाप्त हो जाती तो ठीक है कि उसे हर पढे लिखे भारतवासी से सिर्फ इतनी शिकायत है कि सबके सब अतिथि देवो भव की परम्परा एक साथ भूल बैठे हैं।चलिए देश का मान रखते हुए मैं ही की शुभकामनाओं की दर्जन भर टोकरियाँ भेज दे रहा हूँ।मगर अब सही बात तो ये भी है कि कोरोना का गुस्सा भी अपनी जगह पूरी तरह जायज है।बेचारा कितने आराम से हमारे देश में आया है और हम
आप हैं कि बिना स्वागत सत्कार के उसकी उपेक्षा किये जा रहे हैं।ऐसे में उसकी नाराजगी जायज ही हुई न।चलिये अब जो हो गया हो गया।भूल सुधार कीजिये और कोरोना का दिल खोलकर अनंत शुभकामनाओं के साथ बंधु बांधवों के साथ धूमधाम से स्वागत कीजिए उससे पहले मेरी एक और शुभकामनाओं का टोकरा लेते जाइये।अब ये अलग बात है कि मेरी अनंत शुभकामनाओं में एक भी दिल से नहीं दी गयी हैं।औपचारिकताओं भरे परिवेश में मैं भी शुभकामना की पवित्र वैतरणी में गोते लगाने का मोह कैसे छोड़ देता?
चलिए पुनः शुभकामनाओं के साथ कि आप जियें तो अच्छा, मरें तो और अच्छा, मर मर कर जियें सबसे अच्छा।देखिए अब आप फिर बुरा मान रहे हैं पर मैं भी क्या करूँ आपकी ही तरह आदत से मजबूर हूंँ।एकदम सो कैरेट सोने की तरह खरा।शराफत में आपसे एक कदम भी पीछे नहीं हूँ।जैसे आप सभी ने अपनी आदत के अनुसार शुभकामनाओं की आड़ में कोरोना को खुलकर खेलने का मौका दिया है वो काबिले तारीफ़ है। इस पर एक शुभकामना तो बनती ही है।
अंत में अपनी परम्परा के अनुसार कि मैं तो कोरोना से बचा ही हूँ बाकी लोग जियें या मरें मेरी बला से।वैसै भी शुभकामनाओं की कई किस्तें देकर मैनें कोरोना जी को पटा लिया है।आप लोग अपना अपना देख लीजिये।
बस अब आखिरी बार दिल से ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ आपका अपना कोरोना का एकदम सगेवाला
श्री श्री 1008 कोरोनानंद जी महाराज
बीजिंग धाम ,चीन।
जय हिंद, जय भारत, जय शुभकामना
जय जय कोरोना।
✍सुधीर श्रीवास्तव